Ramnagar ki Ramlila : रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला का हुआ शुभारंभ, जन्मा रावण, लंकेश के दिग्विजय के साथ धरती पर बढ़ा अत्याचार
वाराणसी। अनंत चतुर्दशी के पावन अवसर पर शनिवार को रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला का विधिवत शुभारंभ हुआ। पहले दिन रावण जन्म और दिग्विजय की कथा का मंचन किया गया। इस दौरान हजारों की संख्या में लीलाप्रेमी उत्साह और श्रद्धा से भरे हुए रामलीला का आनंद लेते दिखे।

रामनगर की रामलीला को दुनिया का सबसे विशाल और अनूठा मुक्ताकाशीय थिएटर माना जाता है। जब विधि-विधान से इसका शुभारंभ हुआ तो शिव की नगरी वाराणसी की गलियां राममय हो उठीं। श्रद्धालुओं से सजा रामबाग स्थल क्षीरसागर में परिवर्तित हो गया, जहां शेषशैया पर विराजमान श्रीहरि विष्णु की झांकी ने सभी का मन मोह लिया। उनके चरण दबातीं लक्ष्मीजी और कमलासन पर आसीन ब्रह्मा की सुंदर छवि ने श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया।

रामलीला का पहला दृश्य रावण जन्म और उसकी दिग्विजय का रहा। कथा के अनुसार, भगवान ब्रह्मा से अभय वरदान प्राप्त करने के बाद रावण का अहंकार बढ़ गया। उसने विश्वकर्मा द्वारा निर्मित स्वर्ण महल पर आक्रमण किया और ब्राह्मणों के यज्ञ-हवन में विघ्न डालना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं, उसने राज्य में वेद-पुराणों के पाठ और श्राद्ध-कर्म पर भी रोक लगा दी। रावण की इस दुराचारी प्रवृत्ति से भयभीत देवता और ऋषि इंद्र की सलाह पर बैकुंठ धाम पहुंचे और भगवान विष्णु से प्रार्थना की।

जैसे ही रामलीला में यह प्रसंग प्रस्तुत हुआ, लाल और श्वेत महताबी रोशनी से नहाए रामबाग पोखरे ने क्षीरसागर का रूप ले लिया। शेष शैय्या पर लेटे भगवान विष्णु और उनके पास लक्ष्मीजी की झांकी ने वातावरण को और अधिक भक्ति से सराबोर कर दिया। दर्शकों ने “जय सियाराम” के नारों से पूरे लीलास्थल को गुंजायमान कर दिया।
परंपरागत रीति से पहले दिन मुख्य स्वरूपों को पहनाए जाने वाले मुकुटों का पूजन किया गया। धोती पहने स्वरूपों को आसन पर बैठाकर उनके सामने मुकुट रखकर पूजा अर्चना हुई। इस बार मुख्य व्यास रघुनाथ दत्त के निधन के कारण वे अनुपस्थित रहे। उनकी जगह सहयोगी संपत राम व्यास ने स्वरूपों का श्रृंगार और पूजन संपन्न कराया। रामलीला में काशीराज परिवार के कुंवर अनंत नारायण सिंह ने भाग लिया। लीला प्रेमियों ने हर-हर महादेव के उद्घोष के साथ उनका अभिवादन किया।

