Ramnagar Ki Ramlila 2024 : मर्यादा पुरुषोत्तम बनने की डगर पर राम, पत्नी और भाई संग वन चले रघुनाथ 

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वाराणसी। दशरथनंदन श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम बनने की डगर पर चल पड़े। पिता के वचन को निभाना था, सो राजपद का मोह त्यागने में एक पल नहीं लिया और चल पड़े वन की ओर। अर्धांगिनी सीता पति के साथ राजमहल त्याग कर वन में चल पड़ीं तो लक्ष्मण को इससे बेहतर प्रभु की सेवा का अवसर कहां मिलता, तो वे भी साथ चल दिए। जब राम वन चले तो भींगी आंखे लिए सारी अयोध्या उनके पीछे वन की डगर पर चल पड़ी। रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला के नौवें दिन श्रीराम वन गमन प्रसंग का मंचन किया गया। 

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श्रीराम के वन जाने की बात सुनकर सीता भी उनके साथ वन चलने का आग्रह करती हैं। श्रीराम तरह तरह से समझाते हुए कहते हैं कि अयोध्या में रह कर सास ससुर की सेवा करो इसी में तुम्हारी और अयोध्या की भलाई है। लेकिन सीता का यह जबाब उन्हें निरुत्तर कर देता है कि जब आप वन में हो तो मैं यहां महल का सुख कैसे भोगूंगी। लक्ष्मण भी साथ वन जाने को कहते हैं। सुमित्रा कहतीं है कि श्रीराम के बिना तुम्हारा अयोध्या में कोई काम ही नही है। सब पिता की आज्ञा लेने के लिए कोप भवन में गए तो कैकेई के कटु वचन सुनकर दशरथ अचेत हो गए। कैकेई कहती हैं कि वह तुम्हे वन जाने को नही कहेंगे। तुम्हे जो अच्छा लगे करो। कैकेई मुनियों वाले वस्त्र ला कर रख देती हैं। राम उन्हें प्रणाम करके गुरु वशिष्ठ को अयोध्या की देखरेख करने को कह सीता और लक्ष्मण के साथ वन के लिए चल देतें हैं। यह देख देवता प्रसन्न हो उठे। 

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होश में आने पर दशरथ सुमंत से पूछते हैं कि राम वन को चले गए। प्राण शरीर से नहीं जाते। किस सुख के लिए भटक रहे हैं। वे रथ लेकर सुमंत को राम को वन घुमा कर वापस लाने के लिए भेजते हैं। रास्ते में निषाद राज समाचार पाकर कंद मूल फल लेकर राम के दर्शन के लिए दौड़ पड़ते हैं। राम से मिलने के बाद वे उन्हें अपने गांव ले जाना चाहते हैं। लेकिन राम वन में ही रहने को कहते हैं। भीलनी आपस में बात करते हुए कहती हैं कि कैसे माता-पिता है कि इन जैसे कोमल बच्चों को वन में भेज दिया। राम सिंगुआ वृक्ष के नीचे बैठते हैं। निषादराज सभी को भोजन कराते हैं। भोजन के बाद राम सीता भूमि पर शयन करते हैं। यह देख निषादराज रोने लगे तो लक्ष्मण ने उन्हें अपना उपदेश सुना कर उनको मोह छोड़कर सीताराम के चरण कमल में अनुराग करने को कहते हैं। यहीं पर भगवान की आरती के बाद लीला को विश्राम दिया गया।

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रामनगर में नहीं होती दशरथ मरण की लीला
रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला में दशरथ मरण की लीला नहीं होती राम सीता और लक्ष्मण के वन गमन के पश्चात अगले दिन जब राम गंगा पार करके भारद्वाज आश्रम से होते हुए यमुना पार करने के बाद ग्राम वासियों से मिलते हुए बाल्मीकि आश्रम में मिलने के पश्चात चित्रकूट में निवास करते हैं। वे वहां से सुमंत को अयोध्या भेज देते हैं। इसके बाद वहीं लीला समाप्त हो जाती है। इसके बाद आगे दशरथ मरण की लीला नहीं होती। रामलीला सूची में भी दशरथ मरण के आगे के स्थान रिक्त... रखा जाता है। इस संबंध में एक किंवदंती है कि पूर्व काशी नरेश एक राजा थे। वह एक दूसरे राजा की मौत नहीं देख सकते थे। इसलिए यह लीला नहीं कराई जाती। 

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