Ramnagar Ki Ramleela: मैं रघुबीर दूत दसकंधर... अंगद में भरी सभा में किया रावण का मानमर्दन, एक से बढ़कर एक शूरवीर नहीं हिला पाए पांव

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वाराणसी। रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला के इक्कीसवें दिन सोमवार को श्री राम सहित सिंधु पार गमन, सेना वर्णन, सुमेर गिरि विश्राम तथा अंगद विस्तार की लीला हुई। प्रभु श्री राम जी साक्षात भगवान है, इसका ज्ञान सभी को था। परन्तु रावण का अभिमान उसके चरित्र पर हावी हो गया था इसलिए मंत्रियों की खुशामद ने रावण को मातिभ्रम का शिकार बना दिया। रामजी की सेना कहने को वानरों की थी किन्तु इसमें एक से बढ़कर एक शूरवीर थे। हनुमान जी ने तो पहले ही अपनी वीरता से लंका के नाक में दम कर तिगनी का नाच नचा दिया था। 

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आज जब अंगद की बारी आई तो उन्होंने तो रावण के हर छोटे बड़े शूरमा को लज्जित तो किया ही रावण का भी मानमर्दन कर दिया। आज इन्हीं प्रसंगों पर आधारित लीला हुई। श्री राम जी वानरी सेना समुंदर पार जाने की अनुमति देते हैं। जब समुद्र पार करके राम जी की सेना लंका में प्रवेश की तो जामवंत की सलाह पर युद्ध को टालने के लिए राम जी ने अंगद को दूत बनाकर रावण को समझाने के लिए भेजा। 

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उधर, रावण के दूत ने उसे बताया कि राम सेना सहित लंका में प्रवेश कर गए हैं। वह श्री राम की सेना का वर्णन करता है। यह सुनकर रावण अपने मंत्रियों से विचार-विमर्श करता है। उसके मंत्री उसको इससे नहीं डरने की सलाह देते हुए कहते हैं कि बानर, भालू तो हमारे आहार हैं। श्री राम अपनी सेना के साथ सुवेलगिरी पर्वत पर डेरा डालकर विभीषण से विचार विमर्श करते हैं। रावण अपने विचित्र महल में आसन जमाकर नाच गाना सुनता है। उसी समय राम जी एक बाण मारते हैं, जिससे उसके छत्र, मुकुट और कर्णफूल गिर जाते हैं। यह देखकर उसकी सभा डर जाती है। वह सभी से शयन करने के लिए कह कर अपने महल में चला गया। 

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मंदोदरी भी रावण को समझाती है कि श्रीराम से बैर मत लो। लेकिन वह उसके औरत होने का मजाक उड़ाता है। राम के कहने पर रावण को समझाने लंका पहुंचे अंगद को रावण अपनी सभा में बुलाता है। अंगद ने उसे समझाया कि राम से बैर मत करो और सीता को उनको सौंप दो। वह तुम्हारे अपराध को क्षमा कर देंगे। यह सुनते रावण क्रोध से भर गया। उसके बाद दोनों के बीच जमकर शब्द बाण चलते हैं। रावण अपने वीरों से अंगद को पकड़ने के लिए कहा तो अंगद ने भरी सभा में उसे ललकारा कि दम है तो मेरा पांव तुम में से कोई भूमि से उठा दे तो राम बिना युद्ध किए वापस चले जाएंगे। मैं सीता को हार जाऊं। यह कह कर अंगद ने ऐसा पांव जमाया कि रावण के बड़े से बड़े शूरवीर उनका पांव हिला तक न सके। 

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अंत में हारकर रावण खुद उनका पांव उठाने के लिए उठ खड़ा होता है जिस पर अंगद कहते हैं कि मेरे नहीं राम के पांव छुओं वही तुम्हारा कल्याण करेंगे। यह कह कर अंगद राम के पास वापस लौट आते हैं। अंगद राम को सब बात बताते हैं। वह राम से उसके दल का पुरुषार्थ उसकी सेना का वर्णन तथा उसके चारों फाटकों की सुरक्षा के बारे में बताते हैं। यहीं पर आरती के बाद लीला को विश्राम दिया गया। अब 22 वें दिन शुक्रवार को चारों फाटक की लड़ाई, लक्ष्मण पर शक्ति का प्रयोग और प्रतिकार की लीला होगी।
 

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