प्राचीन नागर शैली पर बन रहा रामलला का मंदिर, तीन मंजिला, 392 खंभे व 44 द्वार होंगे खास, जानिए श्री राम मंदिर की प्रमुख विशेषताएं

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अयोध्या। 22 जनवरी को सनातन धर्म में आस्था रखने वाले हिन्दुओं की लगभग 500 वर्षों की तपस्या का अंत होने जा रहा है। रामलला इस दिन अपने भव्य मंदिर में विराजेंगे। इस भव्य आयोजन पर पूरे विश्व की नजरें हैं। बताया जा रहा है कि मंदिर की भव्यता ऐसी होगी कि इसकी गाथा विश्व के कई देशों में गाई जाएगी। 22 जनवरी को भव्य मंदिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रामलला की प्राण प्रतिष्ठा करेंगे। आइए जानते हैं मंदिर से जुड़ी कुछ ख़ास विशेषताएं-

मंदिर पूरी तरह से प्राचीन नागर शैली में बनाया जा रहा है। जिसकी लंबाई (पूर्व से पश्चिम) 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट तथा ऊंचाई 161 फीट रहेगी। साथ ही तीन मंजिला रहेगा। प्रत्येक मंजिल की ऊंचाई 20 फीट रहेगी। मंदिर में कुल 392 खंभे व 44 द्वार होंगे।

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मंदिर में होंगे 5 विशेष मंडप

मंदिर के भीतर मुख्य गर्भगृह की बात करें तो मुख्य गर्भगृह में प्रभु श्रीराम का बालरूप (श्रीरामलला सरकार का विग्रह), तथा प्रथम तल पर श्रीराम दरबार होगा। इस भव्य मंदिर में पांच मंडपों के रूप मंस नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप व कीर्तन मंडप होंगे। वहीं खंभों व दीवारों में देवी देवता तथा देवांगनाओं की मूर्तियां उकेरी जा रही हैं।

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32 सीढ़ियां चढ़कर सिंह द्वार से मिलेगा प्रवेश

मंदिर में प्रवेश पूर्व दिशा से, 32 सीढ़ियां चढ़कर सिंहद्वार से होगा। दिव्यांगजनों एवं वृद्धों के लिए मंदिर में रैम्प व लिफ्ट की व्यवस्था रहेगी। मंदिर के चारों ओर चारों ओर आयताकार परकोटा रहेगा। चारों दिशाओं में इसकी कुल लंबाई 732 मीटर तथा चौड़ाई 14 फीट होगी। परकोटा के चारों कोनों पर सूर्यदेव, मां भगवती, गणपति व भगवान शिव को समर्पित चार मंदिरों का निर्माण होगा। उत्तरी भुजा में मां अन्नपूर्णा, व दक्षिणी भुजा में हनुमान जी का मंदिर रहेगा।

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ऋषिमुनियों व पुण्यआत्माओं का मंदिर भी प्रस्तावित

जब मंदिर पूर तरह से राममय होगा तो इसमें मां सीता को समर्पित पौराणिक काल का सीताकूप भी विद्यमान रहेगा। वहीं मंदिर परिसर में ऋषि मुनियों व पुण्यात्माओं को भी स्थान दिया जाएगा। मंदिर परिसर में रामलला के अलावा अन्य मंदिर भी प्रस्तावित हैं। जिनमें महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, निषादराज, माता शबरी व ऋषिपत्नी देवी अहिल्या को समर्पित मंदिर होंगे।

बिना लोहे का प्रयोग किए मंदिर का हो रहा निर्माण

मंदिर परिसर में दक्षिण पश्चिमी भाग में नवरत्न कुबेर टीला पर भगवान शिव के प्राचीन मंदिर का जीर्णो‌द्धार किया गया है एवं तथा वहां जटायु प्रतिमा की स्थापना की गई है। मंदिर की सबसे खास विशेषता यह है कि मंदिर में कहीं भी लोहे का प्रयोग नहीं होगा। साथ धरती के ऊपर बिलकुल भी कंक्रीट नहीं है। मंदिर के नीचे 14 मीटर मोटी रोलर कॉम्पेक्टेड कंक्रीट (RCC) बिछाई गई है। इसे कृत्रिम चट्टान का रूप दिया गया है। मंदिर को धरती की नमी से बचाने के लिए 21 फीट ऊंची प्लिंथ ग्रेनाइट से बनाई गई है।

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दर्शनार्थियों की सुविधाओं रखा गया है पूरा ध्यान

मंदिर परिसर में स्वतंत्र रूप से सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट, अग्निशमन के लिए जल व्यवस्था तथा स्वतंत्र पॉवर स्टेशन का निर्माण किया गया है, ताकि बाहरी संसाधनों पर न्यूनतम निर्भरता रहे। इतना ही नहीं,  25 हजार क्षमता वाले एक दर्शनार्थी सुविधा केंद्र (Pilgrims Facility Centre) का निर्माण किया जा रहा है, जहां दर्शनार्थियों का सामान रखने के लिए लॉकर व चिकित्सा की सुविधा रहेगी।

मंदिर परिसर में दर्शनार्थियों को होने वाली सुविधाओं व असुविधाओं को देखते हुए स्नानागार, शौचालय, वॉश बेसिन, ओपन टैप्स आदि की भी व्यवस्था की गई है।  मंदिर का निर्माण पूर्णतया भारतीय परम्परानुसार व स्वदेशी तकनीक से किया जा रहा है। पर्यावरण-जल संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। 70 एकड़ के परिक्षेत्र में फैले धाम का 70 प्रतिशत हिस्सा हमेशा हरित रहेगा।
 

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