शोध छात्रा नाजुक हसीन की मौत पर उठे सवाल, परिजनों और छात्रों ने बताई लापरवाही, निष्पक्ष जांच की मांग
वाराणसी। बीएचयू के सर सुन्दरलाल चिकित्सालय में 11 जुलाई को शोध छात्रा नाजुक हसीन की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत ने चिकित्सा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आरोप है कि भर्ती के बाद तीन दिनों तक छात्रा को एक विभाग से दूसरे विभाग तक भटकाया गया, लेकिन किसी वरिष्ठ डॉक्टर द्वारा उसे समुचित इलाज नहीं दिया गया। परिजनों और छात्रों ने इसे घोर चिकित्सकीय लापरवाही बताते हुए मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है।

नाजुक हसीन की तबीयत खराब होने पर उन्हें आपातकालीन विभाग में भर्ती किया गया था। परिजनों का आरोप है कि इतने प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थान में इलाज के दौरान वरिष्ठ डॉक्टरों की अनुपस्थिति रही और केवल जूनियर चिकित्सकों के भरोसे ही इलाज चलता रहा। गंभीर स्थिति के बावजूद उन्हें विशेषज्ञ परामर्श नहीं मिला, जिससे उनकी हालत बिगड़ती गई और अंततः मौत हो गई।

इस घटना ने विश्वविद्यालय के चिकित्सा ढांचे की जवाबदेही पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं। छात्रों और कर्मचारी संगठनों ने आरोप लगाया कि यदि समय पर अनुभवी डॉक्टर मौजूद होते, तो नाजुक हसीन की जान बचाई जा सकती थी। छात्रों ने मामले की निष्पक्ष जांच कराकर दोषी डॉक्टरों और अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई, छात्र स्वास्थ्य सेवा संकुल में अल्ट्रासाउंड सुविधा और रात्रि 8 बजे तक ब्लड कलेक्शन व इमरजेंसी सेवाएं उपलब्ध कराने की मांग की।
इसके अलावा विश्वविद्यालय के छात्रों और कर्मचारियों को ओपीडी में प्राथमिकता दी जाए तथा हेल्थ डायरी की समय-सीमा समाप्त करने, कर्मचारियों और छात्रों के लिए आईसीयू में दो बेड आरक्षित करने, डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस तत्काल प्रभाव से रोकने, आईसीयू और वार्डों में सीनियर डॉक्टर की नियमित नियुक्ति और उनकी जवाबदेही सुनिश्चित करने, दलालों का अस्पताल परिसर में प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित करने, इमरजेंसी सेवा में सुधार करते हुए गाइड व वालंटियर की व्यवस्था और इलाज को प्राथमिकता देने की मांग की।

