Pulwama Attack: शहीद की अब तक नहीं लगी मूर्ति, छह साल बाद भी सरकारी वादे अधूरे, पुलवामा में देश के लिए कुर्बान हो गए थे अवधेश यादव
हरिकेश यादव ने बताया कि जब अवधेश शहीद हुआ था, तब मेरा पोता सिर्फ डेढ़ साल का था। आज वह दूसरी कक्षा में पढ़ रहा है, लेकिन अब वह हमारे साथ नहीं रहता। उसकी मां उसे लेकर चली गई और अब घर भी नहीं आती।
सरकारी नौकरी मिली, लेकिन परिवार से दूर हो गईं बहू
बताया कि अवधेश की पत्नी को सरकारी नौकरी मिली, लेकिन इसके बाद उन्होंने ससुराल से दूरी बना ली। शहीद के पिता ने बताया, "उसने वादा किया था कि वह हमारा और अवधेश की मां का ख्याल रखेगी, लेकिन अब उसके लिए हम कुछ भी नहीं हैं।"
शहीद अवधेश यादव की पत्नी को राजस्व विभाग में नौकरी मिली थी। इस दौरान उन्हें आर्थिक सहायता भी दी गई, लेकिन परिवार से उनका रिश्ता धीरे-धीरे खत्म हो गया।

"हमने बेटे की शादी सैयदराजा में की थी। अवधेश के जाने के बाद हमारा सहारा उसका बेटा अखिल था, लेकिन बहू उसे लेकर मायके चली गई। कुछ दिन बाद पता चला कि मुगलसराय में मकान बन रहा है। मैं वहां गया, लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली। तीसरे दिन जब एक मिस्त्री से पूछा, तो उसने बताया कि यही वो जगह है जहां मेरे समधी बैठे थे। तब से मैंने वहां जाना ही छोड़ दिया।"
छोटे बेटे की शादी में नहीं आई बहू, पत्नी भी कैंसर से हार गई
हरिकेश लाल यादव ने अपने छोटे बेटे की शादी में बहू और पोते को बुलाने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं आए। उन्होंने कहा, "हमने बुलाया, लेकिन वे नहीं आए। उसके बाद हमने उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया। इसी बीच मेरी पत्नी कैंसर से गुजर गई। अब कुछ नहीं चाहिए।"
सरकार के अधूरे वादे: अब भी इंतजार में शहीद का परिवार
अवधेश यादव के शहीद होने के बाद सरकार ने चार बड़े वादे किए थे। इनमें मिनी स्टेडियम, अवधेश यादव के नाम पर सड़क, गांव के प्रवेश द्वार पर गेट और शहीद की मूर्ति। लेकिन इनमें से सिर्फ सड़क बनी, वह भी बिना किसी शहीद स्मारक के। इसके अलावा हरिकेश यादव ने बताया कि अवधेश की मूर्ति डीएम ऑफिस में आकर रखी है, लेकिन वह अभी तक लग नहीं पाई।
"कहा गया था कि मूर्ति बन रही है, लेकिन आज तक नहीं लगी। सुना है कि वह कलेक्ट्रेट चंदौली में रखी है। हमारी मांग है कि इसे पड़ाव चौराहे पर लगाया जाए और उसका नाम 'शहीद अवधेश यादव चौक' रखा जाए।"

पूर्व प्रधान ने भी की मांग
गांव के पूर्व प्रधान वीरेंद्र यादव ने भी सरकार से मांग किया कि कम से कम एक वादा पूरा किया जाए। उन्होंने कहा, "मिनी स्टेडियम, मूर्ति और एक स्कूल बनाने का वादा किया गया था, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ। अगर सरकार वाकई शहीदों का सम्मान करना चाहती है, तो कम से कम एक वादा निभाए।"
पुलवामा हमले की वो मनहूस रात
अवधेश यादव सीआरपीएफ में रेडियो ऑपरेटर के पद पर तैनात थे। हमले से पांच दिन पहले ही वे घर आए थे और परिवार के साथ समय बिताकर जम्मू लौट रहे थे।
उनके पिता बताते हैं, "अवधेश रांची में ट्रेनिंग के बाद जम्मू गया था। 11 फरवरी को घर आया और 12 को लौट गया। 14 फरवरी को पुलवामा में उसकी गाड़ी पर आतंकियों ने हमला कर दिया। हमें रात में पूर्व प्रधान वीरेंद्र यादव ने आकर बताया, लेकिन हमें तब तक आधिकारिक सूचना नहीं मिली थी।"
अगले दिन सुबह सीआरपीएफ के अधिकारी, डीएम और एसपी उनके घर पहुंचे और आधिकारिक पुष्टि की। शव शाम तक आने की बात कही गई, लेकिन वह अगली सुबह पहुंचा।
अब सिर्फ एक ही इच्छा: शहीद का सम्मान हो
हरिकेश लाल यादव अब सरकार से कुछ नहीं मांगते। उनकी सिर्फ एक अपील है कि उनके बेटे के बलिदान को सम्मान मिले। उन्होंने कहा, "भगवान से यही प्रार्थना है कि जो जहां रहे, सुखी रहे। लेकिन हम चाहते हैं कि हमारे बेटे की याद में कुछ ऐसा हो जिससे आने वाली पीढ़ियां उसकी शहादत को याद रखें।"

