बुढ़वा मंगल के सांस्कृतिक दंगल में हुए तीन मंगल, पूर्वांचल के कवियों व कवियत्रियों ने मंच पर बिखेरे फागुन और चैत के रंग

- संगीत मंगल में पद्मश्री डॉ. सोमा घोष ने चैती ठुमरी के विविध स्वरूपों के सुरों से कराए दर्शन
वाराणसी। विलुप्ति के कगार तक पहुंच चुके काशी के लोक उत्सवों में से एक बुढ़वा मंगल के सांस्कृतिक दंगल को पुनर्जीवन देने के उद्देश्य से सुबह-ए-बनारस आनंद कानन की ओर से बुढ़वा मंगल महोत्सव का आयोजन मंगलवार को गंगा किनारे अस्सी घाट पर किया गया।
युवा पीढ़ी को इस परंपरागत आयोजन से जोड़ने और इसकी महत्ता से परिचित कराने के लिए यह सम्पूर्ण आयोजन दो सत्रों के तीन चरणों में संपादित हुआ। बुढ़वा मंगल महोत्सव के अंतर्गत प्रथम सत्र का प्रथम चरण में काव्य मंगल, इस सत्र का दूसरा चरण में संवाद मंगल तथा तीसरा और अंतिम सत्र संगीत मंगल को समर्पित रहा।
परंपरानुसार आयोजन में सम्मिलित पुरुषों ने सफेद कुर्ता पायजामा और महिलाओं ने गुलाबी रंग के विभिन्न प्रभावों वाली साड़ी धारण की। सुबह-ए-बनारस आनंन कानन की ओर से सभी को दुपलिया टोपी और गुलाबी दुपट्टा भेंट किया गया। गुलाब के इत्र और गुलाब की पंखुड़ियों का छिड़काव अनवरत उपस्थित जनसमूह पर किया जाता रहा। आरंभ में सुबह-ए-बनारस परिवार के सदस्यों ने समवेत रूप से गंगा कलश का पूजन किया। इसके बाद आगतों का स्वागत संस्था के संस्थापक सचिव डॉ. रत्नेश वर्मा ने किया।
इस दौरान उन्होंने काशी में बुढ़वा मंगल के शानदार अतीत से लेकर इसे पुन: जीवंत करने के लिए किए गए प्रयासों का लेखाजोखा जन सम्मुख प्रस्तुत किया। इसके उपरांत काव्य मंगल का क्रम आरंभ हुआ। इसके अंतर्गत नगर के वरिष्ठ एवं उदीयमान रचनाकारों ने काव्य के विविध रंग बिखेरे। खास बात यह रही कि हिंदी की रचनाओं के साथ ही काशिका बोली, संस्कृत और बांग्ला भाषा के रचनाकारों ने भी इस आयोजन में अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराई।
इस सत्र में संस्कृत विदुषी प्रो.मनुलता शर्मा, बंगीय कवयित्री शुभ्रा चट्टोपाध्याय, कंचन लता चतुर्वेदी, डॉ. मंजरी पांडेय, प्रसन्न वदन चतुर्वेदी, डॉ. अलका दुबे, चेतन तिवारी, जगदीश्वरी चौबे, प्रियंका अग्निहोत्री ‘गीत’, राजलक्ष्मी मिश्रा, ऋतु दीक्षित, झरना मुखर्जी, महेंद्र तिवारी ‘अलंकार’, गणेश प्रसाद ‘गंभीर’, सूर्य प्रकाश मिश्र, गिरीश पंडेय,अभिनव अरुण, डॉ. धर्मप्रकाश मिश्र, सूर्यकांत त्रिपाठी, प्रताप शंकर दुबे, बीना त्रिपाठी, मणिबेन द्विवेदी, उषा पाण्डेय ‘कनक’, सुषमा मिश्रा, मालिनी चौधरी, डॉ. संगीता श्रीवास्तव,मधुलिका राय, संगीता श्रीवास्तव, प्रकाश श्रीवास्तव ‘मीरजापुरी’, बिनोद भूषण द्विवेदी, जयशंकर सिंह, परमहंस तिवारी, डॉ.शिव प्रकाश, डॉ. प्रवीण तिवारी, अलख निरंजन, डॉ. विंध्याचल पांडेय ‘सगुन’, हेमंत‘निर्भीक’ ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।
इस सत्र का संचालन काव्यार्चन के संयोजक अरविन्द मिश्र ‘हर्ष’ ने किया। इस सत्र के दौरान रचनाकारों का सम्मान एड.रुद्रनाथ त्रिपाठी ‘पुंज’,महेंद्र तिवारी ‘अलंकार’, गणेश प्रसाद ‘गंभीर’, सूर्यप्रकाश मिश्र, सुमन मिश्रा, राजलक्ष्मी मिश्रा, जगदीश्वरी चौबे, अलख निरंजन ने किया।
इसके उपरांत आयोजन स्थल पर उपस्थित बुजुर्गों के साथ संवाद मंगल का क्रम डॉ. नागेश शांडिल्य ने आरंभ किया। उन्होंने लोक भूषण सम्मान से सम्मानित वरिष्ठ साहित्यकार डॉ जयप्रकाश मिश्रा एवं काशी पत्रकार संघ के अध्यक्ष डॉ. अत्रि भारद्वाज के साथ बुढ़वा मंगल से जुड़े उनके संस्मरणों पर चर्चा की। इसके बाद नवभारत निर्माण समिति के संस्थापक सचिव बृजेश सिंह के साथ अरविन्द मिश्र ‘हर्ष’ ने संवाद मंगल के क्रम को आगे बढ़ाया।
इस दौरान बृजेश सिंह ने कहा कि अगले वर्ष 13 से 15 फरवरी तक नदेसर के ताज होटल परिसर में होने वाले बनारस लिट् फेस्ट के चौथे संस्करण में पांच में से एक मंच पूर्ण रूप से बनारस की लोक संस्कृति और परंपराओं को समर्पित रहेगा। यह मंच बुढ़वा मंगल, नाग नथैया, भरत मिलाप, चेतगंज की नक्कटैया, रथयात्रा मेला, सोरहिया का मेला, पियाला मेला, लोटा-भंटा मेला, रामनगर, लाटसरैया और चित्रकूट की रामलीला जैसे आयोजनों पर केंद्रित रहेगा। उक्त सभी विषयों पर चर्चा-परिचर्चा के साथ ही इन आयोजनों की झलक रंगकर्मियों के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास भी किया जायेगा।
इस सत्र के उपरांत संगीत मंगल का क्रम आरंभ होने से पहले बुढ़वा मंगल महोत्सव का औपचारित उद्घाटन किया गया। मुख्य अतिथि शहर दक्षिणी के विधायक पूर्व मंत्री डॉ नीलकंठ तिवारी, आयोजक संस्था के अध्यक्ष पद्मश्री डॉक्टर राजेश्वर आचार्य संस्थापक सचिव डॉ. रत्नेश वर्मा आदि ने दीप प्रज्जवलन किया। अतिथियों का स्वागत संस्था के उपाध्यक्ष प्रमोद मिश्र ने किया।
इसके बाद संगीत मंगल का क्रम पद्मश्री से अलंकृत डॉ. सोमा घोष ने फागुन और चैत के महीने में विशेष रूप से गायी जाने वाली चैती ठुमरी की एक से बढ़कर एक सुमधुर बानगी पेश की। उन्होंने गायन की शुरुआत हमरी अटरिया पे आजा रे सांवरिया देखा देखी तनिक होइ जाए' ‘ रचना से की। इसके बाद पिया के आवन की आस’, 'बिछुआ बाजे रे ओ बालम', ‘होरी खेलन नहीं जाने’, ‘ना मानेगी मोरी बात’, ‘रंग डारूंगी डारूंगी रंग डारूंगी’, ‘कउने कारण सइयां भइलैं जोगिया हो रामा’ जैसी लोकप्रिय रचनाओं के माध्यम से चैती ठुमरी के अलग-अलग प्रकारों को अपनी सुरीली आवाज से सजाया।
अंत में उन्होंने अपनी लिखी नए दौर की होरी का गायन युवा पीढ़ी को समर्पित किया। उनके साथ तबला पर पं. ललित कुमार, हारमोनियम पर वरिष्ठ गायक पं. पंकज मिश्र ने सधी हुई संगत की। संगीत मंगल सत्र का संचालन अंकित खत्री ने किया। इस अवसर पर अभय श्रीवास्तव कृष्ण मोहन पांडेय, प्रेम नारायण सिंह, अभिजीत दीक्षित, प्रमोद पाठक, दीपक शर्मा तथा संजय ओझा विशेष रूप से उपस्थित रहे। अंत में धन्यवाद ज्ञापन प्रमोद मिश्र ने किया।