पितरों के तर्पण का पर्व पितृपक्ष, काशी में तर्पण का होता है विशेष महत्व

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वाराणसी। सनातन धर्म में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए काशी और गया में पिंडदान का विशेष महत्व है। मान्यता है, कि इन स्थानों पर पिंडदान करने से पितरों को प्रेत आत्मा में भटकने से मुक्ति मिल जाती है। इसी क्रम में काशी के अस्सी घाट पर पिंडदान करने वालों का मेला लगा है। वाराणसी के गंगा घाटों पर पितरों और अकाल मौत की शांति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध का कर्म विधान चल रहा है। 3 पिंडी बनाकर लोग अपने बालों का तर्पण करा रहे हैं। स्नान करके विधि-विधान से पूजा-विधान और कर्मकांड संपन्न करा रहे हैं। 
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भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के 16 दिन तक पितृपक्ष चलेगा। यानी कि 14 अक्टूबर तक इस बार पितृपक्ष हैं। शास्त्र के अनुसार अपनी वंश परंपरा में अनिष्टों से निवृत्ति पाने के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है। शास्त्रों में कहा जाता है कि काशी में यदि श्राद्ध नहीं किया तो, गया का श्राद्ध स्वीकार नहीं होता। यानि की पितृ शांत नहीं होते। वहीं, वाराणसी के पिशाच मोचन पर अकाल मौतों वाले मामले का सबसे ज्यादा श्राद्ध होता है।
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 पितरों की मुक्ति के लिए पिशाचमोच तीर्थ पर कुल 12 तरह के श्राद्ध कराए जा रहे हैं। नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि, सपिंडन, पार्वण, शुद्धथ, कामांग, दैविक, औपचारिक और सांवत्सरिक हैं। हाथ में पवित्र जल से संकल्प लेते हुए श्राद्ध करने वाले पितरों का नाम लिया जाता है। नाम लेते हुए जल को जमीन पर छोड़ते हुए आगे की विधियां पूरी की जाती हैं। संकल्प के बाद शुद्ध जल से सभी प्रेत आत्माओं की मुक्ति के लिए तर्पण का विधान भगवान विष्णु को अर्पित किया जा रहा है। साथ में पितरों की शांति के लिए भगवान से प्रार्थना की जाती है।
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