कल से शुरू हो रहा पितृपक्ष, काशी में होगा पितरों का तर्पण, अतृप्त आत्माओं की तृप्ति के लिए दान, पुण्य का भी है विशेष महत्व
वाराणसी। काशी को "मोक्ष नगरी" कहा जाता है, क्योंकि यह माना जाता है कि यहां की गई धार्मिक क्रियाओं से आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पितृपक्ष के दौरान, काशी में विशेष रूप से पिशाचमोचन कुंड, मणिकर्णिका घाट, दशाश्वमेध घाट और अन्य धार्मिक स्थलों पर श्राद्ध और तर्पण करने की परंपरा है। यहां आने वाले श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा-अर्चना करते हैं और गंगा में पिंडदान करते हैं। इस बार पितृपक्ष बुधवार (18 सितम्बर) से शुरू हो रहा है। इसके लिए श्रद्धालु अभी से ही काशी में आना शुरू हो गये हैं।
काशी के पिशाचमोचन कुंड का पितृपक्ष के दौरान विशेष महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि इस कुंड में पिंडदान और तर्पण करने से पितरों की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है और वे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। इस कुंड से जुड़ी कई कथाएं और पौराणिक मान्यताएं हैं जो इसे विशेष बनाती हैं।
पिशाचमोचन कुंड का पौराणिक महत्व:
पिशाचमोचन कुंड का संबंध एक प्राचीन कथा से है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक राजा ने अनजाने में कई ब्राह्मणों का वध कर दिया था, जिससे उन पर पाप का दोष लग गया। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए राजा ने भगवान शिव से प्रार्थना की। भगवान शिव ने उन्हें पिशाचमोचन कुंड में स्नान कर तर्पण करने का सुझाव दिया। राजा ने वहां स्नान कर तर्पण किया, जिससे उन्हें पाप से मुक्ति मिली। तभी से यह कुंड पितृ दोष और अन्य पापों से मुक्ति दिलाने वाला स्थल माना जाता है।
आज भी, इस कुंड में पितृपक्ष के दौरान हजारों लोग स्नान करते हैं और अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं। काशी में पिशाचमोचन कुंड को पाप मोचन और पितृ तर्पण के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में से एक माना जाता है।
काशी में पितृपक्ष का धार्मिक अनुष्ठान:
पितृपक्ष के दौरान काशी में आने वाले श्रद्धालु विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख अनुष्ठान निम्नलिखित हैं:
1. तर्पण: तर्पण एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है जो पितरों की आत्मा को शांति देने के लिए किया जाता है। तर्पण में जल में तिल मिलाकर उसे अर्पित किया जाता है। यह जल भगवान सूर्य और पितरों को समर्पित किया जाता है। तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे संतुष्ट होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
2. पिंडदान: पिंडदान एक अन्य प्रमुख अनुष्ठान है जो पितृपक्ष के दौरान किया जाता है। इसमें चावल, जौ और तिल के मिश्रण से बने पिंडों को जल में प्रवाहित किया जाता है। यह पिंड पितरों को अर्पित किए जाते हैं ताकि उनकी आत्मा को संतोष प्राप्त हो। काशी के विभिन्न घाटों पर पिंडदान की विशेष व्यवस्था होती है, जहां पुरोहित इस अनुष्ठान को संपन्न कराते हैं।
3. श्राद्ध: श्राद्ध एक विस्तृत कर्मकांड है जिसमें पितरों को भोजन अर्पित किया जाता है। श्राद्ध के दिन वंशज अपने पितरों के नाम से ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं और दान देते हैं। यह मान्यता है कि इस दिन किया गया दान और भोजन पितरों को सीधे प्राप्त होता है और इससे उनकी आत्मा को तृप्ति मिलती है।
4. गंगा स्नान: पितृपक्ष के दौरान काशी में गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है। श्रद्धालु गंगा के पवित्र जल में स्नान कर अपने पापों से मुक्ति पाते हैं और पितरों के तर्पण के लिए गंगा में जल अर्पित करते हैं। ऐसा माना जाता है कि गंगा में स्नान करने से पितृ दोष और अन्य पापों से मुक्ति मिलती है।
काशी के अन्य प्रमुख स्थल: पितृपक्ष के दौरान काशी में पिशाचमोचन कुंड के अलावा अन्य धार्मिक स्थलों का भी विशेष महत्व है। इनमें मणिकर्णिका घाट, दशाश्वमेध घाट और अस्सी घाट प्रमुख हैं। इन घाटों पर श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान करते हैं।
1. मणिकर्णिका घाट: मणिकर्णिका घाट काशी का सबसे प्राचीन और पवित्र घाट माना जाता है। यहां मृत्यु के बाद शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है और इसे मोक्ष प्राप्ति का स्थान माना जाता है। पितृपक्ष के दौरान यहां श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष अनुष्ठान करते हैं।
2. दशाश्वमेध घाट: दशाश्वमेध घाट भी काशी के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह घाट अपने भव्य गंगा आरती के लिए प्रसिद्ध है। पितृपक्ष के दौरान यहां विशेष रूप से तर्पण और पिंडदान करने के लिए श्रद्धालु आते हैं। यहां के पुरोहित पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और अन्य अनुष्ठान संपन्न कराते हैं।
3. अस्सी घाट: अस्सी घाट काशी का एक अन्य प्रमुख घाट है जहां पितृपक्ष के दौरान श्रद्धालु गंगा में स्नान कर तर्पण और पिंडदान करते हैं। यहां की पवित्रता और शांत वातावरण के कारण यह घाट विशेष रूप से पितरों के लिए पूजा और तर्पण के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
पितृ दोष निवारण के लिए काशी की भूमिका:
पितृपक्ष का उद्देश्य केवल पितरों की आत्मा को तृप्त करना ही नहीं है, बल्कि यह पितृ दोष से मुक्ति प्राप्त करने का भी समय है। पितृ दोष तब होता है जब किसी व्यक्ति के पूर्वजों की आत्मा अशांत होती है या उन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। काशी में किए गए तर्पण और पिंडदान से पितृ दोष का निवारण संभव है।
पितृ दोष को दूर करने के लिए काशी में विशेष रूप से पिशाचमोचन कुंड और मणिकर्णिका घाट पर तर्पण करने की परंपरा है। यहां पर किए गए अनुष्ठान पितरों को संतोष प्रदान करते हैं और उनकी आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही, काशी में किए गए दान और पूजा से पितृ दोष का प्रभाव कम होता है और व्यक्ति को जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
पितृपक्ष काशी के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह समय पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है, जिसमें श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म करते हैं। काशी की पवित्र नगरी, विशेष रूप से पिशाचमोचन कुंड, मणिकर्णिका घाट और अन्य धार्मिक स्थलों पर किए गए अनुष्ठानों से पितरों की आत्मा को संतोष और मोक्ष प्राप्त होता है।
पितृपक्ष के दौरान काशी का वातावरण पूरी तरह से धार्मिक आस्था और श्रद्धा से भर जाता है, जहां हर कोने में पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा और तर्पण किए जाते हैं। यह समय हमें हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और उनकी आत्मा की शांति के प्रति हमारी जिम्मेदारी का एहसास कराता है।
काशी के दशाश्वमेध घाट के पुरोहित विशाल औढेकर बताते हैं कि जो व्यक्ति काशी नहीं आ पाता, वह अपने घर की छत पर भी पितरों का तर्पण कर सकता है। उसका जल वह तुलसी के पौधे अथवा मिट्टी में डाल सकते हैं। साथ ही जिन्हें तिथि नहीं मालूम है, वह अमावस्या की तिथि पर कर सकते हैं।
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