अक्षय तृतीया पर काशी में 105 बटुकों का सामूहिक यज्ञोपवीत संस्कार, चार दशकों से चला आ रहा धार्मिक अनुष्ठान

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वाराणसी। धर्म, संस्कार और वैदिक परंपरा की जीवंत धरा काशी में अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर सरयूपारीण ब्राह्मण परिषद द्वारा आयोजित सामूहिक यज्ञोपवीत संस्कार का भव्य आयोजन इस वर्ष भी परंपरागत श्रद्धा और उल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। गोयनका विद्यालय, अस्सी क्षेत्र में आयोजित इस धार्मिक अनुष्ठान में भारत के कोने-कोने से 105 बटुकों ने भाग लिया और वैदिक विधि से यज्ञोपवीत (जनेऊ) संस्कार प्राप्त किया।

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यह आयोजन विगत 40 वर्षों से परिषद द्वारा निःशुल्क रूप से किया जा रहा है, जिसमें न केवल ब्राह्मण समाज के बटुक, बल्कि क्षत्रिय, वैश्य और अन्य वर्गों से भी बच्चे भाग लेते हैं। संस्कार के संचालन में काशी के प्रतिष्ठित वैदिक विद्वानों की अगुवाई में 21 आचार्यों ने मंत्रोच्चार और विधि-विधान से यज्ञोपवीत संस्कार को सम्पन्न कराया।

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कार्यक्रम की गरिमा को बताते हुए केंद्रीय ब्राह्मण सभा के संरक्षक सतीश चंद्र मिश्र ने कहा कि यह आयोजन केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि समाज के सभी वर्गों को जोड़ने वाली एक आध्यात्मिक सेतु भी है। उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति में यज्ञोपवीत पहला और अत्यंत महत्वपूर्ण संस्कार है, जो बालकों को वेदाध्ययन की ओर प्रवृत्त करता है और उन्हें सांस्कृतिक अनुशासन का बोध कराता है।

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मिश्र ने बताया कि हर वर्ष अक्षय तृतीया के दिन इस आयोजन को बड़े पैमाने पर किया जाता है, और बटुकों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। इस बार भारत के विभिन्न राज्यों से परिवारों सहित बटुक काशी पहुंचे हैं। कार्यक्रम में अतिथियों और आगंतुकों का स्वागत करते हुए परिषद के संरक्षक सतीश चंद्र मिश्र ने समाज के सहयोग को सराहा और कहा कि यज्ञोपवीत संस्कार केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि आत्मबोध और चरित्र निर्माण की दिशा में पहला कदम है। उन्होंने पत्रकारों, अभिभावकों और सहभागी परिवारों के प्रति भी आभार प्रकट किया।

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इस अवसर पर आयोजन व्यवस्था में परिषद से जुड़े पारसनाथ, गिरीश तिवारी, शिवदत्त द्विवेदी, रितेश तिवारी, वाचस्पति मिश्र, पंकज पांडेय, आशुतोष ओझा, मिलन चतुर्वेदी, श्रीप्रकाश दुबे, नरेंद्र राम त्रिपाठी, सुजीत उपाध्याय आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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