रविदास जयंती पर सिर गोवर्धनपुर में इमली के पत्ते का मिलता है प्रसाद, जानिए इसकी मान्यता

ravidas jayanti
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रिपोर्ट – ओमकार नाथ


वाराणसी। संत शिरोमणि गुरु रविदास जी का जयंती आते हैं फिर गोवर्धनपुर मिनी पंजाब के रूप में बदल जाता है। सीर गोवर्धनपुर में स्थित इमली का पौराणिक वृक्ष लोगों के लिए आस्था का केंद्र है। यहां पर देश ही नहीं विदेशों से भी गुरु रविदास जी की जयंती पर पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि लोग श्री गुरु रविदास जी का दर्शन करने के बाद इस पौराणिक इमली के वृक्ष पर आकर शीश नवाते हैं, और इसके पत्ते को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। 

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संत रविदास का गांव सीर गोवर्धनपुर रैदासियों की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है। संत के मंदिर के साथ ही लगे इमली के पेड़ से रैदासियों की मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। गुरु चरणों की रज पाने के लिए देश और विदेश से आने वाले रैदासी इमली के पेड़ में कलावा जरूर बांधते हैं और मन्नतें भी मांगते हैं। मान्यता है कि इसी इमली के पेड़ के नीचे बैठकर संत रविदास सत्संग किया करते थे। इतना ही नहीं, इस इमली के पत्ते को लोग अपने घर प्रसाद के रूप में ले जाते हैं, और यहां की मिट्टी को लोक तिलक के रूप में अपने सर पर लगाते हैं। 

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इमली के पत्ते से बीमारियों को ठीक करने का दावा

ऐसी मान्यता है कि इस इमली के पत्ते को अगर कोई बीमारी से ग्रसित है तो इस इमली के पत्ते को देने से वह ठीक हो जाता है। सीर गोवर्धनपुर के रहने वाले स्थानीय निवासी पंकज यादव ने बताया कि संत हरिदास ने जब मंदिर की नींव रखी तब इमली का पेड़ सूखा हुआ था, लेकिन लगातार पानी देने से उसकी जड़ें फिर से हरी हो गईं। आज यह पेड़ का रूप ले चुका है और रैदासियों के लिए आस्था का केंद्र बन गया है। स्थानीय लोग किसी भी शुभ अवसर पर इमली के पेड़ पर मौली बांधने आते हैं। 

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चरण रज पाकर इमली के पेड़ की परिक्रमा

संत रविदास की जयंती पर सीर आने वाला हर श्रद्धालु संत रविदास के मंदिर में चरण रज पाने के बाद इमली के पेड़ की भी परिक्रमा करता है। खासकर महिलाएं इस पेड़ की फेरी लगाती हैं और मत्था टेककर अपने गुरु की श्रम साधना स्थली का आशीर्वाद लेकर जाती हैं। 

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सीर गोवर्धनपुर के रहने वाले निवासी और अपने को संत शिरोमणि गुरु रविदास जी के वंशज बताने वाले स्थानीय नागरिक संतोष कुमार ने बताया कि इमली के पेड़ में लोगों की काफी आस्था है। यहां की मिट्टी को भी लोग पूजते हैं। यह इमली का पेड़ सैकड़ो साल पुराना है। यहां पर पहले बहुत ही पुराना पेड़ हुआ करता था जिसके बाद वह गिर गया और यह पुनः उसी स्थान पर इमली का पेड़ निकला हुआ है। इसी स्थान पर संत शिरोमणि गुरु रविदास जी बैठकर सत्संग किया करते थे। यहां पर देश ही नहीं विदेशों के भी लोग माथा टेकने पहुंचते हैं।

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