मुख़्तार की मौत पर पूर्व डीएसपी शैलेंद्र सिंह बोले – आज समाप्त हुआ मेरा 20 साल का वनवास
पूर्व डीएसपी शैलेंद्र सिंह वही जांबाज अफसर हैं, जिन्होंने मुख़्तार अंसारी के खिलाफ आतंकवाद निरोधक अधिनियम [POTA] लगाया था। शैलेंद्र सिंह ने कहा कि इस माफिया की वजह उनके पूरे परिवार को मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। 9 साल ही नौकरी की थी, उसका कोई फायदा भी वह नहीं ले पाए, मुख़्तार के कारण उन्हें अपनी नौकरी से भी इस्तीफा देना पड़ा। अब मुख़्तार अंसारी का किला गिरने पर उन्हें ख़ुशी है।
शैलेंद्र सिंह ने कहा कि इस माफिया की वजह हालात यह हो गए थे कि इनका पासपोर्ट तक नहीं बन रहा था। घर किराए पर लेने जाते, तो घर नहीं मिलता था। रात में सामान रखते थे, तो सुबह खाली करने के लिए कहा जाता था। परिवार हर समय दहशत में रहता था। नौकरी के लिए कहीं जाते, तो नौकरी न देने के लिए दबाव बनाया जाता था। कहीं भी बाहर निकलते तो गाड़ियां पीछा करती थीं। उस वक़्त पूरे परिवार को हत्या का डर सताता रहता था। लेकिन अब उसकी मौत हो गई है, इससे यह कहा जा सकता है कि जो जैसा करता है, वैसा ही उसके सामने आता है। आज उनके परिवार के साथ न्याय हुआ है।
20 वर्ष पुराना है मामला
घटना जनवरी 2004 की है। जब शैलेंद्र सिंह यूपी STF के वाराणसी यूनिट के प्रभारी थे। उस वक़्त कृष्णानंद राय और मुख़्तार अंसार के बीच लखनऊ के कैंट इलाके में गैंगवार में फायरिंग हुई थी। तत्कालीन यूपी सरकार ने इस मामले में स्पेशल टास्क फ़ोर्स [STF] को एक्टिव किया। STF ने दोनों गुटों की सर्विलांस के जरिए मॉनिटरिंग कर रही थी। तभी एक कॉल में पता चला कि मुख़्तार अंसारी किसी भगोड़े सिपाही से एक करोड़ में एलएमजी (लाइट मशीन गन) खरीदने की डील कर रहा था। तब शैलेंद्र सिंह ने सक्रियता दिखाते हुए 25 जनवरी 2004 क वाराणसी के चौबेपुर क्षेत्र में छापेमारी की। इस दौरान उन्होंने मौके से बाबू लाल यादव और मुन्नर यादव को दबोचकर 200 कारतूस के साथ एलएमजी बी बरामद कर लिया।
चौबेपुर में छापेमारी कर एलएमजी किया बरामद
शैलेंद्र सिंह ने स्वयं चौबेपुर थाने में क्राइम नंबर 17/ 04 पर आर्म्स एक्ट व क्राइम नंबर 18/ 04 पर पोटा के तहत मुख्तार अंसारी पर मुकदमा दर्ज कराया। सिंह के मुताबिक तब तत्कालीन सरकार की ओर से मुकदमा वापस लेने का दबाव बनने लगा। सिंह बताते हैं इस केस में उन्हें इतना प्रताड़ित किया गया कि 2004 में ही उन्हें नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद जिलाधिकारी कार्यालय में तोड़फोड़ और मारपीट की शिकायत के मामले पर उन पर मुकदमा किया गया। उन्हें जेल भेजा गया। हालांकि मौजूदा सरकार की पहल के बाद उनके मुकदमे खारिज हो चुके हैं।
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