वाराणसी में शोपीस बने रैन बसेरे, अंदर हाई-फाई व्यवस्था, मगर बाहर खुले आसमान तले सोने को मजबूर हैं बेघर

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वाराणसी। नगर निगम द्वारा दशाश्वमेध स्थित चितरंजन पार्क में रैन बसेरा तैयार किया गया है। इसमें गर्म बिस्तरों की व्यवस्था, पर्याप्त रोशनी और अन्य आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध कराने की बात कही गई है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि रैन बसेरा तैयार होने के बावजूद उद्घाटन न होने के कारण इसका संचालन शुरू नहीं किया जा सका है। इसके चलते जरूरतमंद लोग अब भी खुले में ही ठंड की रातें बिताने को विवश हैं।

बेघरों में नाराज़गी, प्रशासन से त्वरित कदम की मांग
स्थानीय लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने नगर निगम और प्रशासन से तत्काल रैन बसेरे का उद्घाटन करने और बेघरों को राहत देने की मांग की है। उनका कहना है कि “जब ठंड बढ़ चुकी है, तो रैन बसेरे का संचालन तुरंत शुरू होना चाहिए। देरी का खामियाजा गरीबों और बेघरों को भुगतना पड़ रहा है।” इसके अलावा, विभिन्न क्षेत्रों में और अधिक अलाव की व्यवस्था करने तथा अस्थायी रैन बसेरे बढ़ाने की मांग भी जोर पकड़ रही है।

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प्रशासन की तैयारी पर सवाल
जैसे-जैसे ठंड अपने चरम की ओर बढ़ रही है, शहर में राहत व्यवस्था की धीमी गति ने प्रशासन की तैयारियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अगर समय पर रैन बसेरे शुरू नहीं हुए तो आने वाले दिनों में हालात और गंभीर हो सकते हैं। वाराणसी में ठंड का प्रभाव बढ़ता जा रहा है और जरूरतमंदों को तत्काल राहत देने के लिए प्रशासन को जल्द कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि कोई भी नागरिक ठंड की मार झेलने को मजबूर न हो।

शहर में सर्दी ने दस्तक दे दी है और तापमान में लगातार गिरावट के साथ ठिठुरन बढ़ने लगी है। दिन में ठंडी हवा और रात में गलन भरी ठंड के कारण आमजन परेशान हैं। सबसे अधिक दिक्कत उन गरीब और बेघर लोगों को हो रही है, जिनके पास रात गुजारने के लिए कोई सुरक्षित स्थान नहीं है। वे सड़क किनारों, फुटपाथों और घाटों के पास अलाव जलाकर ठंड से खुद को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।

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अलाव का सहारा, रातें हो रहीं मुश्किल
ठंड बढ़ते ही शहर के कई हिस्सों में लोग लकड़ी, कागज, प्लास्टिक और टुकड़ों में उपलब्ध किसी भी ज्वलनशील सामग्री को जलाकर गर्मी लेने को मजबूर हैं। कमजोर आर्थिक स्थिति वाले परिवार छोटे-छोटे शेड और बोरे का सहारा लेकर रात बिताने की कोशिश कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि हर साल ठंड में आश्रय स्थलों की व्यवस्था का दावा होता है, लेकिन समय पर सुविधा न मिलने के कारण उन्हें अपने स्तर पर ही ठंड से लड़ना पड़ता है।

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