23 किलो की माला, 23 नारियल समर्पित कर 23 दीपों से हुई नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आरती, जय हिंद के नारे से गूंजी काशी
वाराणसी। आजाद हिन्द सरकार के मुखिया नेताजी सुभाष चन्द्र बोस केवल महानायक नहीं, बल्कि लमही के सुभाष मन्दिर में पूजे जाने वाले परम् पावन राष्ट्रदेवता हैं, जिनकी सुबह शाम आरती और सलामी होती है। उक्त बातें विशाल भारत संस्थान के ओर से आयोजित पांच दिवसीय महोत्सव के पांचवें दिन आरएसएस के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार ने कही।
सुभाष महोत्सव के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य इन्द्रेश कुमार के मंगलवार को सुभाष भवन पहुंचने पर उनका स्वागत जय हिन्द, जय सियाराम के गगनभेदी नारों के साथ हुआ। विशाल भारत संस्थान के कार्यकर्ताओं ने तिरंगे के साथ इन्द्रेश कुमार का स्वागत किया। इन्द्रेश कुमार ने विश्व के पहले सुभाष मन्दिर में मत्था टेका और 23 किलो की माला मन्त्रोच्चारण के साथ नेताजी को समर्पित किया। असम से आई चर्चिका चौधरी ने नेताजी सुभाष की महाआरती के लिए दीप मुख्य अतिथि को दिए। 23 नारियल फोड़कर और 23 लड्डू का भोग लगाकर भारत के उस महानायक को सलामी दी गयी जिसने अखण्ड भारत का स्वप्न देखा था।
कार्यक्रम में असम, मणिपुर, मेघालय के साथ कश्मीर के सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं ने भी भाग लिया। नेताजी सुभाष का सम्बन्ध नॉर्थ ईस्ट से रहा है इसलिए नॉर्थ ईस्ट के लोगों ने काशी आकर सुभाष चन्द्र बोस के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की। बाल आजाद हिन्द बटालियन ने बैंड बाजे के साथ नेताजी सुभाष की सलामी दी। असम और मणिपुर के कलाकारों ने लोकनृत्य प्रस्तुत कर सुभाष महोत्सव में चार चांद लगा दिया।
चिकित्सा के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिये होमियोपैथिक चिकित्सक डॉ० मधु गोस्वामी को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस राष्ट्रीय चिकित्सा सेवा पुरस्कार–2024 से मुख्य अतिथि डॉ० इन्द्रेश कुमार ने पुरस्कृत किया।
मुख्य अतिथि इन्द्रेश कुमार ने कहा कि भगवान श्रीराम भद्रता एवं सामर्थ्य के प्रतीक हैं। आधुनिक समय में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस शौर्य, वीरता, भद्रता एवं सामर्थ्य के महानायक हैं और यह गुण उन्हें भगवान राम से ही मिले हैं। आजाद हिन्द सरकार एवं आजाद हिन्द फौज की स्थापना भारत की आजादी के लिए मील का पत्थर साबित हुई। भले इतिहासकारों ने सुभाष के इतिहास का सही मूल्यांकन नहीं किया हो, लेकिन आज जन-जन यह बात कहने लगा है कि नेताजी की वजह से ही हमें आजादी मिली है। वह भगवान राम की तरह अखण्ड भारत बनाना चाहते थे और रामराज्य की स्थापना चाहते थे। सुभाष होते तो देश विभाजित नहीं होता, यह पूर्णतः सत्य है।
विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ० राजीव गुरुजी ने कहा कि विश्व परिदृश्य में भारत को अंग्रेज गुलामों की दृष्टि से देखते थे और भारतीयों को शक्तिहीन समझते थे, लेकिन नेताजी सुभाष ने आजाद हिन्द फौज बनाकर अंग्रेजों को द्वितीय विश्व युद्ध में न सिर्फ मोर्चे पर घेरा, बल्कि भारतीयों की ताकत का भी परिचय दिया और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजों की नृसंशता का भी प्रचार किया। जिससे दुनिया को अंग्रेजों के अत्याचार के बारे में पता चला और दुनियां के 9 देशों ने नेताजी को समर्थन दिया।
कहा कि भारत की आजादी के बाद जितना लोकप्रिय और प्रेरणादायक नेताजी का व्यक्तित्व रहा है, उतना किसी का नहीं। अखण्ड भारत के निर्माण में सुभाष का नाम रामसेतु बनेगा और खोई हुई भूमि सुभाषवादी ही वापस लाएंगे। नेताजी सुभाष के विचारों एवं महान आदर्शों को 50 मुस्लिम देशों तक विशाल भारत संस्थान ले जाएगा। इसके लिए प्रत्येक देश में देशाध्यक्ष मनोनीत हो रहे हैं।
एटीएस के अधिकारी विपिन राय ने कहा कि सभी धर्मों से ऊपर राष्ट्रधर्म है और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस राष्ट्रधर्म के प्रणेता हैं। विशाल भारत संस्थान, उ०प्र० के स्टेट चेयरमैन जय प्रताप सिंह ने कहा कि करोड़ों भारतीयों के दिल में बसने वाले सुभाष युवाओं के आदर्श हैं और युवा उनके नाम पर ही संगठित होंगे।
असम के स्टेट चेयरमैन नूरुल हक ने कहा कि पूरा नॉर्थ ईस्ट नेताजी सुभाष की वजह से ही स्वयं को भारतीय मानता है और उनके विचारों से प्रभावित है। जम्मू कश्मीर के डॉ० अशफाक ने कहा कि कश्मीरी युवा नेताजी के अपना आदर्श मानेंगे तभी अखण्ड भारत बनेगा।
कार्यक्रम का संचालन विशाल भारत संस्थान की राष्ट्रीय महासचिव डॉ० अर्चना भारतवंशी ने किया एवं धन्यवाद राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ० निरंजन श्रीवास्तव ने दिया। इस अवसर पर डॉ० कवीन्द्र नारायण, डॉ० नजमा परवीन, नाजनीन अंसारी, डॉ० मृदुला जायसवाल, आभा भारतवंशी, ज्ञान प्रकाश, नौशाद अहमद दूबे, अलाउद्दीन भुल्लन, पवन पाण्डेय, अमित श्रीवास्तव, अजीत सिंह टीका, मंजु कौशल, नूरूल हक, नसीम रजा सिकरवार, विवेक श्रीवास्तव, बृजेश श्रीवास्तव, शंकर पाण्डेय, मयंक श्रीवास्तव, अनन्त अग्रवाल, मृत्युंजय यादव, डॉ० धनंजय यादव, इली भारतवंशी, खुशी भारतवंशी, उजाला भारतवंशी, दक्षिता भारतवंशी समेत सैकड़ों लोग मौजूद रहे।
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