Navratra 2024 : नवरात्र के छठवें दिन देवी कात्यायनी की आराधना, दही-हल्दी चढ़ाने से कुंवारी कन्याओं को मिलता है योग्य वर
वाराणसी। शारदीय नवरात्र का आज छठवां दिन है। यह तिथि देवी कात्यायनी को समर्पित है। इस दिन देवी कात्यायनी की पूजा करने से मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष समेत चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। इनकी आराधना से रोग, शोक, संताप और भय दूर हो जाते हैं। भक्त जन्मों के पापों से मुक्ति पाते हैं। माता को दही और हल्दी चढ़ाने से कुंवारी कन्याओं को योग्य वर की प्राप्ति होती है।
काशी में माता का मंदिर सिंधिया घाट पर स्थित है। यहां भोर से ही मां के दर्शन को भक्तों की कतार लगी है। लोग माता का दर्शन-पूजन कर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मांग रहे हैं। मां कात्यायनी का नाम महर्षि कात्यायन के नाम पर पड़ा, जो कात्य गोत्र के थे। उन्होंने भगवती पराम्बा की कठिन तपस्या की थी, ताकि उन्हें पुत्री का आशीर्वाद प्राप्त हो सके। मां भगवती ने उनकी इच्छा पूर्ण की और कात्यायन के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया, इसलिए देवी का नाम कात्यायनी पड़ा।
इनका स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। मां कात्यायनी का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनकी चार भुजाएं हैं—दाईं ओर का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है, जबकि नीचे वाला वर मुद्रा में। बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। सिंह इनका वाहन है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है।
मां कात्यायनी का वैज्ञानिक युग में विशेष महत्व है, क्योंकि इनके गुण शोधकार्य से जुड़े हैं। इन्हें शोध और ज्ञान की देवी माना जाता है, और इनकी कृपा से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने मां कात्यायनी की ही पूजा की थी। यह पूजा यमुना नदी के तट पर की गई थी, और इसी कारण मां कात्यायनी ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
इस देवी की आराधना से भक्त न केवल सांसारिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति करते हैं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी करते हैं। कहा जाता है कि मां कात्यायनी की उपासना से व्यक्ति को परम पद, यानी मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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