काशी के इस जगह गिरे मां के नेत्र, मां विशालाक्षी के 41 दिन दर्शन से होती है मनोकामना पूरी
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार काशी में विशालाक्षी बाबा विश्वनाथ के अर्धांगिनी के रूप में विराजमान है। मान्यता है कि हर दिन बाबा विश्वनाथ यही रात्रि शयन करते है। काशी के टेढ़े मेढ़े गलियों के बीच देवी का यह शक्ति पीठ है, जहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।

41 दिन दर्शन से यह मनोकामना होगी पूरी
विशालाक्षी मंदिर के महंत राजनाथ तिवारी ने बताया कि यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। कथाओं के अनुसार इसी जगह पर माता सती का नेत्र गिरा था।यही वजह है कि इस मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। इसके अलावा नवरात्रि के दिनों में यहां लम्बी कतार देखने को मिलता है। काशी में विराजी माता विशालाक्षी के दर्शन से रोग,संताप और संतान की प्राप्ति होती है। जिन कन्याओं का विवाह नहीं होता लगातार 41 दिनों तक दर्शन से विवाह सम्बंधित परेशानी भी कुंडली से दूर होती है।
चढ़ता है श्रृंगार का सामान
यह मंदिर द्रविण शैली में बनाई गई है और इसकी आकृति दक्षिण भारत के मंदिर के जैसी ही है। इस मंदिर में आम श्रद्धालुओं के अलावा बड़ी संख्या में दक्षिण भारतीय श्रद्धालु दर्शन को आते है। यहां देवी को माला,फूल और प्रसाद के साथ श्रृंगार का सामान चढ़ाया जाता है।

देश के 51 शक्तिपीठों में है एक
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव की अर्धागिनी माता सती के पिता दक्ष प्रजापति के राजमहल में यज्ञ के दौरान पति के अपमान से दुखी सती ने उसी यज्ञ कुंड में शरीर त्याग दिया। जिसके बाद भगवान शिव सती का शव लेकर तांडव करने लगे। इस दौरान सृष्टि के रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से काट दिया। जिन जिन जगहों पर सती के शरीर का अंग गिरा वह स्थान शक्तिपीठ हो गया। काशी में इसी जगह माता सती का नेत्र गिरा था। चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन इस मंदिर में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ मौजूद रही।

