‘मेरा भोला है भंडारी करे नंदी की सवारी ...’ मार्कंडेय महादेव के घाट पर बही सुरों की अविरल गंगा, हंसराज रघुवंशी के गानों पर झूमे श्रोता
महोत्सव के शुभारम्भ के अवसर पर 5 मिनट तक निरंतर रामजनम योगी की शंख ध्वनि ने उपस्थित लोगों को अचंभित कर दिया। पंडाल में शंखध्वनि के साथ-साथ हर हर महादेव के नारों से गुंजायमान हो रहा था। कहा जाता है कि भगवान शिव ‘संगीत के जनक’ हैं। शिवमहापुराण के अनुसार, शिव के पहले संगीत के बारे में किसी को भी जानकारी नहीं थी। नृत्य, वाद्य यंत्रों को बजाना और गाना उस समय कोई नहीं जानता था, क्योंकि शिव ही इस ब्रह्मांड में सर्वप्रथम आए हैं।
कैथी स्थित श्री मार्कण्डेय महादेव महोत्सव का शुभारम्भ शंख ध्वनि से होने के साथ ही सम्पूर्ण वातावरण मानों शिव से साक्षात्कार करा रहा हो, ऐसी अनुभूति वहां उपस्थित श्रोताओं को हुई। कहा जाता है कि जब किसी कार्यक्रम के शुभारम्भ में ही वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित हो जाय तो समापन कब है जाता है पता नहीं चलता। वैसे भी नटराज, भगवान शिव का ही रूप है, जब शिव तांडव करते हैं तो उनका यह रूप नटराज कहलाता है। नटराज शब्द दो शब्दों के मेल से बना है। 'नट' और 'राज', नट का अर्थ है 'कला' और राज का अर्थ है 'राजा'। भगवान शंकर का नटराज रूप इस बात का सूचक है कि 'अज्ञानता को सिर्फ ज्ञान, संगीत और नृत्य से ही दूर किया जा सकता है।
महोत्सव में शिव भक्ति की असीम उर्जा में मंच पर पहली प्रस्तुति देने आयी ख्याति नृत्यांगना डॉ० रंजना उपाध्याय ने देवी सुरेस्वरी भगवती गंगे शंकर मौली बिहारी तरंगें बोल पर पैरों की लयकारी की अद्भुत कला को प्रदर्शित किया। पैरों में बंधे घुंघरूओं के गुच्छों में मानों हर घुंघरू शिव अराधना में स्वयं को समर्पित कर रहा हो। समूह नृत्य में श्रीराम की स्तुति नमामि भक्त वत्सलम कृपालु शील कोमलम पर कलाकारों ने लोगों को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया।
राघवेन्द्र शर्मा का भजन श्रोताओं को आया पसंद
महोत्सव में द्वितीय प्रस्तुति राघवेन्द्र शर्मा ने हे शम्भु तिहारी इच्छा से द्वार तिहारे आया गाकर शिव के दरृबार में अपनी हाजिरी लगायी। उड़ती चिरैया से कहलि कौशल्या तथा जितना दिया सरकार ने मुझको...’ गाकर श्रोताओं को झुमने पर मजबूर कर दिया।
ऐसा डमरू बजाया मेरे भोलेनाथ ने ...
महोत्सव में मुख्य आकर्षण में ख्यातिलब्ध गायक जिन्होंने शिव भजनों में आधुनिकता एवं पौराणिकता के तालमेल की एक नयी परम्परा का श्रृजन कर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बनायी है। महोत्सव में हंसराज रघुवंशी को सुनने आये लोगों के धैर्य की परीक्षा उनके मंच पर आते के बाद ही खत्म हुई। हंसराज रघुवंशी ने अपने भजन जय शिव शंकरसे ऐसा समा बांधा मानो आदि देव महादेव का प्राकट्य महोत्सव स्थल पर हो रहा हो।
शिव समा रहे हैं मुझमें, ऐसा डमरू बजाया भोले नाथ ने सारा कैलास पर्वत मगन हो गया..., लागी मेरी तेरे संग लगी ओ मेरे शंकरा... गाकर श्रोताओं को बांधे रखा। हंसराज रघुवंशी ने अपना अंतिम भजन तब तक लोग अपनी जगह से टस से मस नहीं हुए।
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