भारतीय संस्कृति के संरक्षक रहे महामना और डॉ. हेडगेवार, BHU के स्थापना दिवस पर स्वयंसेवकों ने किया पथ संचलन 

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वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, मालवीय नगर द्वारा पथ संचलन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के क्षेत्र कार्यवाह डॉ. वीरेंद्र जायसवाल ने मुख्य वक्ता के रूप में महामना मदन मोहन मालवीय और डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के भारतीय संस्कृति के प्रति योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि महामना ने विश्वविद्यालय की स्थापना द्वारा और डॉ. हेडगेवार ने सज्जन शक्ति को संगठित कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना द्वारा भारतीय संस्कृति को सुरक्षित करने का कार्य किया।

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भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान में महापुरुषों की भूमिका
डॉ. जायसवाल ने कहा कि 1860 के दशक में महामना मालवीय, स्वामी विवेकानंद और डॉ. हेडगेवार जैसे महापुरुषों का जन्म हुआ। ये सभी इस बात को लेकर आश्वस्त थे कि भारत स्वतंत्र तो हो जाएगा, लेकिन यदि अपना स्वदेशी तंत्र विकसित नहीं किया गया, तो पुनः पराधीन होने का खतरा बना रहेगा। उन्होंने कहा कि एक हजार वर्षों की पराधीनता से भी अधिक नुकसान भारत को 1835 में लागू की गई मैकाले की शिक्षा नीति ने पहुंचाया। इस नीति के कारण 16,000 से अधिक गुरुकुल और पारंपरिक शिक्षा केंद्र बंद हो गए। परिणामस्वरूप, आधुनिक शिक्षा प्रणाली से निकलने वाले लोग मानसिक रूप से पराधीन ही बने रहे।

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भारतीय ज्ञान परंपरा और आधुनिक विज्ञान का संगम
डॉ. जायसवाल ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा अत्यंत विकसित रही है, जिसमें विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और विभिन्न शास्त्रों का गहन अध्ययन किया गया था। आधुनिक विज्ञान भी कई क्षेत्रों में प्रभावी रहा है, लेकिन महामना मालवीय जी ने प्राचीन भारतीय ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के समन्वय की आवश्यकता को समझा। इसी उद्देश्य से उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की, जो प्राच्य (पारंपरिक) और प्रतीची (आधुनिक) शिक्षा के मेल का प्रत्यक्ष उदाहरण है। उन्होंने यह भी बताया कि हमें अपने वास्तविक इतिहास से वंचित रखा गया क्योंकि आधुनिक भारत की विधि व्यवस्था 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट पर आधारित थी। आज, जब भारत अपने गणतंत्र के 75 वर्ष पूरे कर चुका है, तब हम अपनी स्वाधीनता और सांस्कृतिक पुनरुत्थान की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

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वर्ण व्यवस्था और जातिवाद पर विचार
डॉ. जायसवाल ने कहा कि प्राचीन काल की वर्ण व्यवस्था कर्म पर आधारित थी, लेकिन वर्तमान में यह जन्म आधारित हो गई है, जिससे जातिवाद का अधिक विस्तार हुआ। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज में ज्ञान, बल और धन अर्जन के आधार पर ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्ण का विकास हुआ था, जबकि शूद्र वर्ण इन तीनों का सहयोगी था। कुछ विशेष कार्य करने वाले समाजों को जातियों का नाम दे दिया गया, जिससे सामाजिक बंटवारा बढ़ा। लेकिन भारतीय समाज सदैव समरसता पर आधारित रहा है, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण महाकुंभ जैसे आयोजन में देखा जा सकता है।

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कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कृषि विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर और राजीव गांधी दक्षिणी परिसर के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. विनोद मिश्रा ने कहा कि महामना मालवीय ने समाज सेवा के विभिन्न आयामों के माध्यम से भारतीय संस्कृति का संरक्षण किया। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया था, लेकिन बाद में उन्होंने विकसित भारत के निर्माण के लिए विश्वविद्यालय की स्थापना को प्राथमिकता दी। उन्होंने यह भी कहा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के 78 वर्षों बाद भी हमारी शिक्षा प्रणाली में मौलिक इतिहास को उपेक्षित रखा गया है, जिससे नई पीढ़ी को अपने गौरवशाली अतीत की जानकारी नहीं हो पा रही है।

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कार्यक्रम की शुरुआत काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलगीत से हुई, जिसके बाद संघ के गुरु स्वरूप भगवा ध्वज को लगाया गया। अमृत वचन आशीष चोकसे ने प्रस्तुत किया, जबकि एकल गीत का गायन नंदा राय ने किया। मुख्य वक्ता के संबोधन के उपरांत सभी स्वयंसेवकों ने घोष ध्वनि के साथ पथ संचलन किया। यह संचलन ट्रॉमा सेंटर स्थित विश्वविद्यालय के स्थापना स्थल तक गया। इस दौरान सबसे आगे सुसज्जित वाहन पर डॉ. हेडगेवार और श्री गुरुजी के चित्र लगे हुए थे। इस पथ संचलन में 700 गणवेशधारी स्वयंसेवकों ने भाग लिया। संचलन का समापन वंदे मातरम गायन के साथ हुआ।

मंच पर उपस्थित अन्य प्रमुख व्यक्तियों में काशी विभाग के माननीय विभाग संघ चालक प्रो. जयप्रकाश लाल, मालवीय नगर के नगर संघ चालक डॉ. विवेक पाठक शामिल थे। इसके अलावा, काशी प्रांत के सह प्रांत कार्यवाह राकेश जी, सह विभाग कार्यवाह आशीष जी, विभाग प्रचारक नितिन जी, काशी दक्षिण भाग के संघ चालक अरुण जी तथा विश्वविद्यालय के कई प्रोफेसर और विद्यार्थी भी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

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