मां कुष्माण्डा मंदिर का वार्षिक श्रृंगार व संगीत महोत्सव : चौथे दिन भक्ति और शास्त्रीय संगीत का अद्वितीय संगम, मंत्रमुग्घ हुए श्रोता

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वाराणसी। दुर्गाकुण्ड स्थित मां कुष्माण्डा दुर्गा मंदिर में चल रहे वार्षिक श्रृंगार एवं संगीत समारोह का चौथा दिन भक्ति, शास्त्रीय और लोक संगीत की अद्वितीय छटा के नाम रहा। भक्ति रस में सराबोर कार्यक्रम में देशभर से आए कलाकारों ने मां के दरबार को सुर-लयों से सजाया और भक्तों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

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शास्त्रीय और लोक संगीत का संगम
सायंकालीन सत्र में गोरखपुर के प्रसिद्ध भजन सम्राट नंदू मिश्रा ने अपने सुमधुर भजनों से भक्तों को भावविभोर कर दिया। उन्होंने "गणपति रखो मेरी लाज" से कार्यक्रम का शुभारंभ किया और आगे "अड़हुल फूल के हार", "बड़ा सुंदर है मां का दरबार", "मन के मंदिर में मां" जैसे भजनों के जरिए मां की महिमा का गान किया। उनके भजनों ने उपस्थित श्रोताओं को भक्ति रस में सराबोर कर दिया।

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दिल्ली से आईं प्रसिद्ध गायिका डॉ. जागृति लूथरा प्रसन्ना ने अपने सूफ़ियाने अंदाज़ से देर तक भक्तों को झूमने पर मजबूर कर दिया। उनके भजनों "जय जय जोतवाली मां", "खोलो बंद किस्मत का ताला" और "तेरे नाम का गिद्दा मईया" ने माहौल को और भी भक्तिमय बना दिया।

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शास्त्रीय प्रस्तुतियों से मंत्रमुग्ध हुए श्रोता
इसके पहले शास्त्रीय संगीत सत्र में सौरभ प्रसाद बनौधा ने बाँसुरी वादन से मां को नमन किया। उन्होंने राग मारवा में "महिषासुर मार्दिनी स्त्रोत" और "तूने मुझे बुलाया शेरावाली" जैसी धुनें प्रस्तुत कीं। उनके साथ तबले पर गुरु प्रसाद शुक्ला की जुगलबंदी सराहनीय रही।

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प्रयागराज से आईं उर्वशी जेटली ने भरतनाट्यम के माध्यम से मां को भावांजलि अर्पित की। उन्होंने "मां दुर्गा की पराशक्ति", "कृष्ण मधुराष्टकम" और "ओ शिव शम्भू" जैसी भावनात्मक प्रस्तुतियों से दर्शकों का मन मोह लिया। वहीं सचिन प्रसन्ना ने बाँसुरी वादन किया, जिनके साथ तबले पर श्रीकांत मिश्रा की संगत रही। पूनम शर्मा, महुआ बनर्जी, गोविंद गोपाल, रंजना राय, अमलेश शुक्ला और स्नेहा अवस्थी सहित दो दर्जन कलाकारों ने भी भजन प्रस्तुत कर माँ की स्वराधना की।

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तीसरी निशा में भी बहा सुर-ताल का प्रवाह
इससे पहले तीसरी निशा का कार्यक्रम पूरी रात अनवरत चलता रहा। विश्वविख्यात सितार वादक पं. देवब्रत मिश्रा ने प्रभाती में राग ललित की अद्भुत प्रस्तुति दी। उन्होंने झपताल और तीन ताल में बंदिशें सुनाईं और अंत में पहाड़ी धुन से समापन किया। उनके साथ कृष्णा मिश्रा (सह सितार) और प्रशांत मिश्रा (तबला) की संगत रही।

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प्रो. संगीता पंडित ने बनारस घराने की शैली में राग दुर्गा और मारवा में निबद्ध बंदिशें सुनाईं। अंत में माँ काली पर आधारित भजन से उन्होंने प्रस्तुति का समापन किया। तीसरी निशा में केडिया बंधुओं की सितार-सरोद जुगलबंदी, पं. संतोष नाहर का वायलिन वादन और मधुमिता भट्टाचार्य का शास्त्रीय गायन भी विशेष आकर्षण रहा।

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स्वर्णमुण्डमाला से हुआ मां का विशेष श्रृंगार
चौथे दिन श्रृंगार महोत्सव में माँ कूष्माण्डा का अलौकिक श्रृंगार किया गया। पंचगव्य स्नान के बाद हैदराबादी पीले और हरे दुपट्टों से माँ को सजाया गया। इसके बाद माँ को स्वर्णजड़ित मुखौटे की मुण्डमाला अर्पित की गई। विशेष रूप से कोलकाता से आए सफेद, लाल कमल, गुलाब, पारिजात और रजनीगंधा के फूलों से माँ को सजाया गया।

रात्रि आठ बजे आरती संपन्न हुई जिसे पं. कौशलपति द्विवेदी और पं. किशन दुबे ने उतारा। महंत राजनाथ दुबे और संयोजक पं. विश्वजीत दुबे ने कलाकारों का सम्मान किया, जबकि संचालन सोनू झा ने किया। इस अवसर पर पं. कौशलपति द्विवेदी, संजय दुबे, विकास दुबे और प्रकाश दुबे सहित कई गणमान्य उपस्थित रहे।

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