वाराणसी लोकसभा सीट जीतने के लिए निर्णायक होता है कुर्मी वोट, अपने पाले में करने में जुटे अखिलेश यादव
राजनीतिक जानकारों की मानें तो वाराणसी संसदीय क्षेत्र के रोहनिया और सेवापुरी विधानसभा में तो कुर्मियों की संख्या इतनी है कि ये जिधर रहेंगे, जीत उसी की होनी तय है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी पिछले वर्ष कुर्मी वोटों को रिझाने के उद्देश्य से सेवापुरी विधानसभा क्षेत्र के बरकी गांव में जनसभा कर चुके हैं।
वाराणसी शहर में भी कुर्मियों की संख्या कम नहीं है। इसी कारण भाजपा नेता ओमप्रकाश सिंह की पत्नी सरोज सिंह मेयर बन सकी थीं। कुर्मी जाति के ही कौशलेंद्र सिंह भी बनारस के महापौर का चुनाव जीत चुके हैं। बनारस के कुर्मियों को साधने के लिए कौशलेंद्र सिंह को राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का सदस्य भी बनाया गया है। इसी के तहत दिलीप सिंह पटेल को भाजपा काशी प्रांत की जिम्मेदारी सौंपी गई है। काशी प्रांत में जो भी जिले आते हैं, उनमें कुर्मियों की संख्या चुनाव को प्रभावित करने लायक है। आलोचक चाहे जो भी कहें, उत्तर प्रदेश में तो कुर्मी समाज की नेता में आज की तारीख में अनुप्रिया पटेल का ही नाम लिया जाता है। आगे क्या होगा, कोई नहीं जानता।
तब कुर्मी वोटरों ने पलट दिया था पासा
राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो आपातकाल के बाद 1980 में हुआ लोकसभा चुनाव काफी दिलचस्प हुआ, जब कुर्मी वोटरों के ध्रुवीकरण के चलते पं० कमलापति त्रिपाठी चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे। हुआ यह था कि इस चुनाव में राजनारायण और पं० कमलापति त्रिपाठी आमने-सामने थे। उस चुनाव में इंदिरा गांधी ने पं० कमलापति त्रिपाठी को वाराणसी से टिकट दिया। ऐसे में राजनारायण जी जनता पार्टी (सेक्युलर) से लड़कर चुनौती दे रहे थे।
इसी बीच, जनता पार्टी ने ओमप्रकाश सिंह को चुनावी मैदान में उतार कर सबको चौंका दिया। चुनाव प्रचार तूफानी चला और जब परिणाम आया तो सभी चौंक पड़े। कुर्मी वोटरों का ऐसा ध्रुवीकरण हुआ कि चुनाव परिणाम चौंकाने वाला रहा। ओमप्रकाश सिंह ने कुर्मी वोटरों में जबरदस्त सेंधमारी की और करीब 25-30 प्रतिशत कुर्मी वोटरों को अपनी तरफ करने में कामयाब हुए। जबकि राजनारायण गंगापुर के रहने वाले थे।
सिर्फ गंगापुर ही नहीं आसपास के गांवों के कुर्मी वोटरों में उनका अच्छा-खास प्रभाव था। लेकिन वोटर तो वोटर, उन्होंने अपना रंग दिखा दिया और इस चुनाव में पं० कमलापति त्रिपाठी ने 20 हजार वोटों से जीत हासिल की। इस चुनाव ने राजनारायण को सकते में डाल दिया था।
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