मां अन्नपूर्णा मंदिर का कुंभाभिषेक : गुरु पूजा के साथ कुंकुमार्चन, वैदिक ब्राह्मणों ने किया मंत्रोच्चार, शंकराचार्य के सानिध्य में चल रहा नौ दिवसीय महाअनुष्ठान

वाराणसी। मां अन्नपूर्णा मंदिर के कुंभाभिषेक के दूसरे दिन 75 वैदिक ब्राह्मणों ने कुमकुमार्चन किया। इस दौरान देवी को कुमकुम और सिंदूर अर्पित करने के साथ मंत्रोच्चार किया। मंदिर के कुंभाभिषेक का नौ दिवसीय अनुष्ठान शृंगेरी पीठ के शंकराचार्य विधुशेखर भारती महाराज के सानिध्य में चल रहा है।
रविवार की सुबह महंत शंकर पूरी ने सर्वप्रथम अपने गुरु की पूजा की। कुंकुंमार्चन संकल्प लिया और 75 वैदिक ब्रामणो से मंत्रो के साथ शुरू किया गया। कुमकुमाअर्चन में श्रीचक्र को कुमकुम (सिंदूर) अर्चन करना शामिल है, जो देवी का स्वरूप है। ललिता सहस्रनाम का जाप 10 दिनों की अवधि में कुल 10,000 बार किया जाएगा। ललिता सहस्रनाम में आदि देवी मां के 1,000 दिव्य नाम हैं और इस प्रकार 10,000 पाठ एक करोड़ के बराबर होते हैं। कोटिकुमारचन के साथ सुवासिनी पूजा, कुमारी पूजा, ललिताहोमा और संतर्पणम भी किया जाता है।
भारतीय पूजन पद्धति में पूजा की शुरुआत हल्दी व कुमकुम से की जाती है। ये उतना ही महत्वपूर्ण माना जाता है, जितना कि किसी भी आयोजन या पूजन से पहले श्री गणेश और गौरी मां का पूजन। श्री गौरी मां को हल्दी चढ़ाया जाता है और गणपति को कुमकुम अर्पित करते हैं। कुमकुम पवित्रता व निर्मलता का प्रतीक माना जाता है। ऐसा मानते हैं कि कुमकुम लगाने पर नकारात्मक ऊर्जा असर नहीं करती है इसलिए आज्ञा चक्र पर कुमकुम धारण किया जाता है। यह मंगल ग्रह का भी प्रतीक माना जाता है जो अत्यंत मंगलदायी और उर्जा से भरपूर होता है। महालक्ष्मी को कुमकुम अर्पित जाता है जो धन, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
देवी की मूर्ति पर कुमकुमार्चन करने का शास्त्रीय आधार
मूल कार्यरत शक्ति तत्त्व की निर्मिति लाल रंगके प्रकाशसे हुई है, इस कारण शक्तितत्त्व के दर्शक के रूपमें देवी की पूजा कुमकुम से करते हैं। कुमकुम से प्रक्षेपित गंध-तरंगों की सुगंध की ओर ब्रह्मांडांतर्गत शक्तितत्त्व की तरंगें अल्प कालावधि में आकृष्ट होती हैं, इसलिए मूर्ति में सगुण तत्त्व को जागृत करने हेतु लाल रंग के दर्शक तथा देवीतत्त्व को प्रसन्न करने वाली गंध-तरंगों के प्रतीक के रूप में कुमकुम-उपचार को देवी पूजन में अग्रगण्य स्थान दिया गया है। मूल शक्तितत्त्व के बीज का गंध भी कुमकुम से फैलने वाली सुगंध से साधर्म्य दर्शाता है, इसलिए देवी को जाग्रत करने हेतु कुमकुम के प्रभावी माध्यम का प्रयोग किया जाता है।