जानिए क्या है शालिग्राम रूप में तुलसी से विवाह और दीपदान का महत्व और परंपरा
Nov 23, 2023, 13:28 IST
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वाराणसी। पांच महीने के बाद भगवान विष्णु गुरुवार को देवउठनी एकादशी पर योग निद्रा से जाग गए हैं। इसके साथ ही चातुर्मास का समाप्त हो गया। ऐसे में सनातन धर्म में मांगलिक कार्य शुरू हो जाता है। धर्म की नगरी काशी के असी क्षेत्र में भगवान विष्णु का एक सैकड़ो वर्ष पुरानी प्रतिमा है। जहां भगवान विष्णु को जगाया गया और उनका विधि विधान के साथ पूजा अर्चन कर आरती उतारी गई। सुबह से इस मंदिर पर पूजा अर्चन करने वालों का तांता लगा रहा।
हिंदू पंचांग के मुताबिक कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी का विशेष दिन है। इसे देव प्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन सूरज उगने से पहले ब्रह्म मुहूर्त में शंख बजाकर भगवान विष्णु को जगाया गया। दिनभर पूजा और भगवान का श्रृंगार होगा। वही देर शाम को भगवान विष्णु को शालग्राम रूप से तुलसी विवाह होगा और दीपदान किया जाएगा। पुराणों के मुताबिक विष्णु जी ने शंखासुर दैत्य को मारा था और उसके बाद चार महीने के लिए योग निद्रा में चले गए थे। फिर कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर चार महीने का वक्त पूरा होने के बाद जागते हैं।पौराणिक मान्यता ये भी है कि इसी दिन से भगवान विष्णु दोबारा सृष्टि चलाने की जिम्मेदारी संभालते हैं और इसी दिन से हर तरह के मांगलिक काम भी शुरू हो जाते हैं। इसलिए देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु की विशेष पूजा करने का महत्व है।
देव प्रबोधिनी एकादशी पर तीर्थ स्नान-दान, भगवान विष्णु की विशेष पूजा और शालिग्राम-तुलसी विवाह के साथ ही दीपदान करने की भी परंपरा है। इन सभी धर्म-कर्म से कभी न खत्म होने वाला पुण्य मिलता है। पुराणों में बताया गया है कि कार्तिक महीने में दीपदान से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। 23 से 27 नवंबर तक कार्तिक त्रयोदशी, बैकुंठ चतुर्दशी और कार्तिक पूर्णिमा पर्व भी रहेंगे। इन 3 तिथियों में दीपदान से भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की विशेष कृपा मिलती है।
इस दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम अवतार और माता तुलसी का विवाह किया जाता है। भगवान की आरती करें। उन्हें सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर रखें क्योंकि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं। इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें। इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।
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