काशी का पिशाचमोचन कुंड: पीपल के पेड़ पर क्यों चिपकाते हैं सिक्के? प्रेत बाधा से मिलती है मुक्ति, या कुछ और…

pishachmochan kund
WhatsApp Channel Join Now

वाराणसी। मोक्ष की नगरी काशी में एक जगह ऐसा है, जहां अतृप्त आत्माओं का ठिकाना है। सुनने में थोड़ा अजीब लग रहा होगा, लेकिन यह सच है। काशी के इस जगह रात के समय में एक नया व्यक्ति जाने से पहले दस बार सोचता है। क्योंकि मान्यता है कि यहां अतृप्त आत्माएं पिशाच बनकर रहती हैं। इसका वर्णन वेदों व पुराणों में भी मिलता है। पुराणों में कहा गया है कि इस जगह की स्थापना स्वयं भगवान शिव ने की थी। उन्होंने पिशाचों की मुक्ति के लिए पिशाचमोचन कुंड की स्थापना की थी। 

pishachmochan kund

दो दिन बाद से शुरू हो रहे पितृपक्ष के लिए लोग अभी से ही काशी के पिशाचमोचन पर आने लगे हैं। पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करने लगे हैं। काशी के पिशाचमोचन कुंड में भी इस दौरान श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि हो गई है। लहुराबीर के निकट स्थित यह कुंड अपने रहस्यमय कर्मकांडों और अनूठे अनुष्ठानों के लिए जाना जाता है। काशी, जिसे मोक्ष का द्वार माना जाता है, यहां पिशाचमोचन कुंड विशेष महत्व रखता है, जहां लोग अपने पितरों की आत्मा की मुक्ति के लिए तर्पण करते हैं।

pishachmochan kund

"त्रिपिंडी श्राद्ध” से पितृ ऋण से मुक्ति

पिशाचमोचन कुंड के पास स्थित एक पीपल का पेड़ भी खास मान्यताओं का केंद्र है। इस पेड़ में ठोंके गए सिक्के और कीलें ऐसी आत्माओं का प्रतीक मानी जाती हैं जो अतृप्त अवस्था में हैं। यह देश का एकमात्र ऐसा स्थान है जहां अकाल मृत्यु और अतृप्त आत्माओं के लिए "त्रिपिंडी श्राद्ध" किया जाता है। मान्यता है कि पिशाचमोचन में तर्पण करने से मृतक आत्माओं को शांति मिलती है और पितृ ऋण से मुक्ति प्राप्त होती है।

pishachmochan kund

तर्पण से खुलते हैं बैकुठ के द्वार

पिशाचमोचन कुंड का यह पेड़ मृत व्यक्तियों की तस्वीरों, उनके कपड़ों और प्रतीक चिह्नों से भरा हुआ है। ऐसा विश्वास है कि अकाल मृत्यु से मरने वाले व्यक्तियों की आत्मा यहीं से मोक्ष प्राप्त कर सकती है। इस कुंड में देश-विदेश से लोग आते हैं ताकि पितृ तर्पण के माध्यम से मोक्ष प्राप्त कर सकें। यहाँ की विशेषता यह भी है कि तर्पण के दौरान बैकुंठ के द्वार खुलने की मान्यता है।

pishachmochan kund

अकाल मृत्यु वाली आत्माओं की शांति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध

इस पीपल के पेड़ पर सिक्के या कील गाड़ने की परंपरा पूरे साल चलती है, लेकिन पितृपक्ष के 15 दिनों का विशेष महत्व है। इन दिनों में तर्पण और श्राद्ध से आत्माओं को मुक्ति मिलती है। यहाँ न केवल पितरों का श्राद्ध किया जाता है, बल्कि उन ज्ञात-अज्ञात आत्माओं का भी त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है जो अकाल मृत्यु का शिकार होती हैं।

pishachmochan kund

गंगा अवतरण से पहले हुआ था पिशाचमोचन कुंड का उद्गम

पिशाचमोचन के तीर्थ पुरोहित सौरभ दीक्षित के अनुसार, पिशाचमोचन कुंड का उद्गम गंगा अवतरण से पहले का माना जाता है। यहाँ सबसे पहले ब्रह्म राक्षस को मुक्ति मिली थी, और तभी से यह स्थान वरदानी तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ पितृ दोष से मुक्ति के लिए तर्पण किया जाता है। पेड़ पर सिक्के और कील लगाने की परंपरा श्रद्धालुओं को यह याद दिलाने के लिए है कि उनके पितृ यहाँ हैं। कई लोग इसे प्रेत बाधाओं से मुक्ति के उपाय के रूप में भी मानते हैं।

pishachmochan kund

पितृपक्ष में तामसिक भोजन का करते हैं त्याग

पितृपक्ष में तर्पण के दौरान कुछ विशेष परंपराएं भी मानी जाती हैं, जैसे इस दौरान बाल और दाढ़ी नहीं कटवाना चाहिए, क्योंकि इससे धन की हानि होती है। तामसिक भोजन से परहेज करते हुए सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए। ब्रह्म पुराण के अनुसार, पितृपक्ष में पंचबलि करने से पितृदोष का निवारण होता है। पंचबलि में सबसे पहला ग्रास गाय के लिए, दूसरा कुत्ते के लिए, तीसरा कौए के लिए, चौथा देव बलि और पाँचवा चीटियों के लिए निकाला जाता है।

हमारे टेलीग्राम ग्रुप को ज्‍वाइन करने के लि‍ये  यहां क्‍लि‍क करें, साथ ही लेटेस्‍ट हि‍न्‍दी खबर और वाराणसी से जुड़ी जानकारी के लि‍ये हमारा ऐप डाउनलोड करने के लि‍ये  यहां क्लिक करें।

Share this story