काशी की 60 साल पुरानी ‘पलंगतोड़ मिठाई, स्वाद और परंपरा का अनोखा संगम
रिपोर्ट : ओमकार नाथ
वाराणसी। काशी केवल आध्यात्म और संस्कृति की नगरी ही नहीं, बल्कि अपने अनूठे स्वाद और पारंपरिक व्यंजनों के लिए भी पूरी दुनिया में पहचानी जाती है। यहां की गलियों में हर मौसम का अपना जायका है, लेकिन सर्दियों में मिलने वाली कुछ खास मिठाइयों का इंतजार लोग पूरे साल करते हैं। ऐसी ही एक खास और चर्चित मिठाई है पलंगतोड़ मिठाई। नाम जितना अनोखा, स्वाद और ताकत उससे कहीं ज्यादा। यह मिठाई न केवल बनारस की पहचान है, बल्कि सर्दियों में ऊर्जा और पोषण का पारंपरिक स्रोत भी मानी जाती है।
पलंगतोड़ मिठाई बनारस की उन विरासत मिठाइयों में से है, जो आधुनिक मशीनों या गैस की आंच पर नहीं, बल्कि सदियों पुरानी देसी विधि से बनाई जाती है। दूध, मलाई, केसर, चीनी और ढेर सारे ड्राई फ्रूट्स से तैयार यह मिठाई परत-दर-परत बनाई जाती है और धीमी आंच पर घंटों पकती है। यही वजह है कि इसका स्वाद जबान पर चढ़कर बोलता है।

सिर्फ सर्दियों की सौगात
यह मिठाई साल भर नहीं मिलती। दीपावली के बाद से लेकर होली तक, यानी लगभग तीन महीने ही इसे बनाया जाता है। ठंड के मौसम में इसकी मांग इतनी ज्यादा होती है कि चंद घंटों में ही पूरी मिठाई बिक जाती है। बनारस घूमने आने वाले देश-विदेश के पर्यटक खास तौर पर इस मिठाई को चखने के लिए चौक क्षेत्र का रुख करते हैं।

60 साल पुरानी परंपरा
पलंगतोड़ मिठाई का यह खास स्वाद पिछले करीब 60 वर्षों से लोगों को आकर्षित कर रहा है। चौक क्षेत्र के पक्के महाल में स्थित परशुराम मंदिर के सामने भैरव सरदार की दूध, दही और मलाई की पुरानी दुकान इस मिठाई के लिए सबसे ज्यादा मशहूर है। यहां सुबह से ही कारीगर मिठाई बनाने में जुट जाते हैं और शाम होते-होते ग्राहकों की भीड़ लगनी शुरू हो जाती है।

Live Vns News से बातचीत में भैरव सरदार के पुत्र नीरज बताते हैं कि इस मिठाई को बनाने में करीब 12 घंटे का समय लगता है, लेकिन बिक्री इतनी तेज होती है कि तीन-चार घंटे में ही सब खत्म हो जाता है। उन्होंने बताया कि पलंगतोड़ मिठाई को बनाने में रसोई गैस का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं होता। अगर गैस पर बनाई जाए तो उसका असली स्वाद नहीं आ पाता।

उपलों की धीमी आंच, स्वाद का राज
नीरज के मुताबिक, इस मिठाई की खासियत है कि इसे गाय के गोबर से बने उपलों की धीमी धुएं वाली आंच पर पकाया जाता है। बड़े बर्तनों में दूध को घंटों गर्म किया जाता है। जैसे-जैसे दूध पकता है, ऊपर मलाई की मोटी परत जमती जाती है। इस परत को बेहद सावधानी से निकाला जाता है।

मलाई निकालने के लिए लोहे या स्टील के औजार नहीं, बल्कि पत्तल का इस्तेमाल किया जाता है। भैरव सरदार के पुत्र धीरज बताते हैं कि पत्तल से मलाई उतारना सबसे कठिन काम है। इसमें जरा सी लापरवाही पूरी परत को खराब कर सकती है। साथ ही पत्तल से निकालने पर मिठाई में एक अलग ही देसी स्वाद आता है, जो इसकी पहचान बन चुका है।

परत-दर-परत तैयार होती है मिठाई
मलाई की परतों को एक-एक कर सहेजा जाता है और फिर उन्हें क्रम से बिछाया जाता है। हर परत के बीच केसर, बादाम, अखरोट और अन्य ड्राई फ्रूट्स डाले जाते हैं। नीरज बताते हैं कि क्वालिटी से कभी समझौता नहीं किया जाता। इस्तेमाल होने वाले ड्राई फ्रूट्स और केसर हमेशा बेहतरीन होते हैं।
मिठाई में मिठास का संतुलन भी बेहद अहम है। चीनी की मात्रा इस तरह रखी जाती है कि स्वाद न ज्यादा मीठा हो, न फीका। मलाई निकालने के बाद जो गाढ़ा दूध बचता है, उसे भी इस मिठाई में शामिल किया जाता है, जिससे इसका स्वाद और पौष्टिकता दोनों बढ़ जाती है।

नाम के पीछे की कहानी
पलंगतोड़ मिठाई का नाम भी अपने आप में दिलचस्प है। नीरज बताते हैं कि उनके दादा लाला सरदार ने इस मिठाई को बनाना शुरू किया था। इसमें बादाम, केसर जैसे गर्म तासीर वाले पदार्थ डाले जाते हैं, जिससे शरीर में जबरदस्त ऊर्जा मिलती है। पहले जमाने में माना जाता था कि इसे खाने के बाद इतनी ताकत आती है कि “पलंग तोड़ने” जितना जोश आ जाता है। यही वजह है कि लोगों ने मजाकिया अंदाज में इसका नाम पलंगतोड़ रख दिया, जो बाद में इसकी पहचान बन गया। कुछ लोग इसे “बिस्तर बंद” या “बेड रोल” के नाम से भी जानते हैं, लेकिन बनारस में यह पलंगतोड़ मिठाई के नाम से ही मशहूर है।
शादियों से जुड़ा खास रिश्ता
करीब 60 साल पहले जब इस मिठाई की बिक्री शुरू हुई, तब यह खास तौर पर शादियों से जुड़ गई। नए-नवविवाहित जोड़े और शादी के बाद के परिवार इस मिठाई को खाने जरूर आते थे। शाम के समय इसकी बिक्री ज्यादा होती थी, जिससे इसके नाम और लोकप्रियता को और बल मिला।
कीमत और मांग
फिलहाल पलंगतोड़ मिठाई की कीमत करीब 1500 रुपये प्रति किलो है। भैरव सरदार बताते हैं कि लोग इसकी कीमत नहीं, बल्कि स्वाद और परंपरा देखते हैं। बनारस आने वाले सैलानी खास तौर पर इस मिठाई के बारे में पूछते हुए दुकान तक पहुंचते हैं। कई बार लोगों को अपनी बारी के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है।
कॉपी तो हो रही, स्वाद नहीं
भैरव सरदार का कहना है कि अब कई लोग उनकी मिठाई की नकल करने लगे हैं, लेकिन जो स्वाद और भरोसा उनके यहां मिलता है, वह कहीं और नहीं। यह काम उनके दादा-परदादा के समय से चला आ रहा है और वे क्वालिटी और क्वांटिटी दोनों से कोई समझौता नहीं करते।
मेहनत से भरी पूरी प्रक्रिया
नीरज बताते हैं कि इस मिठाई की तैयारी भोर से ही शुरू हो जाती है। सबसे पहले शुद्ध दूध मंगाया जाता है, फिर उसे बड़े बर्तनों में डालकर उपलों की धीमी आंच पर पकाया जाता है। दोपहर करीब तीन बजे तक जब दूध पूरी तरह तैयार हो जाता है, तब मलाई उतारने और परतें जमाने का काम शुरू होता है। इसके बाद धीरे-धीरे मिठाई का अंतिम रूप सामने आता है।
क्यों है खास?
पलंगतोड़ मिठाई सिर्फ एक मिठास नहीं, बल्कि बनारस की संस्कृति, परंपरा और सर्दियों की गर्माहट का प्रतीक है। केसर, बादाम और अखरोट से भरपूर यह मिठाई शरीर को ताकत देती है और ठंड में खास तौर पर पसंद की जाती है। हालांकि, यह काफी भारी होती है, इसलिए कम पाचन शक्ति वाले लोग इसे सीमित मात्रा में ही खाते हैं।
कहां मिलेगी?
यह मिठाई मुख्य रूप से बनारस के चौक क्षेत्र, पक्के महाल में परशुराम मंदिर के पास मिलती है। हालांकि अब कुछ अन्य जगहों पर भी यह बनने लगी है, लेकिन पारंपरिक स्वाद आज भी यहीं सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है।
अगर आप सर्दियों में बनारस आने का मन बना रहे हैं, तो काशी की इस ऐतिहासिक और ताकत से भरपूर मिठाई का स्वाद चखे बिना आपकी यात्रा अधूरी मानी जाएगी। पलंगतोड़ मिठाई सिर्फ खाने की चीज नहीं, बल्कि काशी की विरासत का मीठा अनुभव है।

