काशी-तमिल संगमम 4.0 : आकर्षण का केंद्र बना खादी स्टॉल, गांधी के स्वदेशी से लेकर मोदी के ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ तक की झलक
वाराणसी। नमो घाट पर जारी काशी–तमिल संगमम 4.0 केवल एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की विविधता को एक सूत्र में पिरोने वाली जीवंत परंपराओं का उत्सव बन गया है। आयोजन में लगे खादी स्टॉल ने विशेष आकर्षण बटोरा, जो सिर्फ वस्त्र बेचने का स्थान नहीं बल्कि गांधी के स्वदेशी दर्शन और प्रधानमंत्री मोदी के ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के विज़न का सुंदर संगम बनकर उभरा।

महात्मा गांधी ने खादी को आत्मनिर्भरता, स्वदेशी और ग्रामीण भारत की आर्थिक स्वतंत्रता का आधार माना था। यह मात्र एक वस्त्र नहीं बल्कि भारतीय सभ्यता की आत्मा और आमजन की भागीदारी का प्रतीक था। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान खादी ने देश के गांवों को हाथ में रोजगार की डोर थमाई और विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार का शक्तिशाली माध्यम बना।

प्रधानमंत्री ने इसी विरासत को नए आयामों के साथ पुनर्जीवित किया है। मोदी के नेतृत्व में खादी को एक आधुनिक, टिकाऊ और वैश्विक पहचान मिली है। ‘खादी फॉर नेशन, खादी फॉर फैशन’ के मंत्र से खादी ने युवाओं, डिजाइनरों और वैश्विक उपभोक्ताओं तक खुद को पुनर्परिभाषित किया है। उत्पादन और बिक्री में रिकॉर्ड वृद्धि ने गाँव-गाँव के कारीगरों, विशेषकर महिलाओं की आजीविका को मजबूत किया है। खादी आज न केवल फैशन का विकल्प है बल्कि सस्टेनेबल जीवनशैली की दिशा में देश का अग्रणी कदम भी है।
इसी पृष्ठभूमि में काशी–तमिल संगमम 4.0 का खादी स्टॉल दोनों प्रदेशों की पारंपरिक बुनाई शैलियों को जोड़ने वाला एक सांस्कृतिक सेतु बन गया। यहां काशी की सूक्ष्म कारीगरी और तमिलनाडु की प्राचीन वस्त्र परंपरा का अनोखा मेल देखने को मिला। खादी के कुर्ते, दुपट्टे, ड्रेस मटेरियल व अन्य हस्तनिर्मित वस्त्र उत्तर और दक्षिण भारत को जोड़ने वाले सांस्कृतिक धागे का प्रत्यक्ष प्रमाण बने।
स्टॉल संचालकों ने बताया कि बनारसवासियों ने तो खादी को अपनाया ही, तमिलनाडु से आए प्रतिनिधियों ने भी बेहद उत्साह दिखाया। वे प्रत्येक कपड़े को छूकर उसकी बनावट, बुनाई, टिकाऊपन और पर्यावरणीय मूल्य को समझते हुए खरीदते दिखे। उनका यह रुझान बताता है कि खादी केवल वस्त्र नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में योगदान, स्थानीय कारीगरों के सम्मान और टिकाऊ विकास के प्रति जागरूकता का प्रतीक है।
नमो घाट पर स्थित स्टॉल संख्या 36–37 इस बात का जीवंत उदाहरण बन चुका है कि गांधीजी के स्वदेशी का संदेश आज नए भारत के सपने के साथ मजबूती से खड़ा है। खादी अब एक धागा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता, सांस्कृतिक सामंजस्य और टिकाऊ भविष्य की साझी आशा का बंधन है। काशी–तमिल संगमम 4.0 ने यह संदेश स्पष्ट कर दिया है कि भारत की विविधता केवल रंग-रूप की नहीं, बल्कि विचारों, परंपराओं और जीवन मूल्यों की समृद्ध विरासत है—जिसे खादी आज भी गर्व से संभाले हुए है।

