काशी तमिल संगमम 4.0 : महाकवि सुब्रमण्यम भारती की 144वीं जयंती मनाई, साहित्यिक और सांस्कृतिक एकता की दिखी अनोखी छटा

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वाराणसी। काशी तमिल संगमम-4.0 के दसवें दिन महान तमिल कवि, साहित्यकार, समाज सुधारक और स्वतंत्रता संग्राम के प्रखर स्वर महाकवि सुब्रमण्यम भारती की 144वीं जयंती अत्यंत उत्साह और गौरव भाव के साथ मनाई गई। यह विशेष आयोजन सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ क्लासिकल तमिल (CICT) के स्टॉल पर आयोजित हुआ, जहां संस्थान के कर्मचारियों के साथ महर्षि अगस्त्य वाहन अभियान (SAVE) समूह के लगभग 50 सदस्य भी शामिल हुए।

कार्यक्रम के दौरान CICT ने SAVE समूह के डेलिगेट्स का सम्मान किया। माहौल को और जीवंत बनाने के लिए संस्थान द्वारा महाकवि भारती को समर्पित पोस्टर और सोशल मीडिया रील्स तैयार कर साझा किए गए। प्रतिभागियों के बीच मिठाइयां और चॉकलेट वितरित की गईं, जिससे समारोह में सौहार्द, साहित्यिक भाव और सांस्कृतिक एकता का संदेश और प्रभावी रूप से सामने आया।

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इस आयोजन का मुख्य आकर्षण महाकवि भारती के परिवार के सदस्यों की उपस्थिति रही। सभी ने मिलकर उनके अद्वितीय साहित्यिक योगदान, सामाजिक जागरण में उनकी भूमिका और स्वतंत्रता आंदोलन में उनके प्रखर विचारों को याद किया। CICT के अधिकारियों ने कहा कि काशी तमिल संगमम् जैसे प्रयास उत्तर और दक्षिण भारत के सांस्कृतिक सेतु को और मजबूत बनाते हैं, तथा साहित्य और स्वतंत्रता संग्राम की विरासत को नई पीढ़ी तक पहुँचाने में यह पहल अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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SAVE समूह के कार्तिक सरस्वात ने अपनी यात्रा के अनुभव साझा करते हुए कहा, “हम बीते 10 दिनों में विभिन्न जिलों का भ्रमण करते हुए जहाँ-जहाँ पहुँचे, वहाँ हमारा गर्मजोशी से स्वागत किया गया। आज काशी में बाबा विश्वनाथ के दर्शन के बाद महाकवि भारती के जीवन को नज़दीक से जानना एक प्रेरणादायक अनुभव रहा। तेनकासी से काशी की यह यात्रा देश की विविधता और एकता को समझने का अवसर साबित हुई है। शिक्षा मंत्रालय की पहल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के संकल्प को यह संगमम् नई ऊर्जा प्रदान करता है। इस बार भाषाई आदान-प्रदान भी विशेष आकर्षण है, यहां कई लोग तमिल भाषा में संवाद करते हुए सहज रूप से मिले।”

महाकवि सुब्रमण्यम भारती (जन्म: 11 दिसंबर 1882) तमिल साहित्य के आधुनिक युग के अग्रदूत माने जाते हैं। “महाकवि” की उपाधि से सम्मानित भारती ने तमिल कविता को नई दिशा दी। वे महिलाओं के अधिकार, बाल विवाह के विरोध, सामाजिक सुधार, धार्मिक पुनर्जागरण और अद्वितीय देशभक्ति के प्रतीक रहे। ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनके साहित्यिक तेवर आज भी प्रेरणादायक हैं। वाराणसी के हनुमान घाट स्थित उनका आवास आज भी इतिहास और साहित्य प्रेमियों के आकर्षण का केंद्र है, जहाँ उनके परिवार के सदस्य वर्तमान में भी रहते हैं।

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