कांच में रचा-बसा दिखा काशी का कला संसार : काशी तमिल संगमम 4.0 में चमकते मनकों ने खींचा हर किसी का ध्यान

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वाराणसी। सदियों पुरानी काशी अपनी आध्यात्मिकता के साथ-साथ अपनी समृद्ध कला, हस्तशिल्प और सांस्कृतिक विरासत के लिए भी विश्वभर में प्रसिद्ध है। इसी विरासत का एक अनमोल अध्याय है—कांच के मनकों की कला, जो अपनी नजाकत, रंगों की चमक और बारीक कारीगरी के कारण आज भी लोगों को आकर्षित करती है। काशी तमिल संगमम 4.0 में लगे स्टॉल नंबर 11 पर यह कला एक बार फिर अपने नए रूप में सबके सामने चमक रही है।

तमिलनाडु के आगंतुकों में दिखा उत्साह, बाबूलाल के चेहरे पर संतोष की चमक
स्टॉल के कारीगर बाबूलाल बताते हैं कि चेन्नई और तमिलनाडु के विभिन्न शहरों से आए आगंतुक कांच की इस कला को देखकर मंत्रमुग्ध हो जा रहे हैं।
लोग न केवल कांच को पिघलते और मनकों का रूप लेते हुए देख रहे हैं, बल्कि बड़ी संख्या में खरीदारी भी कर रहे हैं।

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बाबूलाल कहते हैं “यह कला लगभग खत्म होने लगी थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए इस मंच ने हमें नई उम्मीद दी है। काशी तमिल संगमम ने हमारी कला को तमिलनाडु तक पहचान दिलाई है। अब हमें बड़े बाजार की संभावना दिख रही है।”

उनके अनुसार, पहले यह कला केवल स्थानीय स्तर तक सीमित थी, लेकिन अब इसे दक्षिण भारत तक अभूतपूर्व पहचान मिल रही है। यह न केवल व्यापार को गति दे रहा है, बल्कि एक भारत-श्रेष्ठ भारत की अवधारणा को भी मजबूत कर रहा है।

कांच के मनकों का ऐतिहासिक वैभव — सदियों पुरानी शिल्पकला का आधुनिक चमकदार रूप
वाराणसी की कांच शिल्पकला GI टैग प्राप्त कलाओं में से एक है। यह सिर्फ हस्तकला नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा और कारीगरों की अद्भुत कुशलता का प्रतीक है। 

बहुत ऊँचे तापमान पर तैयार होते हैं मनके
कांच को 600 से 750 डिग्री सेल्सियस पर पिघलाया जाता है। पिघले कांच को लोहे की छड़ पर लपेटकर आकार दिया जाता है। खोखले मनके बनाने के लिए शिल्पकार मुंह से फूंकने की तकनीक का प्रयोग करते हैं। आकार देने के बाद इन्हें धीरे-धीरे ठंडा किया जाता है ताकि मजबूती बनी रहे। अंत में इन्हें विभिन्न पॉलिशिंग प्रक्रियाओं से चिकना और चमकदार बनाया जाता है। इन बारीकियों के कारण काशी के कांच मनके दुनिया भर में लोकप्रिय हैं।

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काशी तमिल संगमम — सांस्कृतिक एकता का चमकता सेतु
जब तमिलनाडु के आगंतुक काशी के मनके देखते, छूते और खरीदकर अपने घर लेकर जाते हैं, तो वे सिर्फ एक शिल्प वस्तु नहीं ले जाते वे दो संस्कृतियों के बीच भावनात्मक पुल लेकर जाते हैं। यह संगमम यह सिद्ध करता है कि परंपराएँ केवल कला नहीं होतीं, वे उन भावनाओं का संगम हैं जो उत्तर से दक्षिण तक लोगों को जोड़ती हैं।

कला जो पीढ़ियों को जोड़ती है
कांच के खिलौनों और चमकते मनकों में काशी का इतिहास, कारीगरों की पीढ़ियों की मेहनत, और भारतीय संस्कृति की विविधता की झलक मिलती है।

संगमम में मिल रहा अपार प्रेम इस बात का प्रमाण है कि भारतीय कला का आकर्षण कभी पुराना नहीं होता। काशी के ये चमकते मनके बताते हैं कि—
कला जिंदा है, परंपरा जिंदा है, और एक भारत-श्रेष्ठ भारत का सपना भी जिंदा है। 

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