काशी-तमिल संगमम 4.0 : लेखक अमीष त्रिपाठी ने छात्रों से किया संवाद, बोले, ऊर्जा और सृजन शक्ति की केंद्र है काशी 

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वाराणसी। मशहूर लेखक और रामचंद्र सीरीज व द शिवा ट्रायलॉजी के रचयिता अमीश त्रिपाठी ने काशी तमिल संगमम 4.0 के दौरान बुधवार को बीएचयू में छात्रों से संवाद किया। उन्होंने कहा कि हमें भारतीय विचार परंपरा की तीन महत्वपूर्ण सीखों को हमेशा याद रखना चाहिए। भारत किसी पर आक्रमण नहीं करता, भारतीय स्वभावतः न्यायप्रिय हैं, इसलिए हमें विश्व गुरु की तरह आचरण करना चाहिए। उन्होंने काशी की भी महिमा का बखान किया। बोले, काशी सिर्फ एक शहर नहीं बल्कि ऊर्जा और सृजन शक्ति का केंद्र है। 

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अमीष त्रिपाठी ने अपनी नई पुस्तक “चोल टाइगर्स” के बारे में बात की। बताया कि काशी के घाटों पर बैठकर ही लिखी गई है। उन्होंने कहा कि काशी उनके लिए सिर्फ शहर नहीं, बल्कि एक दिव्य ऊर्जा का केंद्र है, जहां बैठकर उनके पात्र और कथाएं स्वतः सामने आ जाती हैं। अमीश ने बताया कि उनकी नई किताब राजेंद्र चोल द्वारा सोमनाथ मंदिर विध्वंस का बदला लेने हेतु महमूद गजनवी पर की गई लगभग एक हजार वर्ष पुरानी सामरिक कार्रवाई पर आधारित है। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक युद्धकथानक नहीं, बल्कि भारत की सामरिक क्षमता, सांस्कृतिक अस्मिता और साहस का ऐतिहासिक प्रमाण है। उन्होंने स्पष्ट किया कि शिवभक्त राजेंद्र चोल की इस सर्जिकल स्ट्राइक और गजनवी की हत्या के बारे में देश की नई पीढ़ी को अवश्य जानना चाहिए।

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काशी : साहित्यिक साधना का तीर्थ
संवाद के दौरान अमीश ने बताया कि काशी से उनका गहरा व्यक्तिगत संबंध है। उनके दादा पंडित बाबूलाल त्रिपाठी बीएचयू में प्रोफेसर थे, इसलिए वह स्वयं को आधा तमिलनाडु और आधा काशीवासी मानते हैं। उन्होंने बीएचयू के प्रो. चंद्रमौलि उपाध्याय को अपना “गुरु” और “बाबा” बताया। उन्होंने कहा कि वह काशी में अक्सर लो-प्रोफाइल में आते हैं और यहां की शांति में साहित्यिक साधना करते हैं, इसलिए कोई फोटो-वीडियो साझा नहीं करते।

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आगामी पुस्तकों का किया खुलासा
अमीश ने बताया कि उनकी आने वाली पुस्तकों में काशी व दक्षिण भारत के ऐतिहासिक संबंधों पर आधारित एक उपन्यास शामिल है। इसके अलावा, तमिलनाडु के प्राचीन पांडियन राज्य में हुए अन्याय और वीरता की प्रतीक कन्नगी पर आधारित पुस्तक भी उनकी सूची में है।

भारत को विश्व गुरु बनाने पर जोर
छात्रों से बातचीत में उन्होंने भारतीय विचार परंपरा की तीन महत्वपूर्ण सीखों को याद रखने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि भारत किसी पर आक्रमण नहीं करता, भारतीय स्वभावतः आक्रामक नहीं बल्कि न्यायप्रिय हैं, इसलिए हमें महाशक्ति नहीं बल्कि विश्व गुरु की तरह आचरण करना चाहिए। उनका कहना था कि भारत जब वैश्विक शक्ति बनने की ओर बढ़ रहा है, तब हमें अपने प्राचीन ज्ञान, संतुलन और सांस्कृतिक आत्मविश्वास को नहीं भूलना चाहिए। अंत में उन्होंने कहा कि काशी तमिल संगमम केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की साझा संस्कृति, परंपरा और हजारों वर्षों की जीवंत विरासत का उत्सव है।

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