काशी तमिल संगमम 4.0 : तमिल लोक कला की गूंज, काई सिलंबट्टम ने रचा उत्साह और अनुशासन का अद्भुत दृश्य
वाराणसी। काशी तमिल संगमम 4.0 के तहत आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में तमिलनाडु की प्राचीन और वीर परंपरा से जुड़ी लोककला काई सिलंबट्टम की दमदार प्रस्तुति ने दर्शकों को गहरे रूप से प्रभावित किया। तमिलनाडु से आए तुलसीराम के दल द्वारा प्रस्तुत इस कला प्रदर्शन ने काशी के सांस्कृतिक मंच पर ऊर्जा, अनुशासन और कलात्मक कौशल का अनोखा संगम प्रस्तुत किया।

काई सिलंबट्टम, तमिल समाज की प्रसिद्ध युद्ध-कला सिलंबम से विकसित एक विशिष्ट लोक नृत्य और प्रदर्शन कला है। इसमें कलाकार लकड़ी की छड़ियों के साथ तालबद्ध, सशक्त और नियंत्रित गतियों का प्रदर्शन करते हैं। यह कला केवल शारीरिक कौशल ही नहीं, बल्कि मानसिक एकाग्रता, सामूहिक समन्वय और अनुशासन का भी प्रतीक मानी जाती है। तुलसीराम के नेतृत्व में कलाकारों ने जब मंच पर प्रवेश किया, तो पहले ही क्षण से दर्शकों की निगाहें उन पर टिक गईं।

प्रस्तुति के दौरान कलाकारों की तेज़ गति, सटीक कदमों और लयबद्ध छड़ी संचालन ने पूरे वातावरण में रोमांच भर दिया। पारंपरिक तमिल वेशभूषा, ढोल और लोकवाद्यों की गूंजती ध्वनि तथा कलाकारों की सामूहिक ऊर्जा ने मंच को जीवंत बना दिया। हर मूवमेंट में परंपरा की गहराई और युद्ध-कला की विरासत स्पष्ट रूप से झलक रही थी, जिसे देखकर दर्शक मंत्रमुग्ध हो उठे।
कार्यक्रम के दौरान बड़ी संख्या में उपस्थित दर्शकों ने तालियों और उत्साह के साथ कलाकारों का स्वागत किया। कई लोगों के लिए यह अनुभव विशेष रहा, क्योंकि उन्होंने पहली बार काई सिलंबट्टम को इतने निकट से देखा। दर्शकों ने न केवल इस कला के सौंदर्य को सराहा, बल्कि तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत और वीर परंपरा को समझने का अवसर भी प्राप्त किया।
काशी तमिल संगमम 4.0 के मंच पर काई सिलंबट्टम की यह प्रस्तुति “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की अवधारणा को साकार करती दिखाई दी। उत्तर भारत की आध्यात्मिक नगरी काशी और दक्षिण भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परंपराओं का यह संगम सांस्कृतिक संवाद का सशक्त उदाहरण बना। कार्यक्रम ने यह संदेश दिया कि भारत की विविध लोककलाएं एक-दूसरे से जुड़कर राष्ट्रीय एकता को और मजबूत बनाती हैं।

