काशी तमिल संगमम 3.0 : नमो घाट पर उत्तर और दक्षिण भारत की सांस्कृतिक विरासत का संगम, कलाकारों ने प्रस्तुतियों से दर्शकों को किया भावविभोर
वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के "एक भारत, श्रेष्ठ भारत" अभियान के अंतर्गत आयोजित काशी तमिल संगमम के पांचवें दिन नमो घाट उत्तर और दक्षिण की संस्कृतियों की सांस्कृतिक विरासत का संगम देखने को मिला। कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियों से लोगों को भावविभोर कर दिया। 15 से 24 फरवरी तक चलने वाले इस आयोजन को शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के तत्वावधान में आयोजित किया जा रहा है। मुक्त आकाश मंच पर प्रतिदिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला प्रस्तुत की जा रही है, जिसमें नृत्य, संगीत, नाट्य मंचन और आध्यात्मिक प्रवचन शामिल हैं।

पांचवें दिन की शुरुआत राजस्थानी लोकगीत "बन्ना रे बाग में झूला झूले" पर आकर्षक नृत्य से हुई। इसके बाद संगीत एवं मंच कला संकाय के विद्यार्थियों ने "रुनझुन बाजे घुघरा" गीत पर नृत्य नाटिका प्रस्तुत कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस कार्यक्रम के माध्यम से काशी और तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत, विचारधाराएं और पौराणिक धरोहरें उजागर की गईं, जो उत्तर और दक्षिण भारत की ऐतिहासिक सांस्कृतिक एकता को सुदृढ़ कर रही हैं। तमिलनाडु से आईं विदुषी यू.ई. सिंधुजा ने हरिकथा के रूप में वी. कम्बरामायण का भावपूर्ण वाचन किया। उनकी प्रस्तुति ने दर्शकों को भक्ति और रामायण की दिव्यता का गहन अनुभव कराया। इसके बाद तमिलनाडु से आए कलाकारों ने श्रीराम की लीलाओं का नाट्य मंचन किया, जिसने सभी दर्शकों को भाव-विभोर कर दिया।

तमिलनाडु की लोककलाओं की झलक
कार्यक्रम में तमिलनाडु की समृद्ध लोककलाओं को भी प्रस्तुत किया गया। कलाकारों ने नैनीमेलम की मनोरम प्रस्तुति, करगम नृत्य (सिर पर संतुलित घड़ा रखकर किया जाने वाला पारंपरिक नृत्य), कावड़ीअट्टम (धार्मिक कावड़ी यात्रा से प्रेरित नृत्य) और सिल्लुकुची अट्टम (डंडों का उपयोग कर किया जाने वाला पारंपरिक लोकनृत्य) की प्रस्तुति दी। प्रसिद्ध कलाकार कलाईमामानी गोविंदाराज और उनकी टीम ने इन प्रस्तुतियों से दर्शकों को तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत से परिचित कराया।

भक्ति संगीत और काराकट्टम नृत्य ने बांधा समां
तमिल लोकगीत परंपरा के अंतर्गत देवी भक्ति गीतों की प्रस्तुति हुई, जिसमें देवी के विभिन्न रूपों की महिमा गाई गई। कार्यक्रम की अंतिम प्रस्तुति के रूप में काराकट्टम नृत्य प्रस्तुत किया गया, जिसमें कलाकारों ने पारंपरिक लोकगीतों की धुन पर सिर पर मटका संतुलित रखते हुए नृत्य किया। इस दौरान लोक वाद्य यंत्रों की मधुर संगत ने दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बद्री शेषाद्रि ने काशी और रामेश्वरम के तीर्थ संबंध और उत्तर-दक्षिण भारत के ऐतिहासिक सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल से ही महर्षि अगस्त्य जैसे ऋषियों ने इन क्षेत्रों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक संबंध स्थापित किए हैं। साथ ही, उन्होंने तमिल साहित्य, वेदों और सनातन संस्कृति की महत्ता पर बल दिया।





