काशी क्षेत्र बना दुनिया का जीआई हब, तैयार हो रहे सर्वाधिक विविधता वाले उत्पाद

जीआई उत्पाद
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- 69 जीआई टैग के साथ यूपी पहले पायदान पर, तमिलनाडु को पीछे छोड़ा
- जीआई उत्पादों में उत्तर प्रदेश की लम्बी छलांग, बना देश में नंबर 1 
- काशी क्षेत्र के 9 नए जीआई उत्पादों के साथ कुल 32 जीआई टैग हुए 

वाराणसी। देश की समृद्ध विरासत को बचाने और बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू जीआई टैग मुहिम में यूपी देश में नंबर बन गया है। उत्तर प्रदेश 69 जीआई उत्पादों के साथ तमिलनाडु को पीछे छोड़ते हुए पहले पायदान पर पहुंच गया। इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी व आसपास का सबसे अहम योगदान है। काशी क्षेत्र सर्वाधिक विविधता वाले उत्पादों के साथ दुनिया का जीआई हब बन चुका है। यहां के 9 नए उत्पादों के साथ अब कुल 32 जीआई टैग वाले उत्पाद हो गए हैं। 

जीआई मैन के रूप में पहचान रखने वाले पद्मश्री डा. रजनीकान्त ने बताया कि यह पूरे प्रदेश के लिए अत्यंत गौरव का पल है। नाबार्ड-लखनउ, यूपी एवं राज्य सरकार के प्रयास से 30 मार्च, 2024 को जारी हुए जीआई रजिस्ट्री चेन्नई के जीआई एप्लीकेशन स्टेट्स से जानकारी मिलते ही उत्पादक समुदाय से जुड़े लोगों में खुशी की लहर दौड़ गयी। उन्होंने बताया कि वाराणसी क्षेत्र से 9 जीआई उत्पाद पंजीकृत हुए, जिसमें विश्वप्रसिद्ध बनारस की ठण्डई, लाल पेड़ा, के साथ ही संगीत वाद्ययंत्र बनारस शहनाई, बनारसी तबला के साथ लाल भरवा मिर्च, चिरईगांव का करौंदा, जौनपुर की इमरती, बनारस मुरल पेण्टिंग और मूंज क्राफ्ट, शामिल हैं। इसके साथ ही अब काशी क्षेत्र एवं पूर्वांचल के जनपदों में कुल 32 जीआई उत्पाद देश की बौद्धिक सम्पदा अधिकार में शुमार हो गए हैं, जो दुनिया के किसी भू-भाग में सर्वाधिक हैं। 

वर्ष 2014 के पहले वाराणसी क्षेत्र से मात्र 2 जीआई उत्पाद जैसे बनारस ब्रोकेड एवं साड़ी तथा भदोही हस्तनिर्मित कालीन को ही यह दर्जा प्राप्त था, लेकिन मात्र 9 वर्षों में यह संख्या 32 तक पहुंच गयी और जीआई के सबसे बड़े ब्राण्ड अम्बेसडर प्रधानमंत्री खुद हैं, जिनके कुशल मार्गदर्शन में आत्मनिर्भर भारत के अन्तर्गत लोकल से ग्लोबल को एक नया मुकाम हासिल हुआ और भारत की समृद्ध विरासत को अन्तरराष्ट्रीय कानूनी पहचान मिली। वाराणसी परिक्षेत्र एवं नजदीकी जीआई पंजीकृत जनपदों में ही लगभग 30 हजार करोड़ का वार्षिक कारोबार के साथ ही 20 लाख लोगों को अपने परंपरागत उत्पादों का कानूनी संरक्षण प्राप्त हुआ और रोजगार के नए अवसर खुले। इससे पर्यटन, व्यापार और ई-मार्केटिंग के माध्यम से यहां के उत्पाद तेजी से दुनिया के सभी भू-भाग में पहुंच रहे हैं। 

डा. रजनीकान्त ने बताया कि इस वित्तीय वर्ष में जीआई रजिस्ट्री चेन्नई के सफल प्रयास से कुल 160 नए उत्पादों का जीआई पंजीकरण हुआ, जो गत वर्ष हुए 55 जीआई टैग की तुलना में तीन गुना है। इसमें अकेले संस्था ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन वाराणसी के तकनिकी सहयोग से 12 राज्यों में 99 जीआई पंजीकरण हुआ, जिसमें अरूणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मेघालय, असम, जम्मू एण्ड कश्मीर, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्रा, उड़ीसा, गुजरात, उत्तराखण्ड के साथ साथ यूपी के 14 नए जीआई पंजीकरण शामिल हैं। यह किसी भी संस्था द्वारा जीआई टेक्निकल फैसिलिटेटर के रूप में देश में किया गया सर्वाधिक जीआई का पंजीकरण है।

जानिये बनारस व आसपास के जीआई उत्पादों के बारे में 
बनारस ब्रोकेड्स एंड साड़ी, बनारस लंगड़ा आम, हैंडमेड कारपेट आफ भदोही, रामनगर भंटा, बनारसी गुलाबी मीनाकारी, बनारसी पान, वाराणसी वुडेन लेकरवियर एंड ट्वायज, आदमचीनी चावल, मिर्जापुर हैंडमेड दरी, बनारसी ग्लास बीड्स, निजामाबाद ब्लैक पाटरी, मऊ साड़ी, बनारस मेटल रिपोजी क्राफ्ट, गोरखपुर टेराकोटा, गाजीपुर वाल हैंगिंग, बनारसी ठंडई, वाराणसी साफ्ट स्टोल जाली वर्क, बनारस तबला, चुनार बलुआ पत्थर, बनारस शहनाई, वाराणसी वुड कार्विंग, बनारस लाल भरवा मिर्च, बनारस हैंड लाक प्रिंट, चिरईगांव करौंदा आफ वाराणसी, बनारस जरदोजी, बनारस लाल पेड़ा, मिर्जापुर पीतल बर्तन, बनारस मुरल पेंटिंग, जौनपुर इमरती, प्रतापगढ़ आंवला, मूंज क्राफ्ट आफ उत्तर प्रदेश।

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