काशी के मुश्ताक बांसुरी बजाकर पर्यटकों को सीखा रहे 'रामधुन', 30 सालों से ठिकाना बना काशी का अस्सी घाट

Ramotsav 2024
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वाराणसी। रामलला के प्राण प्रतिष्ठा को लेकर देश ही नहीं, विदेशों में भी उत्साह है। सभी को 22 जनवरी का इंतज़ार है। भगवान राम के प्राण प्रतिष्ठा को लेकर सभी अपने स्तर से तैयारियों में लगे हुए हैं। 

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इसी बीच काशी के बांसुरी वादक मुश्ताक का अंदाज लोगों को काफी पसंद आ रहा है। मुस्ताक काशी के अस्सी घाट पर बड़ी खूबसूरती से बांसुरी बजाते हैं और उतनी ही खूबसूरती से बांसुरी बजाते भी हैं। मुस्ताक के बांसुरी की आवाज़ सुनकर लगता है कि जैसे उनकी आवाज़ में साक्षात सरस्वती का वास हो। 

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काशी के अस्सी घाट पर मुस्ताक करीब 30 वर्षों से बांसुरी बनाने और बेचने के साथ साथ मुफ्त में सिखाने का भी काम करते हैं। वह 'मुस्ताक भाई' के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन दिनों उनके पास जो भी आ रहा प्रभु राम के गीतों की धुन सुनने और सीखने का डिमांड कर रहा।

राम गीत के धुन बजाने की डिमांड सबसे अधिक

मुस्ताक के मुताबिक, इस समय सबसे ज्यादा डिमांड राम भजन की है। इस समय हर कोई राम भजन ही सुनना चाह रहा है क्योंकि अयोध्या में राममंदिर बन रहा हैं। उन्होंने कहा कि हमें ही भजन को सुनकर भाव उत्पन्न हो रहा है। मन में खुशी है कि मंदिर बन रहा हैं क्योंकि लोगों की आस्था वहां से जुड़ी है उन्होंने कहा कि रोजाना घाट पर हजारों लोग जाते हैं जो हमारे इस धुन को सुनते हैं उसमें से 50 लोग ऐसे हैं जो इस धुन को सिखाते हैं और बांसुरी को खरीदने हैं। 

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मुस्ताक ने बजाया रामधुन


मुस्कान भाई से सबसे पहले पहले "राम आएंगे तो अंगना सजाऊंगी" और फिर "हे राम हे राम" सहित अन्य गीतों के धुंन को बजाया। जिसको सुनने के लिए घाट जाने वाला घर एक व्यक्ति ठहर गया और मुस्कान भाई को धुंन को सुनने लगा और उनके धुंन को अपने मोबाइल में रिकार्ड करने लगा। 

मुस्ताक भाई के परिवार में संगीत घराना बसता था

बांसुरी के जरिए सरस्वती को सुर में पिरोने वाले मुस्ताक भाई अस्सी घाट पर बांसुरी का दुकान लगाते हैं। वह वाराणसी के मुडाइला ( मंडुआडीह ) के रहने वाले हैं। मुस्ताक भाई बताते हैं कि हमारे परिवार में एक संगीत घराना बसता था और उसी परंपरा का निर्वहन करते हम भी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि जब शादी हो गई तो उसके बाद पैसे की आवश्यकता होने लगी उसके बाद से ही हमने बांसुरी बनाने और बेचने का काम शुरू कर दिया। 

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बताया कि जब मैं शुरू शुरू में बनारस के घाटों पर बांसुरी की दुकान लगाया करता था तो लोग पसंद नहीं करते थे और जब हम यहां इसे बेचने के साथ-साथ बजाया करते थे तो लोग काफी नाराज भी हुआ करते थे। लेकिन समय बदलने के साथ-साथ आज मुस्ताक भाई के पास जो भी पर्यटक आते हैं वह मुस्ताक भाई के इस बांसुरी की आवाज को सुन कर एक बार जरूर ठहर जाते हैं और मुस्ताक भाई के इस बांसुरी को सीखने के साथ-साथ खरीदना भी पसंद करते हैं। मुस्ताक भाई उन्हें पहले बांसुरी बजाने का तरीका सिखाते हैं और बड़े ही अदब लिहाज से उन्हें यह बांसुरी देते हैं।


विदेशी पर्यटक भी रहते हैं मुस्ताक भाई से खुश


मुस्ताक भाई से काफी विदेशी पर्यटक भी सीखने आते हैं। ऐसे ही एक पर्यटक ने बताया कि मुस्ताक भाई का सिखाने का अंदाज बड़ा ही सरल है। मुस्ताक भाई बताते हैं कि ऐसे भी विदेशी पर्यटक हमारे सामने आए जो यहां से सीखकर विदेशों में अपना एक क्लास भी चला रहे हैं और लोगों को बांसुरी बजाना भी सिखा रहे हैं। निस्वार्थ भाव से बांसुरी बेचने के साथ से निःशुल्क सिखाना मेरे मन को एक शांति प्रदान करता है। जिसका मैं कोई चार्ज नहीं लेता हूं लोग खुश होकर मुझे कुछ दे देते हैं और मैं उसे तोहफा समझ कर रख लेता हूं।
 

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