काशी में जितिया व्रत: लक्ष्मीकुण्ड मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना, महिलाओं ने मां लक्ष्मी का दर्शन - पूजन कर मां से की समृद्धि और संतान की रक्षा की प्रार्थना

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वाराणसी। जितिया व्रत, जिसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है, काशी समेत पूरे देश में अत्यंत धार्मिक भावनाओं के साथ मनाया जाता है। यह व्रत माताओं द्वारा अपनी संतान की लंबी उम्र, स्वस्थ जीवन और समृद्धि के लिए किया जाता है। मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के तराई क्षेत्रों में यह व्रत बहुत प्रसिद्ध है। जितिया व्रत आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है और इस व्रत की मान्यता है कि इसे करने से संतान की रक्षा होती है। इस व्रत का आध्यात्मिक पहलू और धार्मिक महत्ता गंगा और काशी जैसी पवित्र स्थलों से और अधिक बढ़ जाती है। 

laxmikund temple

काशी, जिसे वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है, एक पवित्र तीर्थ स्थल है। यह स्थान सिर्फ भगवान शिव का धाम नहीं है, बल्कि यहां देवी लक्ष्मी की भी विशेष महत्ता है। जितिया व्रत के दौरान काशी में माता लक्ष्मी के दर्शन और पूजन का विशेष महत्व होता है। काशी में बुधवार भोर से ही मां लक्ष्मी के दर्शन पूजन के लिए महिलाओं का तांता लगा रहा। लक्सा स्थित मां लक्ष्मी के मंदिर में महिलाएं कतारबद्ध होकर दर्शन कर रही हैं। काशी में जितिया व्रत करने वाली माताएं देवी लक्ष्मी के प्रति अपनी भक्ति अर्पित करती हैं ताकि उनके घर में धन, समृद्धि और संतानों की सुरक्षा बनी रहे।

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जितिया व्रत का महत्व

जितिया व्रत का इतिहास पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। इसमें राजा जीमूतवाहन की कथा विशेष रूप से प्रचलित है, जिन्होंने अपनी प्रजा के नागों की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया था। इस कथा के माध्यम से माताएं अपने बच्चों की रक्षा और उनकी लंबी आयु की कामना करती हैं। जितिया व्रत का पालन काशी जैसे पवित्र स्थलों पर करना, इस व्रत को और अधिक फलदायी बनाता है। काशी, गंगा के तट पर स्थित होने के कारण, आत्मिक शुद्धि का केंद्र मानी जाती है। इस पवित्र भूमि पर देवी लक्ष्मी के दर्शन से माताओं को दैवीय कृपा प्राप्त होती है।

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काशी में मां लक्ष्मी का पूजन

जितिया व्रत के दौरान, काशी में देवी लक्ष्मी के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है। यहां की परंपरा और आस्था के अनुसार, माता लक्ष्मी की पूजा करने से व्रत रखने वाली माताओं को न केवल संतान सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि उनके घर में धन-धान्य की कभी कमी नहीं होती। काशी में जितिया व्रत करने वाली स्त्रियां गंगा में स्नान कर, लक्ष्मी देवी के मंदिरों में जाकर पूजा करती हैं और मां लक्ष्मी से संतान की लंबी उम्र, सुख और समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।

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मां लक्ष्मी का विशेष मंदिर
काशी में लक्ष्मीकुंड के पास स्थित लक्ष्मी देवी का मंदिर अत्यधिक प्रसिद्ध है। लक्ष्मीकुंड का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है, और जितिया व्रत के दौरान यहां बड़ी संख्या में महिलाएं पूजा-अर्चना करने आती हैं। यह मंदिर देवी लक्ष्मी के भक्तों के लिए एक अद्भुत स्थान है, जहां वे मां लक्ष्मी के चरणों में अपने परिवार और संतान की समृद्धि और सुरक्षा की प्रार्थना करती हैं।

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लक्ष्मीकुंड का धार्मिक महत्व

वाराणसी में लक्ष्मीकुंड एक प्राचीन पवित्र स्थल है, जिसे देवी लक्ष्मी का निवास माना जाता है। पुरानी मान्यता के अनुसार, जो भी व्यक्ति इस कुंड में स्नान करता है, उसके जीवन में समृद्धि और धन की कमी नहीं रहती। जितिया व्रत के समय, यहां विशेष धार्मिक आयोजनों का आयोजन किया जाता है, और माताएं गंगा स्नान के बाद लक्ष्मीकुंड में आकर जल अर्पण करती हैं। कुंड के पवित्र जल का धार्मिक महत्व है, और इसे लक्ष्मी देवी की कृपा प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है।

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जितिया व्रत के दौरान काशी में पूजा की विधि

जितिया व्रत का पालन तीन दिनों तक किया जाता है और काशी जैसे पवित्र स्थलों पर इसका खास महत्व है। व्रत की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जिसमें व्रती महिलाएं गंगा या लक्ष्मीकुंड में स्नान करती हैं। इसके बाद वे सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। यह भोजन पूर्ण रूप से शुद्ध और विशुद्ध होता है, जिसमें कोई भी तामसिक वस्त्रों का प्रयोग नहीं किया जाता। 

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अगले दिन व्रती महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं, जिसमें वे पूरे दिन बिना जल ग्रहण किए देवी लक्ष्मी और जीवित्पुत्रिका की पूजा करती हैं। काशी में देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा के दौरान महिलाएं लक्ष्मीकुंड या अन्य देवी लक्ष्मी के मंदिरों में जाकर दीप जलाती हैं और मां लक्ष्मी से अपने परिवार और संतान की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं। 

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अंतिम दिन, पारण के दिन, महिलाएं पूजा के बाद व्रत तोड़ती हैं। काशी में पारण के समय महिलाएं देवी लक्ष्मी के नाम से विशेष प्रसाद बनाकर वितरित करती हैं और मंदिरों में जाकर मां लक्ष्मी का आशीर्वाद लेती हैं।

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काशी में जितिया व्रत का सांस्कृतिक और धार्मिक प्रभाव

काशी हमेशा से धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। जितिया व्रत के दौरान काशी में विशेष माहौल देखने को मिलता है। यह व्रत केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। काशी में जितिया व्रत करने वाली महिलाओं का एक समूह बनता है, जो एक साथ देवी लक्ष्मी की पूजा और भजन-कीर्तन करती हैं। इस धार्मिक अवसर पर पूरे परिवार के लोग भी व्रत में शामिल होकर पूजा करते हैं। 

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जितिया व्रत के दौरान काशी के बाजारों और मंदिरों में विशेष रौनक देखने को मिलती है। दुकानों में व्रत से संबंधित पूजन सामग्री की बिक्री होती है, और महिलाएं मां लक्ष्मी के लिए विशेष रूप से सजाए गए पूजन थाल खरीदती हैं। मंदिरों में भव्य सजावट होती है और लक्ष्मीकुंड के पास भक्तों की भीड़ रहती है, जो इस पवित्र कुंड में स्नान करने और मां लक्ष्मी के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से आते हैं।

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मां लक्ष्मी से विशेष प्रार्थना

जितिया व्रत के दौरान, काशी में माता लक्ष्मी के दर्शन के समय व्रती माताएं अपने बच्चों की खुशहाल जिंदगी के लिए मां लक्ष्मी से विशेष प्रार्थना करती हैं। वे अपनी संतान के उज्ज्वल भविष्य, स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए मां लक्ष्मी से आशीर्वाद मांगती हैं। साथ ही, वे यह भी प्रार्थना करती हैं कि उनके घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहे। 

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काशी में जितिया व्रत के दौरान देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना से माताएं अपने परिवार की खुशहाली और समृद्धि सुनिश्चित करती हैं। मां लक्ष्मी की कृपा से उनका जीवन धन-धान्य और समृद्धि से परिपूर्ण होता है, और यह मान्यता है कि जितिया व्रत का पालन करने से माताओं की संतान को हर संकट से सुरक्षा मिलती है।

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