जयंती विशेष: ‘खिलते हैं गुल यहां...’ साहित्यकार गोपालदास नीरज का काशी से था गहरा लगाव, काव्य सम्मेलनों में सुनने के लिए उमड़ती थी भीड़
गोपाल दास नीरज का काशी से बहुत गहरा लगाव था। आज उनकी जयंती पर हम उनके काशी से संबंधो को याद करेंगे। गोपालदास अक्सर कवि सम्मेलनों में शामिल होने के लिए काशी आते थे। इतना ही नहीं, उन्होंने काशी में कई पुस्तकों का विमोचन भी किया है। उनकी कविताओं की लोकप्रियता आम जनमानस में अच्छी खासी थी। जिसके लिए उन्हें सुनने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी।
साहित्यकार डॉ० राजेंद्र मिश्र के मुताबिक, गोपालदास नीरज काशी में कई बार आए। वह आखिरी बार वर्ष 2016 में सर्किट हाउस में ओमधीरज की किताब के विमोचन में आए थे। कवि सांड बनारसी (सुदामा तिवारी) ने बताया कि बनारस में आयोजित होने वाले कई सम्मेलनों में वह काशी आए। वह टाउनहाल के अलावा डीरेका में संचेतना के कार्यक्रम में शामिल हुए थे। उन्होंने श्रीकृष्ण तिवारी की पुस्तक का विमोचन भी किया था।
नीरज नाईट कार्यक्रम के लिए तीन दिन बनारस में रुके
बनारस में नीरज नाईट कार्यक्रम भी हुआ था। जिसमें गोपालदास नीरज तीन दिन सिगरा स्थित गिरधर दास संस के मकान में रुके थे। साहित्यकार डॉ० गया सिंह के मुताबिक, वह बीएचयू के अलावा टाउनहॉल में भी आए थे। जिस प्रकार हरिवंश राय बच्चे अपनी मधुशाला को लेकर खड़े रहे उसी प्रकार नीरज अपनी काव्य रचनाओं को लेकर खड़े रहने वालों में से थे।
कारवां गुजर गया... काशी विद्यापीठ में हुआ फिल्मांकन
वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ भट्टाचार्य ने कहा कि कारवां गुजर गया नई उम्र की नई फसल फिल्म का गीत गोपाल दास नीरज ने लिखा था। मोहम्मद रफी ने आवाज दी थी। यह विद्यार्थी जीवन पर आधारित रहा। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में कुछ दृश्य का फिल्मांकन किया गया था।
साहित्य से फ़िल्मी दुनिया का सफर
गीतकार ओम प्रकाश चौबे ओमधीरज ने कहा कि गोपाल दास नीरज उस पीढ़ी के गीतकार थे जिन्होंने साहित्य से लेकर फिल्मी दुनिया तक को गौरव दिलाया। गीत को जनप्रिय बनाया। 2016 में उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान की ओर से अस्सी पर आयोजित कवि सम्मेलन में आए थे।
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