International Women’s Day: संघर्षों से बुलंदी तक पहुंची सारिका ने समाजसेवा की चुनी राह, महिलाओं के अधरों पर बिखेरती हैं ‘मुस्कान’

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वाराणसी। कहते हैं कि समाजसेवा से बड़ा कोई नेक कार्य नहीं है। वैसे तो आध्यात्म, शिक्षा व साहित्य की नगरी काशी में एनजीओ की संख्या दहाई के अंक में है। सब अपने अपने तरीके से लोगों की सेवा कर रहे हैं। कोई सर्दियों में गरीबों को कंबल बांटता है, कोई राशन। लेकिन इन सब से अलग है लोगों के चेहरे पर खुशियां बिखेरने वाली संस्था ‘ख़ुशी की उड़ान’। आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर हम बात करने वाले हैं ख़ुशी की उड़ान की संस्थापिका सारिका दुबे की। जिन्होंने दूसरों के चेहरों पर ख़ुशी लाने की ठानी है। 

“समाज में खुश रहने के लिए लोग कई काम करते हैं। लेकिन जिस काम से दूसरों को ख़ुशी मिले, उस ख़ुशी की बात ही कुछ और है।”

ऐसा कहना है ख़ुशी की उड़ान संस्था की संस्थापिका ‘सारिका दुबे’ का। बतौर सारिका उन्हें जिस काम को करने में ख़ुशी मिलती है, वे उसी काम को बार-बार करती हैं। ऐसे में उन्होंने समाजसेवा का जिम्मा उठाया है। उनका कहना है कि वे दूसरों को ख़ुशी देकर खुद खुश होती हैं। इसलिए उन्होंने अपने संस्था का नाम भी ‘ख़ुशी की उड़ान’ रखा। 

जिसने जीवन में कभी संघर्ष किया, वही उसके फल के महत्व को भी जानता है। वो कहते हैं ना कि लोहा आग में तपने के बाद ही ठोस बनता है। वही हाल सारिका का भी है। संघर्षों के बीच पली-बढ़ी सारिका ने जीवन में ढेरों संघर्ष किये हैं। चंदौली के धूस-खास ग्राम की रहने वाली सारिका ने बचपन से ही उतार-चढ़ाव देखे हैं। आज से 25-30 वर्ष पहले तक गांवों में लड़कियों को पढ़ने नहीं दिया जाता था। समाज के भय के कारण अपने ही दादा ने इन्हें स्कूल भेजने से मना कर दिया था। लेकिन जब कुछ करने का जज्बा मन में हो, तो तकदीर भी साथ देती है। 

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सारिका ने पिताजी के सहयोग से मिलों पैदल चलकर अपनी शिक्षा प्राप्त की। वर्ष 2015 में छत्रधारी सिंह पीजी कॉलेज से स्नातक कर सरकारी नौकरी न करने का फैसला लिया। इसके बाद से ही वे महिलाओं और बच्चों के विकास के लिए कार्य करने लगीं।

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महामना की बगिया ने दिखाई ‘राह’

महामना की बगिया ने ढेरों प्रोडक्ट तैयार किए हैं। उन्हीं में से एक हैं, ‘सारिका दुबे’। जो अपनी पढ़ाई के दौरान ही समाजसेवा से जुड़ गई थी। उन्होंने वाराणसी के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 2019 में समाजसेवा की डिग्री (MSW) प्राप्त की। लेकिन उन्होंने 2017 से ही समाजसेवा में कदम रख दिया था। कहते हैं न कि ‘काशी कबहुं न छोड़िए विश्वनाथ धाम’। कुछ ऐसा भी इनके साथ भी हुआ। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान काशी ने दिलोदिमाग पर ऐसी अमिट छाप छोड़ी कि काशी को ही अपनी कर्मभूमि बना लिया। समाजसेवा का जो जज्बा दिल में लेकर इन्होंने आज से 7 वर्ष पहले शुरू किया, उसे आज ‘ख़ुशी की उड़ान’ के रूप में आसमान की बुलंदियों तक पहुंचा रही हैं। 

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अकेले शुरू किया कारवां, जुड़ते गए लोग...

सारिका दुबे बताती हैं कि समाजसेवा का कार्य अकेले शुरु किया था। लेकिन सफर के कारवां में लोग जुड़ते गये। आज संस्था की 25-30 लोगों की टीम है। जो बीड़ा हमने अकेले उठाया था। वो आज सभी के सहयोग से चल रहा है। संस्था को आगे बढ़ाने में हमारी पूरी टीम का सहयोग है। 

वाराणसी में समाजसेविका के तौर पर कार्य करते हुए सारिका ने बेहद कम समय में ऊँचाई की बुलंदियां हासिल की हैं। जिसका श्रेय उन्होंने अपनी पूरी टीम को दिया है। वैसे तो इन्होंने समाज के हर वर्ग के लिए काम किया है। लेकिन इन्होंने विशेष रूप से दिव्यांगों और महिलाओं का काफी सहयोग किया है। इसके लिए वे कई बार सम्मानित भी हो चुकी हैं। 

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इन अवार्ड्स से हो चुकी हैं सम्मानित

अपनी वर्क परफेक्शन और यूनिक थिंकिंग के कारण वर्ष 2019 में सारिका को राष्ट्रीय अवार्ड चेंज मेकर से नवाजा गया। इसके बाद 2020 में युवा समाजसेविका, वर्ष 2021 में काशी की बेटी, वीरांगना एवं राष्ट्रीय सम्मान बेस्ट सोशल, वर्ष 2023 में उत्तर प्रदेश महिला सशक्तिकरण सम्मान व डॉ० ए पी जे अब्दुल कलाम अंतर्राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित हो चुकी हैं। 

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सारिका ने बताया कि उन्होंने अपने इन सभी कार्यों को करते हुए एलएलबी करके प्रैक्टिस भी शुरू कर दिया है और लड़कियों को कानूनी सुविधा भी दिलाती हैं। इसके अलावा उनकी प्राथमिकता रहती है कि समाज के सभी वर्ग विशेषकर महिलाओं को केंद्र व राज्य सरकार द्वारा जारी की योजनाओं का संपूर्ण लाभ मिले। 

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