काशी में महाकाल के इस मंदिर में ‘काल’ की एक नहीं चलती, बिना प्राण लिए यमराज को भी पड़ा था लौटना

markandey mahadev
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वाराणसी। कहते हैं कि काशी का कण-कण शिव को समर्पित है। यहां के हर पत्थर में शिव का वास है। पुराणों के मुताबिक, धरती के जन्म से अभी तक कई सभ्यताएं जन्मीं और नष्ट हुईं, लेकिन काशी भगवान शंकर के त्रिशूल पर टिकी रही। काशी अपनी जगह से टस से मस नहीं हुई। 

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, काशी में मरने से मोक्ष मिलता है। इसलिए यहां लोग जीने से ज्यादा मरने के लिए आते हैं। यहां का मरना भी फलदायी है। वैदिक काल, भक्ति काल आदि के समय से यह मान्यता चली आ रही है। भक्ति काल के कवि कबीरदास के समय में भी लोगों में ऐसी ही धारणा थी। 

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वैसे इसके विपरीत यहां पर एक और मान्यता है कि यहां पर काल की भी एक नहीं चलती। यहां लोग भगवान शंकर को महाकाल के रूप में पूजते हैं, जो काल से भी परे हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर से लगभग 30 किमी दूरी पर एक ऐसा शिव मंदिर है, जहां से काल को भी एक बार खाली हाथ लौटना पड़ा था। 

वाराणसी-गाजीपुर मार्ग पर गंगा-गोमती के संगम तट पर चौबेपुर क्षेत्र के कैथी में मार्कंडेय महादेव का मंदिर स्थित है। इस मंदिर की चर्चा द्वादश ज्योतिर्लिंगों के समकक्ष मार्कंडेय पुराण में की गई है। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, मृकंडु और उनकी पत्नी मरुदवती नाम का एक जोड़ा था। वे भगवान शिव के अनन्य भक्त थे और उनकी कोई संतान नहीं थी। उन्होंने भगवान शिव की पूजा करने का फैसला किया और एक दिन भगवान शिव उसकी आराधना से प्रसन्न हुए और दोनों को अपना दर्शन दिया। दंपति ने भगवान शिव से संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना की। भगवान शिव ने कहा कि आपके वैवाहिक जीवन में संतान सुख नहीं है। किन्तु आपने मेरी पूजा की है, इसलिए आपके सामने दो विकल्प हैं।

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पहला यह कि आपको एक पुत्र की प्राप्ति होगी जिसकी उम्र 100 वर्ष होगी या एक असाधारण पुत्र जिसकी उम्र केवल 12 वर्ष होगी अर्थात् वह केवल 12 वर्ष तक जीवित रहेगा। दंपति ने भगवान शिव से 12 वर्ष की आयु वाले पुत्र की कामना की।

जब पूरे किए 12 वर्ष, महादेव ने आकर यमराज से बचाए प्राण

कुछ समय बाद, मरुदवती ने एक पुत्र को जन्म दिया और उसका नाम “मार्कण्डेय” (मृकंडु का पुत्र) रखा। यह असाधारण पुत्र बचपन में ही बहुत बुद्धिमान हो गया। वह हमेशा भगवान शिव की पूजा-आराधना में लीन रहता था। जब मार्कण्डेय ने अपने जीवन के 12 वर्ष पूरे कर लिए, तब यमराज उन्हें लेने के लिए पृथ्वी पर आए। उस समय मार्कण्डेय गंगा-गोमती संगम तट पर भगवान शिव की पूजा कर रहे थे।

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जब यमराज ने उसे अपने साथ चलने को कहा, तो वह बहुत डर गया और भगवान शिव से उसकी रक्षा करने को कहा। जैसे ही यमराज ने अपनी रस्सी लड़के पर फेंकी भगवान शिव प्रकट हो गए। यमराज के कठोर व्यवहार से भगवान शिव बहुत क्रोधित हुए। भगवान शिव ने मार्कण्डेय की जान बचाई और उन्हें 12 वर्ष की आयु के बाद भी जीवित रहने का आशीर्वाद दिया। उस समय भगवान भोलेनाथ ने अपने परम भक्त मार्कण्डेय ऋषि से कहा कि आज से जो भी भक्त इस स्थान पर आएंगे, वह मेरे साथ मार्कण्डेय की भी पूजा करेंगे।

शिव से ऊँचा स्थान मार्कंडेय का ?

भगवान शिव ने मार्कण्डेय जी को अमरत्व का आशीर्वाद देते हुए कहा कि इस स्थान पर तुम्हारा धाम होगा जिसमें तुम्हारा स्थान मुझसे ऊँचा होगा। भक्तगण पहले तुम्हारी पूजा करेंगे फिर मेरी। तभी से यह अष्टधाम मार्कण्डेय महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मार्कण्डेय महादेव धाम में आज भी पहले मार्कण्डेय जी जो गर्भ गृह में ताखे पर विराजमान हैं उनकी पूजा होती है फिर भगवान शिव की पूजा की जाती है।

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मार्कण्डेय महादेव मंदिर में हर साल महाशिवरात्रि के अलावा सावन माह में बड़ी संख्या में कांवरिया बाबा का जलाभिषेक करते हैं। वहीँ इस समय यहां पर तीन दिवसीय मार्कंडेय महोत्सव का भी आयोजन किया जा रहा है. जिसमें विभिन्न कलाकारों ने शिरकत किया. धाम में नियमित रूप से रुद्राभिषेक, श्रृंगार और पूजा अर्चना के अतिरिक्त संतान प्राप्ति के लिए हरिवंश पुराण का श्रवण और स्वास्थ्य लाभ और दीर्घ जीवन के लिए महामृत्युंजय अनुष्ठान कराने का विशेष महत्व है। महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां दो दिवसीय मेला लगता है।

दूर-दराज से भक्तगण यहाँ अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए पहुंचते हैं। सावन मास में प्रतिदिन हजारों की संख्या में कांवरिया यहां पहुचते हैं। मान्यता है कि गंगा गोमती संगम स्थल से जल लेकर मार्कण्डेय महादेव जी को अर्पित करने से सर्व सुख की प्राप्ति होती है।

केंद्रीय संस्कृति विभाग के ओर से कराया गया सुंदरीकरण

भारत सरकार के संस्कृति विभाग व उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग द्वारा इस धाम के विकास के लिए विगत वर्षों में कई प्रोजेक्ट के तहत सुंदरीकरण किया गया है, जिससे बड़ी संख्या में पर्यटक यहां आने लगे हैं। कैथी घाट, मार्कण्डेय महादेव घाट पर बोटिंग, चिड़ियों को दाना खिलाने, तैराकी आदि का लुत्फ़ लेने वालों की संख्या में दिनोदिन इजाफा हो रहा है। 

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पर्यटक परिजनों एवं बच्चों के साथ कैथी गंगा घाट से संगम घाट तक रिजर्व नाव द्वारा प्रवासी चिड़ियों को दाना खिलाते हुए गांगेय डॉल्फिन का भी अवलोकन करते हुए तैराकी का आनंद लेते हैं। युवाओं के समूह के लिए पिकनिक मनाने के लिए यह स्थान बहुत प्रचलित होता जा रहा है।

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