काशी में बसंत पंचमी से शुरू हो गई फगुनी बयार, विभिन्न जगहों पर स्थापित हुई होलिका

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वाराणसी। बसंत उत्सव के साथ ही काशी में धीरे-धीरे होली की शुरुआत प्रारंभ हो जाती है और इसका सबसे ज्यादा असर ब्रज में देखने को मिलता है। ब्रज में लगभग 40 दिनों तक बसंत उत्सव के साथ ही होली का उत्सव भी प्रारंभ हो जाता है। और वहां पर आज से ही होली की शुरुआत मानी जाती है। 

वहीं काशी में जगह-जगह होली जहां पर सजाती है, वहां पर सांकेतिक रूप से एक रेड़ का वृक्ष गाड़ दिया जाता है। जहां पर भी होलिका सजनी होती है, वह स्थान पहले से ही सुनिश्चित होता है। लोगों का कहना है कि यह वृक्ष वही गाड़ते हैं, जिनके माता-पिता का स्वर्गवास हो चुका होता है और सबसे बड़ी बात यह है कि होलिका में आज भी वही व्यक्ति लगता है जिसके माता-पिता नहीं रहते हैं। 

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काशी में होलिका पर्व बड़े ही धूमधाम के साथ और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पांच दिनों तक काशी में चारों तरफ खुशियां ही देखने को मिलती है। यह होली का पर्व बाबा विश्वनाथ के रंगभरी एकादशी के दिन से प्रारंभ होता है। सबसे पहले बाबा को काशीवासी रंग चढ़ाते हैं उनका आशीर्वाद लेते हैं विधि विधान के साथ पूजन अर्चन करते हैं उसके बाद से ही होली का रंग यहां पर शुरू हो जाता है। 

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इसके साथ ही पूरे विश्व में सबसे अनोखी काशी में होली खेली जाती है जो मसान पर लोग लाखों की संख्या में इकट्ठे होते हैं और चिता भस्म की होली खेलते हैं। हालांकि विद्वानों का कहना है कि ऐसा कहीं भी पुराणों या वेदों में लिखित नहीं है। परंतु इस होली को खेलने के लिए देश के साथ से विदेश से भी लोग खींचे चले आते हैं। बसंत पंचमी के दिन जगह-जगह होलिका धीरे धीरे सजना लगता है और आज से ही लोग बसंत उत्सव (फगुआ) का प्रारंभ माना जाता है।
 

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