वाराणसी में नरेंद्र मोदी को कितना टक्कर दे पाएगा विपक्षी गठबंधन ! जानिए पूर्वांचल के सबसे अहम सीट का सियासी समीकरण
वाराणसी। पूर्वांचल की राजनीति का केंद्र माने जाने वाले बनारस में बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर नरेंद्र मोदी के नाम की घोषणा होने के बाद यूपी में सियासी हलचल बढ़ गई है। बीजेपी ने प्रत्याशी के तौर पर नरेंद्र मोदी को टिकट देकर पूर्वांचल में अपनी पकड़ तीसरी बार मजबूत कर ली है।
बीजेपी सूत्रों की मानें तो, इस बार का मुकाबला काफी दिलचस्प होने वाला है। इस बार बीजेपी का उन लोकसभा सीटों पर ज्यादा फोकस है, जहां पर पिछली बार के सांसद नहीं जीत पाए थे। उन सीटों पर बहुमत से जीत के लिए बीजेपी पूरी मजबूती से तैयारी में लगी हुई है।
मोदी के मुकाबले किसी मजबूत प्रत्याशी को टिकट दे सकता है गठबंधन
वहीं दूसरी ओर, विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ से प्रत्याशी का अब तक न घोषित होना एक बड़ा संकेत दे रहा है। माना जा रहा है कि विपक्षी दल पूर्वांचल की इस अहम और प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में नरेंद्र मोदी को टक्कर देने के लिए उन्हीं के मुकाबले के किसी नेता को उम्मीदवार बनाने की तैयारी में है। इस लिस्ट में कई नेताओं के नाम पहले से ही चल रहे हैं। जिनमें कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा, पूर्व मंत्री अजय राय, सुरेंद्र पटेल के नामों की चर्चा है।
पिछले दिनों समाजवादी पार्टी ने वाराणसी लोकसभा सीट पर सुरेंद्र पटेल का नाम आगे किया था। तब इनका नाम कुर्मी वोट बैंक साधने के लिए माना जा रहा था। लेकिन कांग्रेस से गठबंधन के बाद सुरेंद्र पटेल के नाम के आगे बस ‘पूर्व मंत्री’ ही लिखा रह गया। खैर, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा कि विपक्षी गठबंधन मोदी के गढ़ में उन्हें कितना चुनौती दे पाता है।
वाराणसी संसदीय सीट पर 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बाद समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी शालिनी यादव लगभग 2 लाख वोट पाकर दूसरे नंबर पर थी। जबकि कांग्रेस के प्रत्याशी अजय राय सवा लाख मतों के साथ तीसरे नंबर पर थे। अब जबकि यह सीट समाजवादी पार्टी के हाथ से निकलकर गठबंधन के हाथ में चली गई है, तो सभी दलों के समर्थन से ही प्रत्याशी का ऐलान किए जाने की उम्मीद है। बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी ने इस बार वाराणसी से नरेंद्र मोदी को 10 लाख वोट दिलाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
PDA के नारे के साथ समाजवादी पार्टी, जातिगत जनगणना के साथ कांग्रेस
बात करें वाराणसी लोकसभा सीट के वोटर की तो सभी की निगाहें ओबीसी वोटरों पर टिकी हुई है। समाजवादी पार्टी PDA का नारा दे रही है, वहीं कांग्रेस ने जाति आधारित जनगणना कराने का ऐलान किया है। कांग्रेस ने भी ओबीसी वोटरों का साधने का प्लान बना रखा है। सभी पार्टियाँ वोटरों को रिझाने का काम कर रही हैं। वहीं केंद्र की योजनाओं के माध्यम से सत्ताधारी दल भाजपा भी इन वोटरों में घुसपैठ कायम रखने की अपनी रणनीति पर काम रही है।
केंद्र की योजनाओं के जरिए ओबीसी वोटर साध रही बीजेपी
केंद्र सरकार की तमाम योजनाओं ने ओबीसी वोटरों को रिझाने में सोने पे सुहागा जैसा काम किया। जाहिर है कि सबसे ज्यादा लोकसभा सीट वाले उत्तर प्रदेश पर हर पार्टी की नजर है। उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी दल भाजपा से लेकर सपा, कांग्रेस और बसपा भी अपना जनाधार मजबूत करने में पूरी ताकत के साथ जुट गई है। जाति, धर्म और वर्ग के आधार पर अपने-अपने वोटबैंक को दुरुस्त करने के लिए खास रणनीति बनाई जा रही है, खासकर ओबीसी वोटरों को लेकर। उत्तर प्रदेश में मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा ओबीसी से आता है और जिसकी ओर उनका झुकाव होता है, वही पार्टी यहां सबसे मजबूत स्थिति में मानी जाती है।
पूर्वांचल में अपनी पकड़ मजबूत बनाने की कोशिश में कांग्रेस
राजनीति के जानकार बताते हैं कि लोकसभा या विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की कोई मजबूत जमीन नहीं है, लेकिन वह राजनैतिक रूप से इस महत्वपूर्ण प्रदेश में पार्टी अपनी भूमिका बढ़ाने को लेकर लगातार कोशिश कर रही है। बात चाहे 2014 व 2019 का लोकसभा चुनाव रहा हो या फिर 2017 व 2022 का विधानसभा चुनाव। इन चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक ही रहा। ऐसे में कांग्रेस पार्टी अपने परंपरागत वोट बैंक ओबीसी को साधने की कोशिश में जुट गई है।
यही कारण है कि राहुल गांधी समेत कांग्रेस के तमाम नेताओं ने जाति जनगणना का खुलेआम समर्थन किया है। पार्टी ने भाजपा सरकार से मांग की है कि उसे जाति आधारित जनगणना कराना चाहिए। वैसे कांग्रेस ‘इंडिया’ की एक घटक दल है और अपने सहयोगी दलों के वोटबैंक में सेंधमारी करने का कोई मौका भी नहीं छोड़ रही है।
इसको देखते हुए ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) का नारा भी दिया है। इसी नारे के सहारे सपा ने पूर्वांचल में फिर से धमक देनी शुरू कर दी है और उप चुनावों में जीत भी हासिल की। इसके अलावा समाजवादी पार्टी जाति जनगणना पर भी जोर दे रही है और इसकी लगातार मांग करते हुए केंद्र सरकार पर दबाव बनाए हुए हैं।
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