BHU कैंपस से निकला ऐतिहासिक ताजिया जुलूस, हर धर्म के लोगों ने की शिरकत

वाराणसी। मुहर्रम के मौके पर फिजाओं में मातम और आस्था की मिली-जुली गूंज सुनाई दी। जैसे ही चांद दिखाई दिया, वैसे ही कई मोहल्लों की गलियां ताजियामय हो गईं। हजारों की संख्या में शिया मुस्लिम समुदाय के लोग ताजिया लेकर सड़कों पर निकले। रंग-बिरंगे ताजियों, आकर्षक डिजाइन वाले जामों और "या हुसैन" की सदाओं के बीच ताजिया जुलूस का माहौल अद्भुत और भावनात्मक था।
ताजिया जुलूसों में जहां मातम और ज़ियारत के दृश्य दिखे, वहीं काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) कैंपस से गुजरता छित्तूपुर ग्राम सभा का ऐतिहासिक ताजिया जुलूस भी विशेष आकर्षण का केंद्र रहा। यह जुलूस BHU परिसर होते हुए नरिया स्थित कर्बला स्थल तक गया, जहां परंपरागत रूप से ताजिया ठंडा किया गया।
जुलूस के शांतिपूर्ण संचालन को देखते हुए प्रशासन ने विशेष इंतजाम किए थे। पूरे रास्ते में भारी पुलिस बल की तैनाती की गई थी ताकि किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना न हो। छित्तूपुर के ताजियादारों ने जानकारी दी कि यह जुलूस विश्वविद्यालय की स्थापना से पहले से निकलता आ रहा है। उन्होंने बताया कि BHU के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय ने स्वयं ताजिया के इस ऐतिहासिक मार्ग को स्वीकृति दी थी। उसी परंपरा का निर्वहन आज भी किया जा रहा है।
इस जुलूस की एक निर्धारित समय-सारणी होती है, जिसे प्रशासन के सहयोग से सटीकता के साथ निभाया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि इस ताजिया में न केवल मुस्लिम बल्कि हिंदू समुदाय के लोग भी पूरे श्रद्धा और सहयोग के साथ शामिल होते हैं। हिंदू संगठनों द्वारा चंदा एकत्र कर ताजिया आयोजन में सहायता दी जाती है।
छित्तूपुर के ताजिया को लेकर बताया गया कि अंग्रेजों के जमाने से यह परंपरा चली आ रही है। ताजिया कर्बला तक ले जाकर ठंडा किया जाता है। पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं की भी बड़ी भागीदारी इस जुलूस में देखने को मिली। सांप्रदायिक सौहार्द की यह मिसाल वाराणसी की साझा संस्कृति को जीवंत रूप से प्रस्तुत करती है, जहां आस्था, परंपरा और भाईचारे का संगम एक साथ दिखाई देता है।