हिंदी दिवस: काशी ने दी हिंदी को आधुनिक पहचान, काशी नागरी प्रचारिणी सभा में 'हिंदी शब्द सागर' का निर्माण, BHU ने हिंदी का बढ़ाया राष्ट्रीय सम्मान

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वाराणसी। हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। 1949 में इसी दिन संविधान सभा ने हिंदी को भारत की राजभाषा का दर्जा दिया था। यह दिन भारत के सांस्कृतिक और भाषाई एकता का प्रतीक है। पहली बार 1953 में हिंदी दिवस के रूप में इस दिन को मनाया गया, जिसका उद्देश्य हिंदी के महत्व को बढ़ावा देना था। इस दिन को मनाने की पहल राजभाषा आयोग ने की थी, ताकि हिंदी को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत किया जा सके। 

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वाराणसी का हिंदी को एक वैश्विक भाषा बनाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 19वीं सदी से काशी में हिंदी का प्रचार-प्रसार हुआ, और 1920 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) हिंदी में स्नातकोत्तर कार्यक्रम शुरू करने वाला पहला विश्वविद्यालय बना। बीएचयू के प्रोफेसर प्रवीण राणा बताते हैं कि हिंदी को आधुनिक स्वरूप देने में तीन दशक लगे और वाराणसी के विद्वानों ने इसे सरल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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बीएचयू का हिंदी विभाग और आधुनिक हिंदी के जनक

आधुनिक हिंदी को दिशा देने वाले प्रमुख विद्वानों में भारतेंदु हरिश्चंद्र, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी और नामवर सिंह शामिल हैं। रामचंद्र शुक्ल का नाम हिंदी के प्रमुख स्तंभों में आता है, जिन्होंने 1905 में काशी नागरी प्रचारिणी सभा में 'हिंदी शब्द सागर' का निर्माण किया। पंडित मदन मोहन मालवीय ने उनकी प्रतिभा को देखकर 1919 में उन्हें बीएचयू में हिंदी के प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया।

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आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की गुरु-शिष्य परंपरा

प्रोफेसर प्रवीण राणा के अनुसार, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, जो रामचंद्र शुक्ल के शिष्य थे, ने बीएचयू में गुरु-शिष्य परंपरा को आगे बढ़ाया। उन्होंने नामवर सिंह, केदारनाथ सिंह, शिव प्रसाद सिंह, विश्वनाथ त्रिपाठी और काशीनाथ सिंह जैसे शिष्यों को पीएचडी कराई, जो आगे चलकर हिंदी के महान विद्वान बने। 

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आचार्य रामचंद्र शुक्ल का अलवर दरबार छोड़ने का निर्णय

"चिथड़े लपेटे चने चाबेंगे चौखट चढ़ि, चाकरी न करेंगे ऐसे चौपट चांडाल की"

प्रोफेसर प्रवीण राणा बताते हैं कि ये लाइन बीएचयू के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष आचार्य रामचंद्र शुक्ल के हैं। ये उन्होंने राजस्थान के अलवर के राजा के लिए बोली थी। रात को 12 बजे अलवर राजा ने आचार्य शुक्ल को जगाकर 'खेहर' शब्द का अर्थ पूछा, उन्होंने अर्थ बताया और अगले दिन वापस काशी आ गए। राजा ने अपने सचिव को बनारस भेजा। शुक्ल जी को वापस अलवर आने का आग्रह किया। मगर, उन्होंने इंकार करते हुए ऊपर वाला काब्य लिख कर भेजा था। वाराणसी की धरती हिंदी भाषा को आधुनिक और सरल रूप देने में अग्रणी रही है, और आज हिंदी दिवस पर इस योगदान को स्मरण किया जाता है।

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