हिंदी दिवस: हिंदी भाषा और साहित्य के सशक्त समर्थक और विकासकर्ता थे डॉ. सम्पूर्णानंद, जानिए हिंदी साहित्य में उनका योगदान

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वाराणसी। डॉ. सम्पूर्णानंद (1891-1969) हिंदी साहित्य और भाषा के एक प्रमुख हस्ताक्षर थे, जिनका योगदान शिक्षा और राजनीति दोनों में उल्लेखनीय रहा। स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षामंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने हिंदी भाषा को शिक्षा और प्रशासन के केंद्र में लाने के लिए अथक प्रयास किए। उनके द्वारा किए गए कार्य हिंदी के प्रचार-प्रसार में मील का पत्थर साबित हुए।

शिक्षा और हिंदी भाषा के प्रसार में अहम भूमिका

डॉ. सम्पूर्णानंद शिक्षा के प्रबल समर्थक थे और उन्होंने हिंदी को शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर लागू करने की पुरजोर वकालत की। विशेष रूप से प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में हिंदी को अनिवार्य बनाना उनका मुख्य उद्देश्य था। उनका मानना था कि हिंदी को देश की एकजुटता के प्रतीक के रूप में राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।

उन्होंने विभिन्न शैक्षिक संस्थानों, जैसे काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू), में हिंदी शिक्षा को बढ़ावा दिया। उनके नेतृत्व में हिंदी माध्यम के संस्थानों का विकास हुआ और हिंदी भाषा में शोध और अध्ययन के लिए नई संभावनाएँ उत्पन्न हुईं।

हिंदी को राजभाषा के रूप में स्थापित करने का प्रयास

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में राजभाषा के मुद्दे पर जबरदस्त बहस चल रही थी। डॉ. सम्पूर्णानंद ने हिंदी को राजभाषा के रूप में स्थापित करने के लिए जोरदार समर्थन किया। उनका दृष्टिकोण था कि हिंदी, जो देश के बड़े हिस्से द्वारा समझी और बोली जाती है, को ही राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलना चाहिए।

उन्होंने हिंदी के सरल और जनसाधारण के उपयोग में आने वाले रूप को बढ़ावा दिया, ताकि यह अधिक से अधिक लोगों के बीच स्वीकार्य और सुलभ बन सके। उनके विचार में हिंदी को अत्यधिक शास्त्रीय और जटिल शब्दावली से मुक्त रखना चाहिए, ताकि यह भाषा सहज और व्यवहारिक बनी रहे।

हिंदी साहित्य को बढ़ावा देने के लिए कदम

हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में डॉ. सम्पूर्णानंद का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था। उन्होंने साहित्यिक आयोजनों और कवि सम्मेलनों को प्रोत्साहित किया और हिंदी लेखकों को प्रोत्साहन दिया कि वे अपनी रचनाओं में हिंदी भाषा का उपयोग करें। उनके प्रयासों से हिंदी साहित्यकारों को न केवल आर्थिक और सामाजिक समर्थन मिला, बल्कि नई पहचान भी मिली।

सम्पूर्णानंद का मानना था कि साहित्य समाज का आईना है और हिंदी साहित्य समाज में जागरूकता और परिवर्तन लाने का सशक्त माध्यम बन सकता है।

हिंदी भाषा के शुद्धिकरण और मानकीकरण में योगदान

डॉ. सम्पूर्णानंद ने हिंदी के शुद्धिकरण और मानकीकरण के लिए भी महत्वपूर्ण कार्य किए। उन्होंने हिंदी भाषा को व्याकरणिक और भाषाई दृष्टि से समृद्ध बनाने पर जोर दिया। उनके प्रयासों से हिंदी भाषा को एक संरचित और सशक्त रूप में प्रस्तुत किया जा सका, जिससे यह आधुनिक, वैज्ञानिक और तकनीकी विषयों को अभिव्यक्त करने में सक्षम बनी।

पत्रकारिता और हिंदी प्रचार

हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में भी डॉ. सम्पूर्णानंद का योगदान अमूल्य था। वे "मर्यादा" और "चाँद" जैसी प्रमुख पत्रिकाओं से जुड़े रहे और अपने लेखों के माध्यम से हिंदी के प्रसार में योगदान दिया। वे पत्रकारिता को राष्ट्रीय विचारधारा और हिंदी के प्रचार का प्रभावी साधन मानते थे।

हिंदी के संस्थागत विकास में योगदान

डॉ. सम्पूर्णानंद के कार्यकाल में कई हिंदी संस्थानों की स्थापना की गई, जिनमें हिंदी अकादमी और हिंदी संस्थान प्रमुख हैं। इन संस्थानों ने हिंदी के साहित्यकारों और लेखकों को मंच प्रदान किया और शोध कार्य को प्रेरित किया। ये संस्थान आज भी हिंदी साहित्य और भाषा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

डॉ. सम्पूर्णानंद का हिंदी के उत्थान में बहुमुखी योगदान रहा। उन्होंने हिंदी को न केवल एक प्रशासनिक और शैक्षिक भाषा के रूप में मजबूत किया, बल्कि इसके साहित्यिक और सांस्कृतिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके कार्यों ने हिंदी को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक सशक्त भाषा के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके प्रयास आज भी हिंदी भाषा और साहित्य के विकास के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं।

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