गुरु रविदास जयंती 2026 : काशी में भव्य आयोजन, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को भेजा गया निमंत्रण, 20 लाख से अधिक श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद
वाराणसी। काशी की धरती पर संत शिरोमणि गुरु रविदास जी की जयंती वर्ष 2026 में पहले से कहीं अधिक भव्य और ऐतिहासिक स्वरूप में मनाई जाएगी। इस बार गुरु रविदास जयंती 1 फरवरी 2026 (रविवार) को माघ पूर्णिमा के पावन अवसर पर होगी। आयोजन को लेकर तैयारियां तेज कर दी गई हैं। इस बीच रविदास मंदिर ट्रस्ट की ओर से काशी के सांसद एवं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कार्यक्रम में शामिल होने के लिए औपचारिक निमंत्रण भेजा गया है। साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जो हर वर्ष इस आयोजन में शामिल होते हैं, उन्हें भी आमंत्रित किया गया है।

गुरु रविदास जयंती को लेकर वाराणसी के सीर गोवर्धनपुर क्षेत्र में व्यापक तैयारियां चल रही हैं। प्रशासन और मंदिर ट्रस्ट का अनुमान है कि तीन दिवसीय आयोजन में देश-विदेश से 20 लाख से अधिक श्रद्धालु वाराणसी पहुंचेंगे, जिनमें बड़ी संख्या में एनआरआई श्रद्धालु भी शामिल होंगे।

सीर गोवर्धनपुर बनेगा आस्था और समरसता का केंद्र
संत रविदास जी की जन्मस्थली सीर गोवर्धनपुर इस अवसर पर आस्था, सेवा और सामाजिक समरसता का प्रमुख केंद्र बन जाती है। माघ पूर्णिमा के दिन यहां श्रद्धालुओं का विशाल जनसैलाब उमड़ता है। गुरु रविदास जयंती केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि सामाजिक समानता और मानवता के संदेश का जीवंत प्रतीक मानी जाती है।

संत रविदास जी का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व
संत रविदास जी भारतीय संत परंपरा के उन महान संतों में गिने जाते हैं, जिन्होंने जाति-भेद, ऊंच-नीच और सामाजिक असमानता का खुलकर विरोध किया। “मन चंगा तो कठौती में गंगा” जैसे उनके विचार आज भी समाज को नैतिक दिशा देते हैं। काशी से उनका गहरा जुड़ाव होने के कारण वाराणसी रैदासिया समुदाय का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल माना जाता है।

रैदासिया धर्म का वैश्विक स्वरूप
वर्ष 2009-10 के बाद रैदासिया समुदाय ने स्वयं को एक स्वतंत्र धार्मिक पहचान के रूप में स्थापित किया। ‘अमृतबाणी गुरु रविदास जी’ को पवित्र ग्रंथ के रूप में मानने वाला यह समुदाय आज भारत के साथ-साथ ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के कई देशों में फैला हुआ है। इसी कारण गुरु रविदास जयंती अब एक अंतरराष्ट्रीय धार्मिक आयोजन का रूप ले चुकी है।

टेंट सिटी, यात्री सुविधाएं और सुरक्षा व्यवस्था
गुरु रविदास जयंती 2026 को देखते हुए सीर गोवर्धनपुर में बुनियादी सुविधाओं का बड़े पैमाने पर विस्तार किया जा रहा है। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए 24 विशाल टेंट लगाए जा रहे हैं, जिन्हें राज्यवार विभाजित किया जाएगा। अस्थायी यात्री निवास, स्नानघर, शौचालय और पेयजल की पर्याप्त व्यवस्था सुनिश्चित की जा रही है। प्रशासन सुरक्षा और यातायात प्रबंधन को लेकर भी विशेष रणनीति बना रहा है।

35 फीट ऊंची प्रतिमा और भव्य सजावट
सीर गोवर्धनपुर में स्थापित संत गुरु रविदास जी की 35 फीट ऊंची भव्य प्रतिमा श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है। मंदिर परिसर और जन्मस्थली को फूलों, रोशनी और सजावटी सामग्री से सजाया जा रहा है, जिससे पूरा क्षेत्र आध्यात्मिक उल्लास से सराबोर दिखाई देगा।

राष्ट्रीय शिल्प मेला और विशाल लंगर
गुरु रविदास जयंती के अवसर पर राष्ट्रीय शिल्प मेला भी आयोजित किया जाएगा, जिसमें देशभर के कारीगर अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे। इसके साथ ही विशाल लंगर व्यवस्था की जा रही है, जहां बिना किसी भेदभाव के लाखों श्रद्धालुओं को भोजन कराया जाएगा। ट्रस्ट के अनुसार, इस दौरान करीब 6 हजार सेवादार सेवा कार्य में जुटते हैं। पंजाब से 5–6 ट्रक खाद्य सामग्री मंगाई जाती है, जबकि हरी सब्जियां स्थानीय मंडियों से खरीदी जाती हैं, जिससे स्थानीय व्यापार को भी लाभ मिलता है।

निरंजन दास चीमा का बयान और स्वर्ण मंदिर की योजना
रविदास मंदिर के ट्रस्टी निरंजन दास चीमा ने बताया कि इस बार जयंती को और अधिक भव्य बनाने की दिशा में विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि भविष्य में रविदास मंदिर को स्वर्ण मंदिर के रूप में विकसित करने की योजना है, जिस पर कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा है।

संत निरंजन दास जी का आगमन और बेगमपुर ट्रेन
रैदासिया समुदाय के प्रमुख आध्यात्मिक गुरु और डेरा सच्चा खंड बल्लां (जालंधर) के प्रमुख संत निरंजन दास जी हर वर्ष विशेष ‘बेगमपुर ट्रेन’ से पंजाब से वाराणसी पहुंचते हैं। उनके आगमन के साथ ही जयंती समारोह अपने शिखर पर पहुंच जाता है।

तीन दिवसीय कार्यक्रमों की रूपरेखा
गुरु रविदास जयंती से दो दिन पूर्व कार्यक्रमों की शुरुआत ध्वजारोहण और अमृतबाणी गुरु रविदास जी के अखंड पाठ से होती है। संत रविदास के जीवन और शिक्षाओं पर आधारित सत्संग और प्रवचन आयोजित किए जाते हैं।

जयंती से एक दिन पूर्व पूरे दिन भजन-कीर्तन, सत्संग और शाम को भव्य दीपोत्सव होता है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ रात 12 बजे जन्मोत्सव मनाया जाता है। मुख्य जयंती के दिन माघ पूर्णिमा पर श्रद्धालु गंगा स्नान करते हैं, भव्य नगर कीर्तन निकाला जाता है और मंदिरों में विशेष आरती, कीर्तन व प्रवचन होते हैं। विशाल लंगर और सेवा कार्यों के साथ शाम को प्रार्थना और प्रसाद वितरण के बाद कार्यक्रम का समापन होता है।

समानता, प्रेम और मानवता का संदेश
कुल मिलाकर, गुरु रविदास जयंती 2026 केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सामाजिक समानता, प्रेम और मानवता के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने का माध्यम है। काशी की धरती पर यह पर्व आस्था, सेवा और समरसता का ऐसा उदाहरण पेश करता है, जो देश-दुनिया के लिए प्रेरणास्रोत बनता जा रहा है।

