BHU में जाणता राजा का मंचन देख भावविभोर हुईं राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, बोलीं, अद्वितीय व रोमांचकारी है महानाट्य

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वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एम्फी थियेटर ग्राउंड पर छत्रपति शिवाजी माहाराज के जीवन चरित्र पर आधारित महानाट्य जाणता राजा का मंचन हो रहा है। पांचवें दिन शनिवार की शाम राज्यपाल आनंदीबेन पटेल इसका मंचन देखने पहुंची। शिवाजी के जीवन चरित्र का जीवंत मंचन देख द्रवित व भावविभोर हो उठीं। 

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उन्होंने कहा कि यह नाटक अद्वितीय एवं रोमांचकारी है तथा भारतीय मूल्यों को अपने में समेटे हुए जीवंत कर रखा है। उन्होंने सेवाभारती के प्रांत अध्यक्ष राहुल सिंह एवं आयोजन सचिव एवं अध्यक्ष अभय सिंह को अयोजन की सफलता के लिए बधाई दी। उन्होंने प्रान्त प्रचारक रमेश जी का भी हृदय से आभार जताया। आयोजन समिति के सदस्यों ने अंगवस्त्रम भेट कर उन्हें सम्मानित किया। कार्यक्रम के मुख्यवक्ता बृंदावन से पधारे सन्त ऋतेश्वर जी ने कहा कि भारत भूमि भाग्यशाली हैं जहां शिवाजी जैसे धर्म भीरु पैदा हुआ। सुल्तानपुर एवं अमेठी के संघ पदाधिकारी, भाजपा कार्यकर्ताओं एवं आमजन ने नाटक का अवलोकन किया। आयोजन सचिव अनिल किजडवेकर ने हाथ आगे बढ़ा देशहित की शपथ दिलाई। इस दौरान यूपी के मंत्री अनिल राजभर, भाजपा प्रबुद्ध प्रकोष्ठ विपिन सिंह, प्रधानमंत्री संसदीय कार्यालय प्रभारी शिवशरण पाठक, मेयर अशोक तिवारी, पूर्व विधायक सुरेन्द्र सिंह, धर्मेंद्र सिंह, डॉ ज्ञान प्रकाश मिश्र, समन्वयक राकेश तिवारी, हरेन्द्र राय, सतीश जैन,जियुत राम विश्वकर्मा, हरिनारायण विसेन,डॉ राघव मिश्र,विभाग प्रचारक नितिन,भाग प्रचारक विक्रान्त प्रमुख थे। 

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इनकी विशेष भागीदारी एवं उपस्थिति रही
सुल्तानपुर सांसद मेनका गांधी, प्रान्त संघ चालक विश्वनाथ लाल निगम,सह प्रान्त कार्यवाह रासबिहारी लाल,सुल्तानपुर विभाग प्रचारक श्री प्रकाश,सुलतानपुर सदर विधायक रामबाबू उपाध्याय, विधायक द्वय सीताराम वर्मा, विनोद कुमार सिंह, एमएलसी शैलेंद्र प्रताप सिंह, डॉ वेदप्रकाश सिंह चेयरमैन विश्वनाथ ग्रुप एवं जिला संघ चालक अरुण सिंह आदि रहे। 

शिवाजी का एलान तंजावर से पेशावर तक हिंदवी स्वराज
मां जीजाबाई के मुगल शासन के खिलाफ बगावत करने के आवाह्न पर तरुण शिवाजी तुलजा भवानी की कसम खाकर तलवार उठाकर एलान करते हैं कि अब जिएंगे तो स्वतंत्र शेर की तरह और भगवान, स्वधर्म, देश एवं स्वराज को सोने के सिंहासन पर विराजमान करना है। स्वराज की मोहर अब आसमान पर लगेगी। छापामार युद्ध कर तोरणगढ़ किले पर भगवा फहराकर स्वतंत्रता की ज्योति जलाते हुए हिंदवी स्वराज की स्थापना करते हैं और 22 किलो कब्जे में लेकर एलान करते हैं कि तंजावर से पेशावर तक हिंदवी स्वराज की स्थापना होगी। सिंधु नदी के उद्गम स्थल से कावेरी नदी के तट तक हिंदवी स्वराज होगा।

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दो प्रसंग को दर्शकों की विशेष प्रतिक्रिया 
वैसे तो पूरा महानाट्य ही विशेष है और दर्शकों से इसे जबरदस्त प्रतिक्रिया मिल रही है। दर्शकों के बीच जाणता राजा महानाट्य के दो प्रसंग विशेष रूप से खासा लोकप्रिय हो रहे हैं। एक जिसमें शिवाजी बीजापुर सल्तनत के सेनापति अफजल खान को मरते हैं और दूसरा जिसमें मराठा राजा मुगल सेना के सर्वोच्च कमांडर और औरंगजेब के चाचा शाइस्ता खान पर पुणे में उसके शिविर पर हमला करते हैं और उसे भागने पर मजबूर कर देते हैं।

जाणता राजा महानाट्य में आदर्श शासक की झलक 
मंचन के दौरान यह भी दर्शाया गया है कि जाति, समुदाय, धर्म और पंथ से ऊपर उठकर एक आदर्श शासन को अपनी प्रजा के लिए कैसा होना चाहिए। महिला के साथ बच्चों की करने पर अपने राज्य के पाटिल को सजा देना और मोहिते मामा को गिरफ्तार करना। अधिकार का दुरुपयोग करने पर अपने प्रधानमंत्री को बर्खास्त कर देना। शिवाजी महाराज के द्वारा स्थापित आदर्श शासन के तौर पर अनुशासन व न्याय प्रियता युवा समाज के लिए प्रेरणा का काम करेगी।
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मुझे कुंती जैसा सम्मान दिलाइए 
आदिल शाह की तरफ से अफजल खान शिवाजी को गिरफ्तार करने हेतु विशाल सेना लेकर चढ़ाई करता है। शिवाजी महाराज के साथ बारह मावल की हथियार बंद सेना के साथ रणनीति बनाने के दौरान मां जीजाबाई द्वारा यह कहना कि इसी अफजल खान ने तुम्हारी बड़ी भाभी को विधवा बनाया था। लड़िए और मुझे कुंती जैसा सम्मान दिलाइए, कहकर शिवाजी को विदा करती हैं। फिर शिवाजी अफजल खान के साथ भेंट के दौरान छल कपट की आशंका होने पर उसे शेर जैसे स्टील के पंजों से फाड़कर मार देते हैं।

इंसानों की संवेदनाएं मर जाती हैं तो बच जाती हैं सिर्फ जिंदा लाशें 
बाजी घोरपड़े द्वारा शिवाजी को यह सलाह देना कि स्वराज स्थापना की बात छोड़कर सुल्तान के आगे घुटने टेक दो और सुल्तान का खाना उसी पर गुर्राना, ठीक नहीं है। शिवाजी द्वारा यह कहना कि अपने देश में स्वराज निर्माण करना क्या अपमान है। इंसानों की संवेदनाएं जब मर जाती हैं तो बच जाती है सिर्फ जिंदा लाशें। 

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स्वराज चाहिए या सुहाग 
बाजी घोरपड़े द्वारा शिवाजी के पिता शाह जी महाराज को गिरफ्तार कर लिया जाता है और जीजाबाई को संदेश भेजा जाता है कि स्वराज चाहिए या सुहाग, तब शिवाजी महाराज स्वराज और पिता दोनों को बचाने हेतु चिंता में पड़ जाते हैं। इस समय उनकी पत्नी सलाह देती है कि स्वराज और पिता दोनों तीर्थ के समान है। दोनों को बचाइए। दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त होता है। फिर शिवाजी छापामार युद्ध कर पिता और स्वराज दोनों को सुरक्षित कर लेते हैं और एक के बाद एक 22 किले कब्जे में करते हुए हिंदवी स्वराज को पूरे देश में स्थापित करने की बात करते हैं।

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छत्रपति शिवाजी के राज्याभिषेक ने किया भावविभोर 
वाराणसी के वेद मूर्ति विद्वान पंडित गागा भट्ट द्वारा छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक कराने के दृश्य की भव्यता एवं सौंदर्यता ने उपस्थित दर्शकों को भाव विभोर कर दिया। हर कोई जय भवानी जय शिवाजी हर हर महादेव के जयकारे लगाते हुए उसे पल को हमेशा के लिए अपनी आंखों में कैद कर लेना चाह रहा था। कई दशकों के तो आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे और बुजुर्ग, युवा, महिला, बालक हर कोई शिवाजी महाराज के छत्रपति छवि को अपने दिल में हमेशा के लिए बसाकर वीर शिवाजी जैसा व्यक्तित्व समाज में खड़ा करने के लिए प्रतिज्ञाशील दिखे।

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