10 फीट नीचे आया गंगा का जलस्तर, गंगा दशहरा से पहले घाटों पर बने रेत के टीले

ganga water level
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वाराणसी। वाराणसी समेत यूपी के कई जिले इन दिनों प्रचंड गर्मी की चपेट से बेहाल हैं। भीषण गर्मी का असर आमजनमानस सहित जलस्तर पर भी पड़ रहा है। 16 जून को गंगा दशहरा यानी कि गंगा के अवतरण का दिन है। शिव की नगरी, काशी में इस त्योहार की सबसे ज्यादा अहमियत है। लेकिन, इस बार की भीषण गर्मी से गंगा की सेहत काफी खराब है। पिछले साल जून के मुकाबले इस बार गंगा एक मंजिल नीचे चली गईं हैं।

गंगा का जलस्तर सिर्फ 57 मीटर है। सबसे बड़ी समस्या ये है कि गंगा के घाट सैंड कोस्ट में तब्दील होते जा रहे हैं। यानी कि पक्के घाटों पर रेत का टीला जमा होने लगा है। पहली बार देखने को मिला है कि गंगा के बसावट वाले इलाके में घाटों पर बालू और गाद जम रहा है।

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गंगा के करीब 40 से ज्यादा घाटों पर ये कंडीशन बन गई है। सिंधिया घाट, सक्का घाट, ललिता घाट से लेकर दशाश्वमेध घाट और पांडेय घाट से लेकर शिवाला तक रेत-गाद पहुंच गया है। अस्सी घाट तो पहले ही बालू-मिट्टी में समा चुका है।

सबसे ज्यादा बालू और मिट्टी दशाश्वमेध घाट पर जमा है। यहां पर आने वाले पर्यटक और श्रद्धालु तो घाटों की सीढ़ियाें से उतरकर पहले बालू-मिट्टी पर खड़े होकर तस्वीरें लेते हैं। बोटिंग करने वाले भी रेत से होकर नावों पर चढ़ते हैं। दशाश्वमेध घाट के सामने हरियाली से डेढ़ किलोमीटर चौड़ा रेत बन गया है। गाय घाट से राजघाट के बीच में 2 किलोमीटर चौड़ा रेत उभर गया है। घाट के सामने गंगा के बीच में लंबे-लंबे रेत निकल आए हैं।

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पहले गंगा दशहरा पर छोड़ा जाता था पानी

पांडेय घाट के नाविक पकालू साहनी ने बताया, इस बार गर्मी में गंगा करीब 12 फीट नीचे चली गईं हैं। ये स्थिति पहली बार देखने को मिला है। अब तो किनारों पर नांव चलाने में डर लग रहा है। नाव बड़े-बड़े बोल्डरों से टकरा जा रही है। गंगा में पानी कम होता जा रहा है। आज से 5 साल पहले हर बार गंगा दशहरा पर पानी छोड़ा जाता था। जून महीने में जब पानी बढ़ जाए तो लगता था कि गंगा दशहरा होने वाला है। लेकिन, अब तो ये भी नहीं हो रहा है।

गहराई भी होने लगा है कम

गंगा वैज्ञानिकों का कहना है कि गंगा के पूर्व में रेत का पूरा टीला ही बन गया है। ऐसा लगता है कि राजस्थान का रेगिस्तान हो। गंगा के अप स्ट्रीम में रेत का बढ़ रहा है और डाउन स्ट्रीम में रेत पूरब से पश्चिम की ओर शिफ्ट होने लगा है। क्योंकि ईस्ट कोस्ट यानी कि पूर्वी किनारों पर जरूरत से ज्यादा बालू जम चुका है। इस वजह से गंगा की गहराई भी कम होने लगी है। बीएचयू के पूर्व वैज्ञानिक और गंगाविद प्रो. बीडी त्रिपाठी ने कहा कि गंगा का पानी पहले पत्थरों से टकराता था। लेकिन, अब घाटों पर जमे रेत और मिट्टी से टकरा रहा है। यही वजह है कि घाटों पर कटाव बढ़ गया है। घाटों के नीचे पोले बन गए हैं। कई पक्के घाट तो टूटने लगे हैं। घाटाें के टूटने की वजह से किनारे की हेरिटेज बिल्डिंग और घरों का भी टूटना शुरू हो गया है। गंगा का इकोसिस्टम डिस्टर्ब हो चुका है।

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पानी कम होने से बढ़ रहा प्रदूषण

प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि गंगा का पानी कम होने से डाईलूशन कैपेसिटी कम हो गई है। यानी कि गंगा में प्रदूषण काफी बढ़ जाएगा। जो भी जलीय जीव हैं, उनके जीवन को खतरा हो जाएगा। आज शहरी इलाकों से गंगा के राष्ट्रीय जीव डॉल्फिन शिफ्ट हो गए हैं। कैथी की ओर चले गए हैं, क्योंकि डॉल्फिन के लिए गंगा की गहराई कम से 18 फीट का चाहिए। कहीं-कहीं तो 4 से 6 फीट ही गहराई बची है। पानी कम होने से ग्राउंड वाटर रिर्चाजिंग कैपेसिटी कम होती जा रही है। गंगा का पानी कम होना, गंगा के इकोसिस्टम पर भी खतरा है। क्लीन गंगा से ज्यादा सेफ गंगा की बात होनी चाहिए।
 

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