स्वतंत्रता संग्राम: जब अंग्रेजों ने काशी विद्यापीठ पर जड़ दिया था ताला, बनारस में 23 जगहों पर फायरिंग में 19 लोग हुए थे शहीद, 1.86 लाख लोगों पर लगा था सामूहिक जुर्माना

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वाराणसी। काशी का इतिहास केवल आध्यात्मिक अथवा मंदिरों का ही नहीं बल्कि स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा है। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर देश को आजादी मिलने तक काशी के सपूतों ने अपना लहू बहाया है। ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ नारे के साथ 1942 में देशभर में अगस्त क्रांति की शुरुआत हुई तो काशीवासी भी पीछे नहीं रहे। 

वाराणसी में नौ से 28 अगस्त तक लगातार क्रांतिकारियों का जुलूस निकलता रहा। इस बीच कई सरकारी भवनों पर तिरंगा फहराया गया। 11 अगस्त को कचहरी पर झंडा फहराया गया। 13 से 28 अगस्त के बीच चार दिन तत्कालीन बनारस के चार स्थानों पर क्रांतिकारियों पर फायरिंग हुई थी। जिसमें 15 स्वतंत्रता सेनानी शहीद हो गए थे। वाराणसी में अगस्त क्रांति की अलख जगाने वालों में बाबू संपूर्णानंद, पं० कमलापति त्रिपाठी, रामसूरत मिश्र, चंद्रिका शर्मा, ऋषि नारायण शास्त्री, कामता प्रसाद विद्यार्थी, श्रीप्रकाश, बीरबल सिंह, राजाराम शास्त्री, विश्वनाथ शर्मा, रघुनाथ सिंह, राजनारायण सिंह, प्रभुनारायण सिंह, देवमूर्ति शर्मा, कृष्णचंद्र शर्मा, मुकुट बिहारी लाल, गोविंद मालवीय, डॉ० गौरोला आदि प्रमुख थे।

पं० कमलापति त्रिपाठी के शिष्य डॉ० सतीश राय बताते हैं कि अगस्त क्रांति के दौर में नगर क्षेत्र में नौ अगस्त से प्रतिदिन जुलूस निकले। 11 अगस्त 1942 को भीड़ ने कचहरी पर झंडा फहराया तो लाठी चार्ज हुआ जिसमें कई लोग जख्मी हुए थे। 13 को दशाश्वमेध घाट के निकट चितरंजन पार्क, 16 को धानापुर (वर्तमान में चंदौली जनपद में), 17 को चोलापुर और 28 अगस्त को सैयदराजा में कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर गोलियां बरसायी गईं। इन चार तिथियों में लगभग 15 लोग शहीद हुए थे। 

आंदोलन का गढ़ बन चुके काशी विद्यापीठ में पुलिस ने ताला जड़ दिया था। अगस्त क्रांति के दौरान जिले के 23 स्थानों पर पुलिस फायरिंग हुई थी। उनमें 19 लोग शहीद और 178 घायल हुए थे। अगस्त 1942 में बनारस में कुल एक लाख 86 हजार 819 लोगों पर सामूहिक जुर्माना लगाया गया। धानापुर कांड में तीन पुलिसकर्मी भी मारे गए थे। उस मामले में तीन लोगों को फांसी की सजा सुनायी गयी। उसके क्रियान्वयन पर पं० जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में बनी अंतरिम सरकार ने रोक लगा दी थी।
 

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