चर्चित संवासनी कांड : सुप्रीम कोर्ट ने सांसद रणदीप सिंह सूरजेवाला को स्पष्ट प्रति देने का दिया निर्देश

वाराणसी। वर्ष 2000 में हुए चर्चित संवासनी कांड में कांग्रेस सांसद रणदीप सिंह सूरजेवाला द्वारा प्रस्तुत याचिका उच्चतम न्यायालय में प्रस्तुत याचिका का सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है। उच्चतम न्यायालय ने विशेष न्यायालय एमपी-एमएलए कोर्ट वाराणसी को निर्देश दिया है की पढ़ने योग्य स्पष्ट आरोपपत्र व प्राथमिकी की प्रति याची को उपलब्ध करायें।
गौरतलब है कि शिवपुर स्थित नारी संरक्षण गृह (संवासिनी गृह) की संवासिनियों से अनैतिक देह व्यापार के मामले को लेकर साल 2000 में वाराणसी से लगायत पूरे प्रदेश में हड़कंप मच गया था। सांसद रणदीप सूरजेवाला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनू सिंधवी ने याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थी। वाराणसी में हुए वर्षो पूर्व संवासनी कांड को लेकर युवा कांग्रेस द्वारा आयोजित आयुक्त कार्यालय पर धरना-प्रदर्शन के दौरान तोडफ़ोड़ में सांसद रणदीप सिंह सूरजेवाला सहित तमाम कांग्रेसियों के विरुद्ध कैंट थाने में मुकदमे दर्ज किये गये थे। सांसद रणदीप सिंह सूरजेवाला समेत सैकड़ों कांग्रेसी जमानत पर रिहा हुए थे।
अदालत में बहस के दौरान अभिषेक मनू सिंधवी ने बताया कि वाराणसी में दो दशक वर्ष पूर्व इस घटना में रणदीप सिंह सूरजेवाला का घटना स्थल पर अपराध का कोई भी साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। ऐसे में सूरजेवाला के विरुद्ध आरोप विचरित न किया जाय। क्योंकि उसे स्पष्ट रूप से पढ़ा नहीं जा रहा है। उच्चतम न्यायालय ने विशेष न्यायालय एमपी-एमएलए कोर्ट वाराणसी को निर्देश दिया कि स्पष्ट आरोपपत्र व प्राथमिकी की प्रति याची को उपलब्ध करायें। ताकि आरोपपत्र के विरुद्ध आपत्ति याची लिखित रूप से माननीय न्यायालय के समक्ष लिखित रूप से प्रस्तुत करे। बता दें कि उच्चतम न्यायालय की सत्य प्रमाणित प्रतिलिपि प्रार्थनापत्र के साथ प्रस्तुत करते हुए रणदीप सिंह सूरजेवाला के अधिवक्ता संजीव वर्मा ने न्यायालय से स्पष्ट प्रति उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था। न्यायालय ने स्पष्ट प्रति टाइप शुदा की प्रति 18 मई 2023 को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है। वरिष्ठ अधिवक्ता संजीव वर्मा ने बताया कि स्पष्ट प्रति प्राप्त होने पर पुनः उच्चतम न्यायालय में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनू सिंधवी द्वारा प्रस्तुत की जायेगी।
क्या था मामला
साल 2000 में शिवपुर स्थित संवासिनी गृह से भागी एक 12-13 साल की संवासिनी ने जब पुलिस को इसकी सूचना और मामला आमजन तक पहुंचा तो वाराणसी से लखनऊ तक प्रशासनिक अमले के फोन घनघनाने लगे। जांच हुई और तत्कालीन एसीएम फोर्थ की रिपोर्ट पर 24 मई 2000 को एफआईआर दर्ज कर ली गयी। इस मामले में सीबीआई ने जांच की और अंत में सभी को क्लीन चिट दे दिया। संवासिनी कांड समाचार पत्रों की सुर्खियों में बना रहा। उस समय का यह बड़ा स्कैंडल था। संवासिनी गृह से भागकर निकली एक लड़की ने पुलिस को सूचना दी थी कि संवासिनी गृह की लड़कियों से अनैतिक देह व्यापार कराया जाता है और उन्हें संवासिनी गृह से बाहर भेजा जाता है। इसकी विवेचना तत्कालीन एएसपी जीके गोस्वामी को दी गयी। उन्होंने विवेचना की। विवेचना पूरी हुई तो उन्होंने 14 आरोपितों के खिलाफ अनैतिक देह अधिनियम की धारा 3, 4, 5, 6, 8, 9 तथा 15 के तहत अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया था। इनमें कुछ नामचीन लोगों और पुलिस अधिकारियों को भी आरोपित किया गया था। कई व्यापारियों और सफेदपोशों के नाम आये थे। इस मामले में तत्कालीन अधीक्षिका श्यामा सिंह को जेल भेज दिया गया था।
लड़की ने पुलिस को खूब छकाया
संवासिनी गृह से भागकर थाने पहुंची लड़की तत्कालीन एसपी सिटी कैप्टन आर विक्रम को बताया कि उसे अपना घर याद है। इसपर उन्होंने मानवतावश कैंट थाने की एक जीप, महिला कांस्टेबल, एक सब इंस्पेक्टर और संवासिनी गृह की कर्मचारियों को उसके साथ बलिया भेजा। वहां कई दिनों तक उसने पुलिस टीम को गुमराह किया। वह एक स्कूल में घुसी और कहा कि मेरा स्कूल है। लेकिन किसी ने उसे वहां पहचाना नहीं। उसके बाद एक मकान के समाने रुकी और बोली मेरा घर है पर उन लोगों ने भी उसे अपनी बेटी मानने से इंकार कर दिया। कुछ दिन बाद उसका पिता खुद आया और उसने बताया कि यह घर से भाग गयी थी और हम ढूंढ रहे थे। इस मामले में कई सारी खबरें मीडिया में चल रही थीं। ऐसे में पुलिस प्रशासन सभी पत्रकारों को शिवपुर संवासिनी गृह ले गया। पत्रकारों ने संवासिनियों और कर्मचारियों से बातचीत की। खाने-पीने की व्यवस्था, सोने और शौचालय की व्यवस्था देखी। किसी भी संवासिनी ने देह व्यापार जैसी बात नहीं कही थी।
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