डा. विभूतिनाराय़ण सिंह ने काशीवासियों के दिलों पर किया राज, अद्भुत व्यक्तित्व के धनी थे पूर्व काशीराज
वाराणसी। बाबा विश्वनाथ के प्रतिनिधि के रूप में काशीवासियों के दिलों पर राज करने वाले पूर्व काशीराज स्व. डा. विभूतिनारायण सिंह की आज पुण्यतिथि है। आज से 23 वर्ष पहले 25 दिसंबर, 2000 की शाम काशी को स्तब्ध करने वाली मनहूस खबर आई कि पूर्व काशीराज नहीं रहे। इसके साथ ही हमेशा गुलजार रहने वाले जिंदादिल शहर का चप्पा-चप्पा घनघोर उदासी व निराशा में डूब गया था। अपने प्यारे राजा को खोना काशीवासियों के लिए किसी वज्रपात से कम नहीं था।
डा. विभूतिनारायण सिंह काशी विश्वनाथ के प्रतिनिधि के रूप में काशीवासियों के लिए हमेशा अभिनंदनीय रहे। राजा साहब ने अपना यह सहज-सरल व्यक्तित्व अपने कृतित्व से स्वयं गढ़ा था। यही कारण रहा कि जिस राह से वह गुजरते थे, वहां का पूरा माहौल हर-हर महादेव के उद्घोष से गूंज जाता था। काशीवासियों से उन्हें जो स्नेह और आदर मिला, वह मिसाल है। पूर्व काशिराज वेदों के ज्ञाता होने के साथ ही ज्ञान-विज्ञान के अध्येता भी रहे। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलाधिपति रहे। उनकी विद्वता और पांडित्य ने उनके किरदार को एक अलग ही आभामंडल देता था। जनता के बीच आने पर पूरी विनयशीलता के साथ जनमानस को अर्पित उनका प्रणाम सहज ही काशीवासियों का दिल जीत लेता था।
काशीवासियों से रहा सीधा जुड़ाव
पूर्व काशीराज डा. विभूति नारायण सिंह की जनउत्सवों में भागीदारी अनिवार्य हुआ करती थी। दरअसल, यही वह डोर थी जो बनारस वालों के मन से सीधी जुड़ती थी। रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला, नाटी इमली का भरत मिलाप, तुलसी घाट की नाग नथैया व ध्रुपद मेला, पंचगंगा का देवदीपावली उत्सव, गौतमेश्वर पूजनोत्सव के साथ कठिन पंचकोसी यात्रा आदि अवसरों पर काशीवासी उनकी प्रतीक्षा किया करते थे। डा. विभूतिनारायण सिंह ने कभी अपने प्यारे काशीवासियों के भरोसे को टूटने नहीं दिया, हर उत्सव व आयोजन में उनकी भागीदारी होती थी। जीवनभर उन्होंने इस क्रम को टूटने नहीं दिया।
प्रिवीपर्स समाप्त होने पर जीवनपर्यंत गारद की सलामी के रहे अधिकारी
आजादी के बाद राजाओं का प्रिवीपर्स समाप्त कर दिया गया। काशीराज के साथ भी ऐसा ही हुआ, लेकिन जीवनपर्यंत सशस्त्र बल पीएसी की गारद की सलामी के अधिकारी बने रहे। काशी नरेश की उपाधि भी अंतिम समय तक सुशोभित करती रही। इसी वजह से वैभव व शानोशौकत के मामलों में अन्य राजे-रजवाड़ों की तुलना में कम होने के बावजूद कद-बुत के मामले में उनके सामने कोई नहीं ठहरता।
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