कारगिल के युद्ध में अपना शौर्य दिखाने वाले योद्धा दीपचंद ने बाबा श्री काशी विश्वनाथ का किया दर्शन पूजन, युद्ध में गंवा चुके हैं एक हाथ और दोनों पैर
उन्होंने बताया कि उनका जन्म पाबड़ा हिसार, हरियाणा में 19 मई 1975 को हुआ है। इनकी पहली तैनाती फिरोजपुर में तीन साल के लिए हुई थी। फरवरी 1998 में नायक दीपचंद को श्रीनगर में तैनात किया गया। इसके बाद वह कारगिल युद्ध में लड़ने चले गए। छात्रावस्था के दौरान भारतीय सेना में शामिल होने के उपरांत इन्होने तीन पराक्रम में भाग लिया (1) ऑपरेशन रक्षक जम्मू एंड कश्मीर (2) ऑपरेशन विजय कारगिल (3) ऑपरेशन पराक्रम।
“सफ़र शहादत के सम्मान का, सफ़र वीरों के बलिदान का”
नायक दीपचंद ने खुफिया विभाग में काम करते हुए कश्मीरी लैंग्वेज कोर्स करने के बाद ड्यूटी ज्वाइन की थी। आपरेशन कारगिल में तोलोलिंग हिल के ऊपर सबसे पहला गोला दीपचंद की तोप से ही हिट हुआ था। दीपचंद ही वह जाबाज सैनिक हैं, जिन्होंने तोलोलिग पर बोला था कि हमें राशन नहीं गोला बारूद ज्यादा से ज्यादा चाहिए। कारगिल लड़ाई में नायक दीपचंद की यूनिट ने 8 गन पोजीशन को चेंज किया और लगभग 10,000 गोले दुश्मन पर दागे जो अपने आप में एक रिकार्ड है। इस अच्छे कार्य की वजह से इनकी यूनिट को 12 गैलंट्री अवार्ड से सम्मानित किया गया। उसके बाद आपरेशन पराक्रम के दौरान रियर लोकेशन जो कि सिकंदराबाद में था वहां स्टोर अनलोडिंग में बम धमाके से हाथ उड़ गया और रात भर चले ऑपरेशन में डाक्टरों को जिंदगी बचाने के लिए दोनों टांगे काटनी पड़ी।
सेना में अपने वीरता व् पराक्रम का परिचय देते हुए दीपचंद नायक जी के गंभीर रूप से घायल होने के कारण सेना से समय से पूर्व सेवानिवृत्त होने के उपरांत इन्होने अपना जीवन वीर शहीदों को सम्मान दिलाने हेतु समर्पित कर दिया है। वर्तमान समय में नायक दीपचंद एक आदर्श सैनिक फाउंडेशन का संचालन कर रहे है जो कि शहीद स्मारक बनाने व् तिरंगा लगाने के साथ-साथ युद्ध में घायल/शहीद/दिव्यांग सैनिकों हेतु भी कार्य करते हैं। नायक दीपचंद ने कहा कि अगर भगवान ने मुझे पुनर्जन्म दिया तो मैं देश की सेवा के लिए खुद को बलिदान कर दूंगा।
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