BHU वैज्ञानिक का रिसर्च : 25 हजार साल पहले भी आई थी कोविड जैसी महामारी, भविष्य में भी मौजूद रहेगा वायरस, मगर सामान्य बीमारी बनकर

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वाराणसी। कोविड-19 महामारी को लेकर एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक दृष्टिकोण सामने आया है। आईआईटी (बीएचयू) में आयोजित 10वीं इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन बायोप्रोसेसिंग इंडिया (BPI-2025) के दौरान काशी हिंदू विश्वविद्यालय के जीन वैज्ञानिक प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने अपने शोध निष्कर्ष साझा करते हुए कहा कि कोविड जैसी महामारी मानव इतिहास में कोई नई घटना नहीं है। उन्होंने बताया कि लगभग 25 हजार वर्ष पहले पूर्वी एशिया, विशेष रूप से चीन क्षेत्र में, सार्स-कोव-2 जैसे कोरोना वायरस का संक्रमण फैला था, जिसके जेनेटिक प्रमाण आज भी वहां की जनसंख्या में प्राकृतिक चयन के रूप में मौजूद हैं।

Gene scientist Professor Gyaneshwar Chaubey
प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे, जीन वैज्ञानिक

प्राचीन मानव इतिहास में कोरोना जैसे संक्रमण के प्रमाण
प्रोफेसर चौबे ने बताया कि पूर्वी एशिया के लोगों में आज भी ऐसे जेनेटिक संकेत मिलते हैं, जो यह दर्शाते हैं कि उस क्षेत्र में हजारों साल पहले कोरोना जैसे वायरस से मानव आबादी प्रभावित हुई थी। उस समय वायरस के खिलाफ प्राकृतिक चयन की प्रक्रिया हुई, जिससे कुछ आनुवंशिक विशेषताएं विकसित हुईं और वही विशेषताएं आज के जीनोम में दिखाई देती हैं। यह शोध इस बात की पुष्टि करता है कि महामारी मानव सभ्यता के विकास का हिस्सा रही हैं।

वायरस के वैरिएंट और म्यूटेशनल डायनामिक्स
अपने व्याख्यान में प्रो. चौबे ने वायरस के विभिन्न वैरिएंट्स के उभरने को म्यूटेशनल डायनामिक्स से जोड़कर समझाया। उन्होंने बताया कि पांच लाख से अधिक वायरस जीनोम के विश्लेषण के आधार पर यह निष्कर्ष निकला है कि प्यूरिफाइंग सिलेक्शन की प्रक्रिया ने वायरस को अधिक संक्रामक तो बनाया, लेकिन उसकी घातकता को कम कर दिया। उनके वर्ष 2022 के वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार वायरस भविष्य में भी मौजूद रहेगा, संक्रमण फैलाता रहेगा, लेकिन गंभीर मामलों और अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता लगभग नगण्य हो जाएगी। वर्तमान स्थिति इसी वैज्ञानिक अनुमान की पुष्टि करती नजर आ रही है।

अंडमान की जनजातियां सबसे अधिक संवेदनशील
प्रोफेसर चौबे ने अंडमान-निकोबार द्वीप समूह की जनजातियों का उदाहरण देते हुए बताया कि जारवा, ओंगे और ग्रेट अंडमानिज जैसी जनजातियां कोविड-19 के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील थीं। सीसीएमबी के सहयोग से किए गए जेनेटिक्स और इम्यूनिटी अध्ययन में यह सामने आया कि इन जनजातियों के जीनोम में लंबे होमोजाइगस सेगमेंट्स पाए जाते हैं, जिसके कारण उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहद कमजोर थी। कम जनसंख्या और बाहरी बीमारियों से लगभग शून्य इम्यूनिटी के कारण कोविड वायरस इनके अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा बन सकता था।

सरकारी कदमों से बची दुर्लभ जनजातियों की जान
इस वैज्ञानिक अध्ययन को गंभीरता से लेते हुए केंद्र सरकार ने तत्काल सख्त कदम उठाए। अंडमान की जनजातियों को पूरी तरह अलग-थलग रखा गया, बाहरी लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया और नियमित जांच की व्यवस्था की गई। इन प्रयासों का सकारात्मक परिणाम सामने आया। विश्व की सबसे अनोखी जनजातियां पूरी तरह सुरक्षित रहीं, जबकि ग्रेट अंडमानिज समुदाय में कुछ मामले जरूर सामने आए, लेकिन सभी संक्रमित स्वस्थ हो गए। प्रो. चौबे ने कहा कि यह वैज्ञानिक शोध और समय पर लिए गए प्रशासनिक फैसलों का ही परिणाम था कि इन दुर्लभ जनजातियों की जान बचाई जा सकी।

कोविड अब एंडेमिक बीमारी की ओर
प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने निष्कर्ष के रूप में कहा कि प्राकृतिक चयन की प्रक्रिया ने कोरोना वायरस को अब एंडेमिक यानी सामान्य मौसमी बीमारी की दिशा में मोड़ दिया है। इसका अर्थ है कि वायरस का प्रसार अधिक हो सकता है, लेकिन उसकी घातकता लगातार कम होती जाएगी। उन्होंने कहा कि भविष्य की महामारियों से निपटने के लिए जेनेटिक रिसर्च और वैज्ञानिक दृष्टिकोण नीति-निर्माण में बेहद अहम भूमिका निभा सकते हैं।

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