तस्करी के लिए मुफीद पूरबिया गोल्ड कोस्ट बना बनारस
- पिछले कुछ वर्षों में सोना तस्करी में आई काफी तेजी
- वाराणसी की स्थानीय मंडी में खपत के साथ ही जयपुर, मुम्बई तक भेजा जा रहा म्यांमार और बैंकाक से लाया गया सोना
अरशद आलम
वाराणसी। ‘सोना कितना सोणा है’ गीत तो सुना ही होगा। यह गाना अब देशभर के तस्कर काशी में गुनगुना रहे हैं। बड़े ही सुनियोजित तरीके से वाराणसी को बैंकाक, म्यांमार और बांग्लादेश से होने वाली सोना तस्करी का गढ़ बना लिया गया है। इसके पीछे कम रिस्क और बड़ा मुनाफा भी कारण हैं। इस तथ्य पर पिछले दिनों सरकारी एजेंसियों द्वारा की गई सोने की कुछ बड़ी खेप की बरामदगी मुहर लगा रही है। वैसे भी यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सोना दुनिया में तस्करी की जाने वाली पांच वस्तुओं में से है।
इसी साल अब तक पकड़ा गया करोड़ो का सोना
इस साल जनवरी से अब तक डीआरआई, इनकम टैक्स और कस्टम विभाग ने एयरपोर्ट के अलावा कैंट और मुगलसराय रेलवे स्टेशनों से करोड़ो रूपये मूल्य का कई किलो सोना पकड़ा है।अभी कुछ दिन पहले ही भदोही क्राइम ब्रांच ने 8 करोड़ मूल्य का 13 किलो सोना पकड़ा हैं।अनुमान है कि उससे कही अधिक सोना ठिकाने लगाया जा चुका होगा, वाराणसी में डंप किया जा रहा यह सोना दिल्ली, जयपुर, मुंबई, अजमेर समेत पंजाब के कई बड़े शहरों में खपाया जा रहा है। नोटबंदी और लॉकडाउन के बाद सोने के लिए बढ़ी दीवानगी को सोना तस्कर बखूबी भुना रहे हैं।
लूट की वारदातों ने बदल दिया ट्रेंड
पूर्वांचल का प्रमुख शहर होने के कारण वाराणसी सोने के आभूषणों की भी बड़ी मंडी रही है। पहले यहां मुंबई के सोने के कारोबारियों का बोलबाला था। मुंबई का अंडरवर्ल्ड सोने के तस्करी विदेशों से कराता था और वाराणसी जैसे छोटे मगर कमाऊ महानगरों में इस सोने के खपत की जाती थी। एक वक्त ऐसा भी आया जब मुंबई से आने वाली महानगरी एक्सप्रेस से आने वाले कारोबारियों से सोना लूट की वारदातों की बाढ़ आ गई। व्यवसायियों से कई बार पांच-पांच किलो तक का सोना लूटा गया। कई मामले अनरिपोर्टेड रह गए तो कुछ में एफआईआर लिखी गई। 2014 में तत्कालीन सीओ कैंट का गनर ही ऐसी ही एक लूट में गिरफ्तार किया गया था। इन घटनाओं के बाद शहर में सोना लाने और डंप करने के तरीकों में बदलाव हुआ।
अफसरों की मानें तो बनारस आने वाला सोना ज्यादातर बैंकाक(वाया कोलकाता) और म्यांमार से आता है। इसके पीछे सोने की शुद्धता और मुनाफा कारण है। बैंकाक और म्यांमार में सोना भारत के मुकाबले प्रति तोला (10 ग्राम) चार से पांच हजार रुपये तक सस्ता है। एक कैरियर (सोना लाने वाला तस्करों का गुर्गा) एक बार में बड़े आराम से 300 से 500 ग्राम तक सोना ला सकता है और एक बार में उसके ऊपर होने वाला खर्च महज 25 से 30 हजार रुपये है। ऐसे में कैरियर को मेहनताना देने के बाद भी सोना तस्करों को एक चक्कर में ही लाखों रुपये का मुनाफा होता है। डीआरआई, कस्टम व आयकर विभाग के अधिकारियों का मानना है कि छापेमारी के बावजूद काफी मात्रा में सोने की तस्करी हो रही है। तस्कर सोने को एक से दूसरी जगह पहुंचाने के लिए ज्यादातर ट्रेन का इस्तेमाल करते हैं और पूरे रास्ते दो से तीन ट्रेन बदलते हैं। डीआरआई अधिकारियों के अनुसार सोने की सबसे अधिक तस्करी बांग्लादेश और म्यांमार से होती है। तस्कर सोने को पश्चिम बंगाल, गुवाहाटी के रास्ते दिल्ली या अन्य जगहों पर ले जाते हैं। राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) के अधिकारियों की भी सबसे ज्यादा निगाह बंगाल से आने वाली ट्रेनों पर बनी रहती है। दुरंतो और राजधानी जैसी वीआईपी ट्रेनों से भी तस्करी पकड़ी गई है। सोने की मात्रा ज्यादा होने पर जलमार्ग से भी सोने की तस्करी की जाती है।
वाराणसी एयरपोर्ट से ही पिछले कुछ महीनों में करोड़ों का सोना पकड़ा जा चुका है। दरअसल महिलाओं के अलावा इसका अब पुरुषों में भी गजब का क्रेज है। ऐसे में महिला-पुरुष दोनों तस्करों के लिए आसान कैरियर बन जाते हैं। सुरक्षा एजेंसियों की नजर चूकी नहीं कि यह सिक्योरिटी एरिया से पार हो जाते हैं। सोना तस्करी के लिए अजब गजब तरीके अपनाए जा रहे हैं। शरीर के भीतर प्राइवेट पार्ट्स तक में छिपाकर सोना लाया जा रहा है।
20 लाख से ज्यादा के माल पर गिरफ्तारी
बाबतपुर एयरपोर्ट पर तैनात एक कस्टम अधिकारी के अनुसार सीमा शुल्क को लेकर बने कानून हमें सामान जब्त करने के साथ ही टैक्स चोरी करने वाले को गिरफ्तार करने की भी छूट देता है। इसमें गिरफ्तारी तभी अनिवार्य है जब बरामद सामान का मूल्य 20 लाख रुपये से ज्यादा हो। 20 लाख रुपये से कम का सामान पकड़े जाने पर गिरफ्तारी की आवश्यकता नहीं होती है।
म्यांमार है आसान रास्ता
2013 में एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में हर दिन 700 किग्रा सोने की तस्करी होती है। 2013 के मुकाबले अब तस्करी के आंकड़े करीब 10 गुना बढ़ चुके हैं। भारत में सोने की तस्करी के लिए म्यांमार बेहद आसान रास्ता है क्योंकि इस देश की सीमा भारत के एक बड़े हिस्से से लगती है। साथ ही इन सीमाओं पर जंगल-पहाड़ और नदियों के कारण निगरानी भी बहुत ज्यादा नहीं है। लंबे समय से उत्तर पूर्व भारत के राज्यों में सशस्त्र बलों और उग्रवादियों के बीच जंग का माहौल था, लेकिन पिछले करीब 10 सालों में यहां हालात बदले। हथियारों की तस्करी कम होते होते लगभग ठप हो गई, लेकिन तस्करी के वो रूट्स बचे रहे। कस्टम, डीआरआई और इंटेलिजेंस के जानकार मानते हैं कि इन रूट्स से ही सोने की तस्करी बढ़ गई है। दूसरी बात ये कि भौगोलिक स्थिति के लिहाज़ से म्यांमार थाईलैंड, चीन के साथ ही पूर्वी एशिया के साथ भी जुड़ता है इसलिए ये तस्करी का काफी मुफीद इलाका बन चुका है, जो सिर्फ सोना ही नहीं बल्कि ड्रग्स की तस्करी के लिए भी कुख्यात हो रहा है।
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